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मंगल पांडे को फांसी, आज के दिन हुए थे आजाद भारत के लिए कुर्बान
अंग्रेजों ने मंगल पांडे को फांसी के लिए मुकर्रर की गई तारीख 18 अप्रैल से 10 दिन पहले ही चुपके से फांसी पर लटका दिया।
नई दिल्ली: हम देशवासी आजाद देश की हवा में खुलकर सांस ले सकें इसके लिए कई नौजवानों ने अपने प्राणों की आहुती दी हैं। उन्हीं नौजवानों में शामिल है मंगल पांडे। जिन्होंने अपने देश की आजादी के लिए अपनी जान की कुर्बानी दी। आज ही के दिन यानि 8 अप्रैल,1857 को ब्रिटिश सरकार के खिलाफ बगावत की चिंगारी भड़काने वाले बैरकपुर रेजीमेंट के सिपाही मंगल पांडेय को फांसी दे दी गई।
आज का दिन भारतीय इतिहास में काफी महत्वपूर्ण स्थान रखता है। अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की लड़ाई की पहली हुंकार भरने वाले ईस्ट इंडिया कंपनी की 34वीं बंगाल इंफेन्ट्री के जवान मंगल पांडे को 8 अप्रैल, 1857 को फांसी की सजा दी गई। देश के इस वीर सबूत को देशवासियों का सलाम।
10 दिन पहले दी गई फांसी
भारत की आजादी के लिए अंग्रेजों के खिलाफ हुंकार भरने वाले अमर शहीद मंगल पांडे का अंग्रेजों में डर बैठ गया। उन्हें इस बात का डर रहा कि कहीं मंगल पांडे की यह आजादी की लड़ाई पूरे देश में विद्रोह की आग को न भड़का दे। जिसके डर से अंग्रेजों ने मंगल पांडे को फांसी के लिए मुकर्रर की गई तारीख 18 अप्रैल से 10 दिन पहले ही चुपके से फांसी पर लटका दिया। 8 अप्रैल 1857 को पश्चिम बंगाल के बैरकपुर में मंगल पांडे को फांसी दी गई।
देश के पहले स्वतंत्रता सेनानी
देश के पहले स्वतंत्रता सेनानी मंगल पांडे का जन्म 19 जुलाई 1827 को फैजाबाद के सुरुरपुर में हुआ। हालांकि, मूल रूप से वह यूपी के बलिया जिले के नगवा गांव के रहने वाले थे।
1849 में 18 साल की उम्र में वह ईस्ट इंडिया कंपनी की 34वीं बंगाल नेटिव इन्फैन्ट्री में सिपाही के तौर पर भर्ती हुए। वहीं 1850 में सिपाहियों के लिए नई इनफील्ड राइफल लाई गई। बताया जाता है कि उसकी कारतूस में गाय और सुअर की चर्बी मिली होती। और इन कारतूसों को मुंह से काटकर राइफल में लोड करना पड़ता। जो हिंदुओं के साथ-साथ मुस्लिमों की धार्मिक भावनाओं के साथ खिलवाड़ माना गया।
'मारो फिरंगी को' दिया नारा
29 मार्च 1957 को मंगल पांडे ने विद्रोह कर दिया। और उन्होंने इन कारतूस का इस्तेमाल करने से मना कर दिया साथ ही अपने साथी सिपाहियों को भी विद्रोह के लिए प्रेरित किया। उन्होंने 'मारो फिरंगी को' नारा दिया। वहीं उसी दिन उन्होंने दो अंग्रेजों पर हमला कर दिया। जिसको लेकर उनके खिलाफ मुकदना चलाया गया और उन्हें अंग्रेज अफसरों के खिलाफ विद्रोह करने को लेकर फांसी की सजा सुनाई गई।