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Market In Home: आपके घर में बाजार, पढ़ें सीनियर जर्नलिस्ट योगेश मिश्र का ये लेख

Market In Home: जिसे देखिये वही बाज़ार की बातें करने लगा है। कहीं बैठिये तो ऑनलाइन मार्केटिंग पर किस सामान पर कितनी छूट है, इसके बिना बैठकी पूरी नहीं होती है।

Yogesh Mishra
Written By Yogesh MishraPublished By Shreya
Published on: 12 April 2022 11:13 PM IST (Updated on: 9 May 2022 2:09 PM IST)
आपके घर में बाज़ार
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बाजार (कॉन्सेप्ट फोटो साभार- सोशल मीडिया)

Market: इसे हर्ष कहें या विषाद, जीवन में बाज़ार घुस गया है? बाज़ार फैलता जा रहा है, जीवन सिकुड़ता जा रहा है? बाज़ार ने समाज की भूमिका को गौण कर दिया है। कभी गाँव में सब घरों में अलग अलग आग नहीं जलती थी। किसी एक घर में आग जलने के बाद दूसरे घरों की लड़कियाँ लोहे या पीतल की कलछुल में आग माँग कर ले जाती थीं। जिसके खेत में जो भी होता था, उसे खेत में बैठ कर कोई भी कितना ही खा सकता था। खेत या बाग़ीचे में खाने की मनाही नहीं थी। पहले गाँव में किसी जाति के किसी भी आदमी के घर शादी होती थी तो किसी के खेत में जो भी उपज है, उसे माँग लेने या तोड़ लेने से मनाही नहीं होती थी।

पर अब तो हर उपज को बाज़ार में पहुँचना है, इसलिए खेत में खाना तो छोड़ दीजिये, मेड़ पर खड़ा होना ही गुनाह है। अब गाँव में तम्बू कनात वालों ने अपनी पहुँच बना ली है, मिनरल वाटर के नाम पर बाज़ारू पानी पीने के लिए मिलने लगा है। कुँए, हैंडपाइप या सबमरसेबल का पानी किसी भी जमावड़े के लिए अनुपयुक्त मान लिया गया है।

भारतीय ई-कॉमर्स बाजार

जिसे देखिये वही बाज़ार की बातें करने लगा है। कहीं बैठिये तो ऑनलाइन मार्केटिंग पर किस सामान पर कितनी छूट है, इसके बिना बैठकी पूरी नहीं होती है। भारत में वर्तमान में 19 हजार से ज्यादा इ-कॉमर्स कम्पनियां हैं । 2019 में भारत में ई कॉमर्स कंपनियों ने 7 अरब डॉलर से ज्यादा की फंडिंग प्राप्त की थी। भारतीय ई-कॉमर्स बाजार के 2025 तक 111.40 अरब डॉलर और 2030 तक 350 अरब डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है। यह इन्टरनेट की ज्यादा पहुँच के चलते हुआ है। जुलाई, 2021 तक भारत में इंटरनेट कनेक्शन की संख्या 78 करोड़ 45 लाख थी। इनमें 61 फीसदी कनेक्शन शहरी क्षेत्रों में हैं। इनमें से 97 फीसदी कनेक्शन वायरलेस वाले हैं।

एमएमए इंडिया और मीडिया एजेंसी ग्रुपएम की एक संयुक्त रिपोर्ट के अनुसार, भारत का इंटरनेट उपयोगकर्ता आधार अब 622 मिलियन से बढ़कर 2025 तक 900 मिलियन तक पहुंचने की उम्मीद है, जिससे ऑनलाइन शॉपिंग में कई गुना वृद्धि होगी। रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 2030 तक 50 करोड़ ऑनलाइन खरीदार होने की संभावना है। 50-60 अरब डॉलर के कुल ऑनलाइन खुदरा बाजार में से 60 फीसदी उत्पाद हैं। शेष 40 फीसदी सर्विस सेक्टर से आता है। यात्रा, परिवहन और पर्यटन और उपभोक्ता उपकरण और इलेक्ट्रॉनिक्स इन्टरनेट व्यवसाय में 50 से 60 फीसदी का योगदान करते हैं। इन श्रेणियों में ई-कॉमर्स की पहुंच सबसे अधिक है।

किराना, शिक्षा, स्वास्थ्य और घर और रहन-सहन जैसी श्रेणियां कुल ऑनलाइन खुदरा बाजार में सिर्फ $9 से 13 अरब डॉलर का योगदान करती हैं। ऑनलाइन खुदरा बाजार अगले 4 से 5 वर्षों में 3 गुना बढ़ने का अनुमान है। भारतीय ऑनलाइन किराना बाजार 2019 में 1.9 अरब डॉलर से 2024 में 18.2 अरब डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है, यह 57 फीसदी की वार्षिक दर से बढ़ रहा है। 2020 की अंतिम तिमाही में भारत के ई-कॉमर्स खरीद की मात्रा में 36 फीसदी की वृद्धि हुई, जिसमें पर्सनल केयर, ब्यूटी एंड वेलनेस सेगमेंट सबसे बड़ा लाभार्थी रहा। ई-कॉमर्स कंपनियों ने अक्टूबर और नवंबर 2021 में सभी प्लेटफार्मों पर 9.2 अरब डॉलर की बिक्री दर्ज की। त्योहारी सीजन की बिक्री के साथ, फ्लिपकार्ट समूह 62 फीसदी बाजार हिस्सेदारी के साथ अग्रणी है।

एफएमसीजी का भारतीय अर्थव्यवस्था में योगदान

फास्ट-मूविंग कंज्यूमर गुड्स, जिसे संक्षिप्त रूप में एफएमसीजी कहा जाता है, भारत की अर्थव्यवस्था में योगदान करने वाला चौथा सबसे बड़ा क्षेत्र है। भारतीय एफएमसीजी बाजार का मूल्य 2020 में लगभग 110 अरब अमेरिकी डॉलर था।आने वाले वर्षों में इसके तीन गुना होने की उम्मीद है। 2022 के वित्तीय वर्ष के लिए उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुओं (एफएमसीजी) के बाजार का राजस्व 21.5 अरब डॉलर अनुमानित है, जबकि 2017 के वित्तीय वर्ष में उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुओं के लिए बाजार राजस्व 13.8 अरब डॉलर था। भारत में एफएमसीजी के क्षेत्र में हजारों छोटी-बड़ी कम्पनियाँ हैं।इनमें एमएसएमई सेक्टर का भी बड़ा योगदान हैं। हिंदुस्तान यूनीलीवर कम्पनी का उदहारण लें तो ये 5 लाख 30 हजार करोड़ रूपये की कंपनी है। यह 87 साल से भारत में सक्रिय है।

लोगों के घरों में बाजार और कम्पनियाँ किस तरह हावी हैं इसका एक उदहारण कॉर्नफ्लेक्स, ओट आदि ब्रेकफास्ट आइटम हैं। लंदन स्थित मार्केट रिसर्च कंपनी यूरोमॉनिटर इंटरनेशनल के अनुसार, "भारत में ब्रेकफास्ट सीरियल्स का बाजार 2017 में 2,256 करोड़ रुपये का था, जो 2020 में 12 प्रतिशत सीएजीआर से बढ़कर 3,411 करोड़ रुपये हो गया।" यह महामारी के हालातों के बावजूद हुआ। महामारी के दौरान देश में इन आइटम्स की वृद्धि दर लगभग दोगुनी हो गई। महामारी से पहले यह बाजार 11-12 प्रतिशत की वृद्धि से बढ़ रहा था। लेकिन अब ये 18-20 प्रतिशत हो गया है।

केएफसी, बर्गर किंग, मैकडोनाल्ड आदि क्विक सर्विस रेस्टोरेंट बाजार पर रिसर्च एंड मार्केट्स डॉट कॉम की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2016 से 2020 की अवधि के दौरान इस बाजार में 17.27 फीसदी की वृद्धि हुई। अब 2025 तक इसके 827.63 अरब रुपये तक पहुंचने की उम्मीद है। इस सेगमेंट में तेजी का कारण खाने-पीने की बदलती आदतों, बढ़ती डिस्पोजेबल आय, बदलती जीवन शैली और ऑनलाइन फ़ूड डिलीवरी सुविधा है।

मोबाइल फोन का बाजार

मोबाइल फोन का बाजार भी इसी तरह का है। सिर्फ ऑनलाइन बिक्री ही 8 करोड़ 10 लाख यूनिट की हुई। ऑनलाइन चैनल से बिक्री 13 फीसदी सालाना वृद्धि दर्ज की गयी है। वर्ष 2025 तक अप्लायंसेज और कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स इंडस्ट्री के दोगुने से बढ़कर 1.48 लाख करोड़ रूपये के हो जाने का अनुमान है।मई, 2021 में कंज्यूमर ड्यूरेबल्स उत्पादन में 98.2 फीसदी की वृद्धि हुई। देश में इलेक्ट्रॉनिक्स हार्डवेयर का उत्पादन वित्त वर्ष 2020 में 5.47 ट्रिलियन रुपये का रहा।वित्त वर्ष 2020 में भारत में टीवी की पैठ 69 फीसदी थी, जो अब डीटीएच बाजार से संचालित हो रही है। डीटीएच के कुल सक्रिय ग्राहक मार्च,2021 में 69.57 मिलियन से बढ़कर जून,2021 में 69.86 मिलियन हो गए।

वित्त वर्ष 2020 तक भारत में इलेक्ट्रॉनिक्स, घरेलू उपकरण और एयर कंडीशनर का बाजार क्रमशः लगभग 5,976 करोड़ रुपये, 17,873 करोड़ रुपये और 12,568 करोड़ रुपये का रहा। मुंबई, हैदराबाद, दिल्ली और बंगलोर जैसे मेट्रो शहरों की बढ़ती मांग के कारण भारत में डिशवॉशर बाजार 2025-26 तक 9 करोड़ डॉलर को पार कर जाने की उम्मीद है। भारत की उपभोक्ता डिजिटल अर्थव्यवस्था 2030 तक 800 अरब डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है।त्योहार के दौरान स्मार्टफोन, टेलीविजन, रेफ्रिजरेटर और कपड़ों की बढ़ती मांग के कारण अक्टूबर, 2021 में नवरात्रि 7 अक्टूबर से 14 अक्टूबर, 2021 तक के बीच में उपभोक्ता वस्तुओं की मांग में 15 फीसदी की वृद्धि हुई। सुबह उठ कर ब्रश करने और नाश्ते से लेकर कर रात के खाने और सोने तक भारतीय उपभोक्ता कंपनियों की मर्जी पर ही चलता है।

मुनाफ़ा कमाने के लिए व्यापारी कुछ भी करने पर आमदा

किसी भी शहर के किसी भी सड़क से गुजरिये तो तक़रीबन हर मकान में कोई न कोई दुकान खुली ज़रूर मिल जायेगी। हमें तो भरोसा ही नहीं होता कि जितनी दुकानें खुल रही हैं, उनका किराया, बिजली, पानी व कर्मचारियों के वेतन भर के ख़रीदार भारत में हैं? पर जीवन व समाज में बाज़ार का प्रभुत्व ऐसा है, मानो मुनाफ़ा कमाने के लिए व्यापारी कुछ भी करने पर आमदा हैं। सूखे, विमुद्रीकरण और कोरोना महामारी से उपजी मंदी का लोगों ने सामना किया।

इसके बावजूद अपने उपभोग व्यय में वृद्धि जारी रखी। इससे भारतीय अर्थव्यवस्था को समृद्ध होने में मदद मिली। 2006-07 में प्रति व्यक्ति आय 29,524 रुपये से 2016-17 में 103,219 रुपये तक जा पहुँची। पर कैपिटा इनकम में दस वर्ष में 8.3 प्रतिशत की वृद्धि ने जरूरत की वस्तुओं और गैर जरूरी दोनों वस्तुओं के उपभोग की प्रवृत्ति को बढ़ाया है। उभरते शहरों के साथ खपत व्यय पहले से ही 14 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से बढ़ रहा है।

भारतीय संयुक्त परिवार संरचना के विघटन के चलते पिछले 3 दशकों में अधिक एकल परिवारों का सृजन हुआ। एकल परिवार, संयुक्त परिवारों की तुलना में खपत पर 20-30 प्रतिशत अधिक खर्च करते हैं। इंटरनेट के माध्यम से आसानी से सुलभ जानकारी और ई-कॉमर्स के उदय ने उपभोक्ताओं को ज्यादा से ज्यादा खरीदारी करने के लिए प्रेरित किया है। इन्टरनेट के माध्यम प्रेरित होने वाला खर्च वर्तमान में लगभग 100 अरब डॉलर से 200 अरब डॉलर प्रति वर्ष है। वर्ष 2025 तक यह आंकड़ा 500 अरब से 550 अरब डॉलर तक बढ़ने का अनुमान है, जो कुल खुदरा बिक्री का 30 से 35 फीसदी तक होगा। जनवरी, 2022 के ही आंकड़े हैं कि भारतीय उपभोक्ताओं ने 23,226 अरब रुपये बाजार में खर्च किये।

बाज़ार को घर की जगह दिमाग़ में घुसाने की तैयारी

बाज़ार को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के मार्फ़त घर की जगह दिमाग़ में घुसाने की तैयारी अंतिम चरण में हैं। जिसके तहत आपके दिमाग़ में कार, साबुन या कपड़े कुछ भी ख़रीदने की बात आई और यह सोचते हुए आप अपने मोबाइल, टैबलेट, कंप्यूटर या टीवी के आसपास रहे तो मनचाही वस्तु की ख़रीद का विज्ञापन आपको अपने गैजेट्स पर दिखने लगेगा। आप स्टोर्स में पहुँचेंगे कि आप की ज़रूरत की चीजें पैक होकर आपके पास आ जायेंगी।

यह सब तैयारी तब है जब हम जानते हैं कि बाजार से दवा ख़रीदी जा सकती है, पर स्वास्थ्य नहीं।पूँजी से वैभव व उल्लास के साधन उपलब्ध कराये जा जा सकते हैं। पीड़ा है तो कुबेर की संपत्ति भी मनुष्य को सुख व संतोष का अनुभव नही दे सकती है। जिस विज्ञान तकनीकी ने इतनी प्रगति कर ली है। मनुष्य की आयु बढ़ा दी है। पर परेशानियाँ कम नहीं हुई हैं।चंद्रमा तक पहुँचने वाला मनुष्य बगलगीर तक नहीं पहुँच पा रहा है!

हम सब भूल बैठे हैं कि भौतिक समृद्धि में सुख है या सुख की खोज अपने भीतर करनी पड़ेगी। गाता मुस्कुराता भारत हमने देखा था।मिलकर शादियाँ होती थीं।गाया बजाया जाता था। पर अब तो समझिये चार लोग मिलने मुश्किल हो गये हैं।

बाज़ार के विस्तार के बाद भी भूख से मुक्ति नहीं मिली । पहले हम उन्हें सम्मान देते थे ,जिन्हें समाज का अनुभव था। उन्हें गुरू मानते थे।गुरुत्व की परंपरा रही है। आज अहंकार है। इसने सब कुछ ख़त्म कर दिया है। पचहत्तर सालों में टालरेंस ख़त्म हुआ है।अमेरिका में लेवल ऑफ टालरेंस नहीं हैं। अब यह भारत में भी पैठ चुका है। तकनीकी के आवश्यक व अनावश्यक दो हिस्से हैं।विकास तकनीकी के किस क़ीमत पर हो रहा है, यह देखने की ज़रूरत है।

बाज़ार ने मानवता के सामने जो संकट खड़ा किया है, उससे जीवन अज्ञात हुआ है। बच्चे परिवार को नहीं पहचानते। आभासी मित्रों की दुनिया में व्यस्त हैं। नाना-नानी, दादा-दादी बोर आइटम लगने लगे हैं। राइट ऑफ रिस्पांसिबिलिटी ग़ायब है।

बाज़ार ने शकुनि से सलाह की परंपरा को आगे बढ़ाया

पृथ्वी पर कोई ऐसा व्यक्ति नहीं है, जिसकी समस्या न हो। पृथ्वी पर कोई ऐसी समस्या नहीं है, जिसका समाधान न हो। पर समस्या का समाधान इस बात पर निर्भर करेगा कि हमारा सलाहकार कौन है? यह महत्वपूर्ण है क्योंकि दुर्योधन शकुनि से सलाह लेता था, अर्जुन कृष्ण से। बाज़ार ने शकुनि से सलाह की परंपरा को आगे बढ़ाया है।

संस्कृति के संघात के साथ जो बदलाव शुरू हुए उनमें आर्थिक तत्व प्रधान हो गये। संवेग कभी तटस्थ नहीं होते। भरे हुए पेट को फिर से भरने की अमानवीय प्रकृति ने ही पारस्परिक अपरिचय को जन्म दिया। अवसाद जैसी अनेक मनोदैहिक बीमारियाँ मन के उठा पटक के बीच से ही उपजती हैं। नैतिक मूल्यों का आचरण व चेतना का शुद्धीकरण ही धर्म है। धर्म व धार्मिक संस्कार हमें कभी भी स्वार्थी व आत्म केंद्रित नहीं बनाते हैं। धर्म का उद्देश्य एक संतुलित, समानता मूलक और बेहतर समाज स्थापित करना है। बाजार की स्थापना से धर्म के आध्यात्मिक आधार को चुनौती मिली है। बाज़ारवादी ने इसे मीडिया के सहायता से लाभ कमाने के लिए इसे पैदा किया है।

हमारा मन, हमारे स्वातंत्र्य और बंधन दोनों को कारण कहा गया है। सुख व दुख, शक्ति व दुर्बलता सभी मन की अवस्था पर ही निर्भर करते हैं। केवल वेदांत की मानें तो मन भौतिक शरीर व आध्यात्मिक स्व दोनों से भिन्न है। आध्यात्मिक स्व तो ज्ञाता है पर मन ज्ञाता होकर ज्ञान का विषय है। हम वाह्य वस्तु की तरह मन का भी प्रत्यक्ष करते हैं। मन एक पदार्थ है। यह सोच पश्चिमी दृष्टि के विपरीत है, जो माइंड और मैटर का भेद करती है। वेदांत के मुताबिक़ मन आंतरिक उपकरण है। मन शरीर व आत्मा दोनों से भिन्न है। मन द्वारा ही आशा, निराशा, भय, पीड़ा आदि का हम प्रत्यक्ष करते हैं । भाव , इच्छा ये सब मन के ही प्रकार्य हैं। मन अति सूक्ष्म पदार्थ है, जिसमें चेतना से आलोकित होने की क्षमता विद्यमान होती है। मन ही संकल्प, विकल्प, अहंभाव व स्मृति आदि को संभव करता है। मन आधिपत्य चाहता है। इसे नियंत्रण में लाना ही मनुष्य के विकास की असली कसौटी है।

यह मनुष्य का बावरा मन ही है, जो अपनी ख़ुशी और आनंद के क्षणों पर भी ख़ुशी नहीं मना पाता है। पानी की चार बूँदें क्या टपकीं , हवाओं ने शोर मचाया तो मोर मगन हो उठे। लेकिन मनुष्य बारिश के दिनों में सर्दी की कामना करता है। सर्दी आ जाने पर उसका मन तपती धूप में पसीना पसीना हो जाने को करता है। इसी को मनुष्य का बावरा मन कहते हैं, इस बाबरें मन की एक बड़ी कमजोरी यह भी है कि उसे लगता है उसे छोड़कर सारा संसार आनंद में है। इसी आनंद की तलाश में वह भटकता रहता है। बावरा मन पहले भौतिक सुविधाएँ जुटाने में लग जाता है। लेकिन जब सुविधाएँ मिल जाती हैं, तो मन वैरागी हो जाता है। उसके जीवन में सफलता व विफलता का मानक हमेशा से ख़रगोश व कछुए की कहानी रहा है, वह ख़रगोश की तरह तेज़ी से सब कुछ जानना चाहता है।

पर मन की सभी क्रियाएँ सामूहिकता में ही सकारात्मक होती हैं, रहती हैं। अकेलापन मन को सालता है। परेशान करता है। डराता है। अच्छे कपड़े पहनना, अच्छे ढंग से रहना और इस तरह की तमाम कोशिशें जो आपको आपके स्तर से भौतिक रूप से ऊपर उठाती हैं, सब हम दूसरों के लिए करते हैं। आज हमारे और दूसरों के दिमाग़ व जीवन को बाज़ार ने अपनी ज़द में ले रखा है। तभी तो बाज़ार ने हमारे परिधान बदले हैं। हमारे रहन सहन का ढंग बदला है। खान पान का तौर तरीक़ा पलट कर रख दिया है। पढ़ाई लिखाई बदली है। यह बाज़ार के दबाव में हुआ बदलाव ही तो है कि हम मातृभाषा की जगह अंग्रेजी में पढ़ने लिखने लगे है। क़ानून से सरकार चलती है। समाज नहीं चलता। ऐसी ही भूमिका बाज़ार की भी है। धरती पर कैसे रहना है मनुष्य यह नहीं सीख पाया। यह शिक्षा, संस्कार से होगा। पर कहाँ होगा? बाजार यह नहीं देगा,संसार बाजारू अस्त्रों पर बैठा है। बाज़ार की लड़ाई में हारने वाला तो हारेगा ही। जीतने वाला भी हारेगा।

( लेखक पत्रकार हैं।)

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Shreya

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