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मोदी कैबिनेट में टूटे आरक्षण के नियम, क्या देश में लागू होगा नया फार्मूला
केंद्र सरकार के मंत्रिमंडल विस्तार ने देश के मौजूदा आरक्षण ढांचे को तोड़ दिया है।
लखनऊ. केंद्र सरकार के मंत्रिमंडल विस्तार ने देश के मौजूदा आरक्षण ढांचे को तोड़ दिया है। मोदी मंत्रिमंडल में कुल 77 मंत्री हैं जिनमें 47 मंत्री आरक्षित वर्ग से और पांच अल्पसंख्यक कोटे से शामिल किए गए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण नियमों की व्याख्या करते हुए स्पष्ट किया है कि देश में 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण नहीं हो सकता है । ऐसे में क्या माना जा सकता है कि मोदी सरकार ने देश में नई आरक्षण व्यवस्था की शुरुआत कर दी है।
सरकारी नौकरियों में आरक्षण व्यवस्था को खत्म करने की साजिश का आरोप अब तक विपक्षी दलों की ओर से भारतीय जनता पार्टी व उसके नेताओं पर लगाया जाता रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भी इसे मुद्दा बनाकर हमला बोला गया है। ऐसे में मोदी सरकार का मंत्रिमंडल विस्तार उन लोगों के लिए करारा जवाब हो सकता है जो आरक्षण व्यवस्था खत्म करने की तोहमत लगाते रहे हैं। मोदी सरकार के बुधवार को हुए मंत्रिमंडल विस्तार में देश के मौजूदा आरक्षण दायरे को भी तोड़ दिया गया है। मोदी मंत्रिमंडल में पिछड़ी जाति, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अल्पसंख्यक वर्ग को अधिकतम अवसर दिया गया है।
केंद्र की मोदी सरकार के सबसे बड़े कैबिनेट विस्तार को सामाजिक परिवर्तन का सबसे बड़ा मौका करार दिया जा सकता है। यह भारत के बदलते सामाजिक व सरकारी ढांचे की पहचान का अवसर भी कहा जा सकता है। हिस्सेदारी के अनुपात में भागीदारी का फार्मूला है जो मोदी सरकार ने लागू कर दिया है। बुधवार को हुए मंत्रिमंडल विस्तार में आरक्षण के पचास फीसदी नियम को तोड़ दिया गया है। अलग -अलग राज्यों को प्रतिनिधित्व देने के साथ ही मोदी सरकार ने जातियों और वर्गों के लोगों को भी बढ़-चढ़ कर मौका दिया है। मोदी सरकार में जहां सर्वाधिक 11 महिलाओं को मंत्री बनने का मौका मिला है वहीं आरक्षित वर्ग का प्रतिनिधित्व भी सर्वाधिक है। केंद्र सरकार में अब 12 मंत्री अनुसूचित जाति वर्ग से हैं तो आठ मंत्री अनुसूचित जनजाति वर्ग से शामिल किए गए हैं। यानी अनुसूचित जाति व जनजाति से कुल 20 मंत्री शामिल किए गए हैं जो पूरे मंत्रिमंडल का 25 प्रतिशत होता है। इसी तरह अन्य पिछड़ा वर्ग से 27 मंत्री शामिल किए गए हैं। पिछड़ा वर्ग का मौजूदा आरक्षण 27 प्रतिशत है जबकि मोदी सरकार में उन्हें 35 प्रतिशत प्रतिनिधित्व मिल गया है। इस तरह आरक्षित वर्ग का आरक्षण 60 प्रतिशत से भी अधिक हो गया है। अगर अल्पसंख्यक कोटे के पांच अन्य मंत्रियों को शामिल कर लिया जाए तो यह आरक्षण लगभग 67 प्रतिशत हो जाता है। मोदी सरकार में अल्पसंख्यक वर्ग से आने वाले मंत्रियों मेंस्मृति ईरानी, जॉन बरला, हरदीप पुरी, मुख्तार अब्बास नकवी, किरन रिजीजू के नाम शामिल हैं।
क्या मोदी सरकार इस फार्मूले को सरकारी नौकरियों में लाएगी
केंद्र की मोदी सरकार ने अपने मंत्रि मंडल विस्तार में जिस तरह आरक्षित वर्ग को अधिक अवसर व प्रतिनिधित्व प्रदान किया है ऐसे में सवाल यह भी है कि क्या मोदी सरकार इस फार्मूले को आगे बढ़ाएगी। इससे उन लोगों को मुंह तोड़ जवाब दिया जा सकता है जो मोदी सरकार व भाजपा पर आरक्षण नियमों में छेड़छाड़ करने और आरक्षण को पूरी तरह खत्म करने की साजिश करने का आरोप लगाते रहे हैं।
आरक्षण को लेकर क्या है सुप्रीम कोर्ट का निर्देश
जाति व वर्ग आधारित आरक्षण व्यवस्था पर बार-बार सवाल उठते रहे हैं। न्यायपालिका के विभिन्न स्तर व अवसर पर इसे लेकर बहस हुई है। 10 अप्रैल 2008 को सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि सरकारी धन से संचालित होने वाले संस्थानों में अन्य पिछड़ा वर्ग को 27 प्रतिशत आरक्षण दिया जाना उचित है। लेकिन इस फैसले में अदालत ने ओबीसी यानी अन्य पिछड़ा वर्ग में क्रीमीलेयर को आरक्षण दायरे से बाहर रखने का निर्देश दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट के उस आदेश को 2008 के अपने फैसले से रोक दिया है जिसमें आरक्षण दायरा 50 प्रतिशत से बढ़ाने को सही ठहराया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर आरक्षण दायरे को 50 प्रतिशत से बढ़ाया जाता है तो यह देश के नागरिकों को समान अवसर और समान प्रतिभागिता के सिद्धांत के प्रतिकूल होगा। इससे असमानता की भावना बढ़ेगी।