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Naxal Martyrs Week: कब है नक्सल शहीद सप्ताह, सबसे बड़ा नक्सली नेता कौन, राज्यों में हाई अलर्ट
Naxal Martyrs Week : सवाल उठता है कि कौन हैं ये नक्सली, जो अक्सर पुलिस दल पर हमला कर पुलिस वालों की हत्या कर देते हैं और उनके शस्त्रास्त्र लूट ले जाते हैं। नक्सलियों द्वारा आगजनी की खबरें भी अक्सर आती रहती है।
Naxal Martyrs Week : नक्सलियों के शहीद सप्ताह (Naxal Saheed Saptah Kab Hai) को देखते हुए नक्सली प्रभाव वाले जिलों में हाई अलर्ट कर दिया गया है। नक्सली इस दौरान अपने मारे गए साथियों की शहादत का सप्ताह मनाते हैं और इस दौरान विध्वंसक गतिविधियों को भी अंजाम देते हैं। झारखंड में नक्सल संगठनों ने 28 जुलाई से तीन अगस्त (28 July To 3 August) तक शहादत सप्ताह का एलान किया है जिसे देखते हुए प्रशासन सतर्क हो गया है। इस दौरान नक्सली चारू मजूमदार अमर रहे हैं। वीर कन्हाई अमर रहें। आदि नारे लगाते हैं। ग्रामीणों को जुटाकर सरकार और पुलिस के खिलाफ जहर उगालते हैं और विध्वंसक गतिविधियों की रणनीति बनाते हैं। आंध्र प्रदेश, उड़ीसा, छत्तीसगढ़ व झारखंड के कुछ इलाकों (Naxalite States) में नक्सलियों का प्रभाव माना जाता है। दावा किया जाता है कि नक्सलवाद का प्रभाव लगातार बढ़ रहा है और यह 22 राज्यों के 220 जिलों तक फैल चुका है। जिसमें 65 जिले बुरी तरह प्रभावित माने जाते हैं।
नक्सली कौन हैं (Naxalite Kaun Hain)
ऐसे में एक सवाल उठता है कि कौन हैं ये नक्सली, जो अक्सर पुलिस दल पर हमला कर पुलिस वालों की हत्या कर देते हैं और उनके शस्त्रास्त्र लूट ले जाते हैं। नक्सलियों द्वारा आगजनी की खबरें भी अक्सर आती रहती है। दूसरी ओर पुलिस कार्रवाई में नक्सलियों के मारे जाने या पकड़े जाने की खबरें आती रहती हैं।
नक्सल शब्द कहां से आया (Naxal Shabd Kaha Se Aya)
नक्सल शब्द कहां से आया है। इनकी विचारधारा क्या है क्या ये आतंकवादी हैं या अपराधी। क्यों चारू मजूमदार अमर रहे का नारा गूंजता है। कौन थे चारू मजूमदार। कौन थे कानू सान्याल। 28 जुलाई को चारु मजूमदार की जयंती है। उनका जन्म 1918 में 28 जुलाई को सिलिगुड़ी में हुआ था। और इसी दिन से नक्सलियों का शहादत सप्ताह भी शुरू हो रहा है।
पहले जानते हैं नक्सल शब्द के बारे में तो नक्सल शब्द की उत्पत्ति पश्चिम बंगाल के छोटे से गाँव नक्सलबाड़ी से हुई है जो कि दार्जीलिंग स्थित एक बस्ती है। यहीं से भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी के नेता चारू मजूमदार और कानू सान्याल ने 1967 मे सत्ता के विरुद्ध एक सशस्त्र आन्दोलन का आरम्भ किया था। जिसे लेकर ये स्थान चर्चा मंज आया। इसके बाद इस विचारधारा को नक्सलवाद और इससे जुड़े लोगों को नक्सली कहा जाने लगा। वैसे राष्ट्रीय राजमार्ग 327 इसी नक्सलबाड़ी से होकर गुज़रता है।
मोटे तौर पर यहा कहा जा सकता है कि नक्सलवाद साम्यवादी क्रान्तिकारियों के उस आन्दोलन का अनौपचारिक नाम है जो भारतीय कम्युनिस्ट आन्दोलन के फलस्वरूप उत्पन्न हुआ। साम्यवाद कार्ल मार्क्स और फ्रेडरिक एंगेल्स द्वारा प्रतिपादित तथा साम्यवादी घोषणापत्र में वर्णित समाजवाद की चरम परिणति है। इस विचारधारा में यह माना जाता है कि न्यायहीन दमनकारी वर्चस्व को केवल सशस्त्र क्रान्ति से ही समाप्त किया जा सकता है।
सबसे पहला नक्सली हमला (Pehla Naxal Attack)
नक्सलबाड़ी आंदोलन की शुरुआत 23 मई 1967 को जमीन पर मालिकाना हक को लेकर तब हुई थी जब तीर कमानों से लैस बागियों और किसानों का पुलिस से संघर्ष हुआ था। इस दिन कई लोग मारे गए। फिर 25 मई को पुलिस की गोली से नक्सलबाड़ी में 10 लोग मारे गए। इसके बाद उत्तर बंगाल का ये इलाका हिंसा में लगभग 52 दिनों तक जलता रहा था। लेकिन नक्सलबाड़ी का यह विफल आंदोलन 54 साल बाद आज भी कथित रूप से जारी है लेकिन अब इस आंदोलन का विचारधारा से कोई लेना देना नहीं रह गया है। अपने प्रभाव वाले क्षेत्रों में नक्सली खनन व्यवसायियों से गुंडा टैक्स वसूलते हैं जबकि आंदोलन खनन के विरोध में था। इसी तरह नशीले पदार्थों के कारोबार में भी नक्सलियों की संलिप्तता सामने आई है।
बात करें चारू मजूमदार की तो उन्होंने धनी पारिवारिक विरासत को छोड़कर एक कठिन और क्रान्तिकारी जीवन चुना था। आगे चलकर उन्होंने हथियारबंद नकसल आन्दोलन में भाग लिया था। चारू ने नकसलबाड़ी विद्रोह के महत्व पर भी लिखा। उनकी रचनाएँ आज भी नक्सलवादियों के मंच से गाई जाती हैं।
प्रसिद्ध नक्सली कौन हैं (famous naxal Leaders in India)
चारू मजूमदार शुरुआत में कांग्रेस से जुड़े थे लेकिन बाद में वह भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हो गए। इसकी किसान शाखा से जुड़कर फसल कब्जे का अभियान छेड़ा। वह तेभागा आंदोलन से भी जुड़े रहे। उन्होंने लीला मजूमदार सेन गुप्ता से शादी की।
नक्सलबाड़ी आंदोलन की अगुवाई वैसे तो कॉमरेड कानू सान्याल ने की थी। लेकिन चारू मजूमदार इस आंदोलन से हर तरह से जुड़े रहे। उन्होंने आठ लेख लिखे थे जिनका उद्देश्य यह था कि सफल क्रांति चीनी क्रांति के मार्ग पर हिंसात्मक संघर्ष का रूप ले सकती है। 1969 में चारू ने ऑल इंडिया कोऑरडिनेशन कमिटी ऑफ़ कम्यूनिस्ट रेवोल्यशनरीज़ बनाई जिसके वह जेनेरल सेकरेटरी बने। 16 जुलाई, 1972 को चारू को उनके खुफ़िया ठिकाने से पकड़ा गया। 28 जुलाई को रात 4 बजे वह लॉक-अप में अपनी अंतिम साँसे ले चुके थे। बताया जाता है कि उनकी मृत्यु हृदयाघात से हुई थी। उनका मृत शरीर भी परिवार को नहीं सौंपा गया था। पुलिस, निकटतम परिवारजनों के साथ शरीर को शवदाहगृह ले गई। पूरा इलाका घेरे में लिया गया और किसी भी दूसरे रिश्तेदार को अन्दर आने की अनुमति नहीं दी गई।
भारत में नक्सलवाद का इतिहास (Naxal History in India)
उधर नक्सलबाड़ी आंदोलन के अगुआ रहे कानू सान्याल की सोच भी बाद में बदल गई थी। उनका कहना था कि भारत में जो सशस्त्र आंदोलन चल रहा है, उसमें जनता को गोलबंद करने की जरुरत है। अव्वल तो वे इसे सशस्त्र आंदोलन ही नहीं मानते थे। छत्तीसगढ़, झारखंड या आंध्र प्रदेश में सशस्त्र आंदोलन के नाम पर जो कुछ चल रहा है, वे इसे "आतंकवाद" की संज्ञा देते थे। वे नक्सलबाड़ी आंदोलन को भी माओवाद से जोड़े जाने के भी खिलाफ थे। शायद आंदोलन से उपजे अवसाद की ही स्थिति थी कि कानू सान्याल ने 23 मार्च 2010 को अपने घर में फांसी से लटककर आत्महत्या कर ली थी।