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पोस्ट कोविड संक्रमणः म्यूकोरमाइकोसिस संक्रमण की राजधानी क्यों बन रहा है देश

ब्लैक फंगस की भारत दुनिया में राजधानी बनता जा रहा है। उत्तर प्रदेश समेत देश के तमाम राज्यों में कोरोना के बाद होने वाली मौतों की सबसे बड़ी वजह ब्लैक फंगस बन रहा है।

Ramkrishna Vajpei
Written By Ramkrishna VajpeiPublished By Vidushi Mishra
Published on: 16 May 2021 12:53 PM IST (Updated on: 16 May 2021 3:11 PM IST)
After diabetes, India is becoming the capital of Mucormycosis i.e. Black Fungus in the world.
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ब्लैक फंगस (फोटो-सोशल मीडिया)

नई दिल्ली: मधुमेह के बाद म्यूकोर्माइकोसिस यानी ब्लैक फंगस की भारत दुनिया में राजधानी बनता जा रहा है। उत्तर प्रदेश समेत देश के तमाम राज्यों में कोरोना के बाद होने वाली मौतों की सबसे बड़ी वजह ब्लैक फंगस बन रहा है। आश्चर्य की बात यह है कि दुनिया के किसी दूसरे देश में ब्लैक फंगस का आतंक नहीं है जितना भारत में है यह बात मेडिकल क्षेत्र के डॉक्टरों के बीच चर्चा का विषय है।

इस बारे में डॉक्टरों के जो विचार सामने आ रहे हैं उनके निष्कर्षों पर गौर करें तो एक नई तस्वीर सामने आती है। कोविद-19 से संक्रमित रोगियों के ठीक होने के बाद बड़ी संख्या में म्यूकरमाइकोसिस के मामले मुख्य रूप से रिपोर्ट किए गए हैं। इनमें भी उन लोगों में यह संक्रमण अधिक पाया गया है जो कई दिनों तक ऑक्सीजन के सपोर्ट पर रहे थे।
कोविड-19 महामारी के नियंत्रण में लगे डॉक्टरों का यह मत प्रमुखता से उभर रहा है कि कोरोना की दूसरी लहर में भारी मात्रा में ऑक्सीजन की मांग के बाद किसी ने भी ऑक्सीजन के प्रकार और उसकी गुणवत्ता के बारे में नहीं सोचा। सबसे बड़ा सवाल यह है कि जो ऑक्सीजन चिकित्सकीय उपयोग के लिए आपूर्ति की गई क्या वह ऑक्सीजन मेडिकल ग्रेड के पैमाने पर खरी थी, संभावना इस बात की भी जताई जा रही है कि शायद औद्योगिक ऑक्सीजन में म्यूकॉर स्पोर्स रहे हों, क्योंकि म्यूकॉर का लोहे से विशेष लगाव होता है और सभी सिलेंडर लोहे के बने होते हैं। फिलहाल ये सिर्फ एक विचार है। इस पर शोध किया जाना अभी बाकी है।
डॉ अरविंद सिंह म्यूकोरमाइकोसिस की सच्ची कहानी पर चर्चा करते हुए आशंका जताते हैं कि कोरोना की दूसरी लहर में जब बड़े पैमाने पर पीड़ितों को ऑक्सीजन सपोर्ट की आवश्यकता पड़ी तब क्या हमने आईसीयू सेटिंग्स में अपने मोल्ड काउंट की जाँच की? हमने अपने ऑक्सीजन मास्क की जांच की? हमने अपने अस्पताल के उपकरणों की जांच की? हमने अपने वेंटिलेटर्स की जांच की? और यहाँ तक कि जल्दबाजी में मिली प्रशासित ऑक्सीजन की जांच की?

डॉक्टरों के उठाए सवाल जायज हैं कि आखिर म्यूरकोमाइकोसिस का फंगस जो कि शरीर के तमाम अंगों को बहुत तेजी से संक्रमित कर मल्टीपल आर्गनफेल्योर की ओर ले जा रहा है वह आया कहां से। हमारे मेडिकल सिस्टम में इस वायरस ने किस चूक की वजह से सेंध लगाई। डॉ. सिंह कहते हैं आज हालात यह हैं कि भारत मधुमेह के साथ ही म्यूकोर्माइकोसिस में भी दुनिया की 'राजधानी' होने की तरफ बढ़ रहा है। इसके अलावा COVID-19 के लिए दिया जा रहा उपचार, म्यूकोरमाइकोसिस आपदा के लिए बेहतर भोजन साबित हो रहा है। जो कि तेजी से जिंदगियों को लील रहा है।

वयस्क आबादी में अनुमानित 77 मिलियन मामलों के साथ, मधुमेह भारत की सबसे तेजी से बढ़ती महामारी है। भारत के सभी राज्यों के एक हालिया क्रॉस-सेक्शनल अध्ययन से पता चला है कि 47% भारतीय अपनी मधुमेह की स्थिति से अनजान हैं और सभी रोगियों में से केवल एक चौथाई ने उपचार पर पर्याप्त ग्लाइसेमिक नियंत्रण हासिल किया है। वह कहते हैं कि मधुमेह की चर्चा इसलिए की जा रही है क्योंकि मधुमेह और SARS-CoV-2 संक्रमण की गंभीरता के बीच अपवित्र संबंध दुनिया भर के विभिन्न अध्ययनों में बार-बार स्थापित किया गया है।

म्यूकोर फंगस पर्यावरण में कार्बनिक पदार्थों के सड़ने पर प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। देश भर के अस्पतालों के विभिन्न अध्ययनों से पता चला है कि हमारे उष्णकटिबंधीय जलवायु में मुख्य रूप से गर्म, आर्द्र परिस्थितियों के कारण अस्पताल की हवा में भी मोल्ड फंगस की संख्या होती है।

COVID-19 सेप्सिस तब होता है जब SARS-CoV-2 का मानव शरीर में प्रकोप हो जाता है और हम सचमुच टुकड़ों को उठाकर छोड़ देते हैं। यह एक अनियंत्रित जन्मजात प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया, सिलिअरी डिसफंक्शन, साइटोकिन स्टॉर्म की ओर जाता है। थ्रोम्बो-सूजन, सूक्ष्म संवहनी जमावट और अंततः प्रतिरक्षा थकावट।

कोविड-19 उपचार के क्रम कुछ ऐसा है जो संक्रमण फैलने का अवसर दे रहा है। विशेष रूप से गंभीर रूप से बीमार रोगियों में आपातकालीन आक्रामक प्रक्रियाओं में, यांत्रिक वेंटिलेशन, सीआरआरटी, ईसीएमओ, खराब नर्सिंग अनुपात, लंबे समय तक अस्पताल में रहना आदि।

इसके अलावा, इन अतिसंवेदनशील मेजबानों में कॉर्टिकोस्टेरॉइड उपचार और एंटी-आईएल-6-निर्देशित रणनीतियों के उपयोग के साथ-साथ पर्यावरण में उच्च कवक बीजाणुओं की संख्या मोल्ड संक्रमण के लिए एकदम सही माहौल बनाती है। यह केवल स्टेरॉयड के उपयोग या मधुमेह के संबंध में ही नहीं है। और भी महत्वपूर्ण कारक हैं। इसलिए इस पर व्यापक अनुसंधान की आवश्यकता है।



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Vidushi Mishra

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