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Neem-Coated Urea Kya Hai: खास है नीम कोटेड यूरिया, भारत ने की है ईजाद
Neem-Coated Urea: यूरिया की तस्करी और कालाबाजारी को रोकने के लिए केन्द्र सरकार ने 2015 में यूरिया को 100 फीसदी नीम कोटेड करने का फैसला लिया था। नीम कोटिंग यूरिया से औद्योगिक इस्तेमाल और कालाबाजारी पर रोक लगाने में कामयाबी भी मिली।
Neem-Coated Urea: भारत में किसी जमाने में यूरिया संकट (Urea Sankat) बुरी तरह हावी रहता था। किसानों को लाठी गोली तक खानी पड़ती थी। यूरिया और सिंथेटिक दूध (Synthetic Milk) का भी गहरा कनेक्शन था, ऐसा नकली दूध (Nakli Doodh) खूब पकड़ा जाता था। लेकिन अब ऐसा कुछ नहीं है। न यूरिया संकट और ना सिंथेटिक दूध। इसकी वजह है नीम (Neem)। जी हां, नीम ने यूरिया इंडस्ट्री (Urea Industry) की तस्वीर बदल दी है। गोरखपुर (Gorakhpur) का खाद कारखाना भी इसी कड़ी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने जा रहा है।
दरअसल, यूरिया की तस्करी और कालाबाजारी को रोकने के लिए केन्द्र सरकार ने 2015 में यूरिया को 100 फीसदी नीम कोटेड करने का फैसला लिया था। 2015 में सरकार ने देश में यूरिया के संपूर्ण उत्पादन को नीम लेपित करना अनिवार्य कर दिया, जिससे नीम कोटिंग यूरिया (Neem Coating Urea) से औद्योगिक इस्तेमाल और कालाबाजारी पर रोक लग गई।
कहां से हुई शुरुआत (Neem-Coated Urea Ki Shuruaat)
नीम वाली यूरिया का कनेक्शन खासकर महाराष्ट्र (Maharashtra) से है। महाराष्ट्र के सह्याद्री पर्वतश्रृंखला की पश्चिम घाटी के इलाकों की पहचान अच्छे बारिश वाले क्षेत्रों में है। यही वजह है यहां खरीफ के सीजन में धान की खेती बड़े पैमाने पर होती है। 2002 में महाराष्ट्र के इगतपुरी (Igatpuri) स्थित धान अनुसंधान केंद्र ने धान की खुशबूदार जाति इंद्रायणी (Indrayani) को ईजाद किया। साथ ही में इसे उगाने की आधुनिक तरीका भी तय किया, जिसे चार सूत्र तरीके के नाम से भी जाना जाता है। इस चार सूत्र में से एक था नीम कोटेड यूरिया ब्रिकेट (Neem Coated Urea Briquettes)।
यानी अगर यूरिया की एक छोटी सी गोली बनाकर उसपर नीम का लेप किया जाए तो धान के खेत में हर पौधे को अच्छी तरह से यूरिया की पर्याप्त मात्रा मिल सकती है और साथ ही ऑर्गेनिक कीटनाशक (Organic Pesticide) भी मिल जाता है। नीम कोटींग वाली यूरिया ब्रिकेट अगर पानी भरे खेत में डाली जाए तो नीम की कोटिंग की वजह से वो पानी में तुरंत घुलती नहीं है और नतीजतन फसल को पूरी मात्रा में यूरिया (Urea) या नाईट्रोजन (Nitrogen) की मात्रा मिल जाती है। 2003-04 पुणे जिले में धान की नई तकनीक पहुंचाई गई।
रिसर्च में पाया गया कि कुछ गांवों के किसानों की धान की उपज (Dhaan Ki Upaj) पांच गुना तक बढ़ गई है। इसका कारण था नीम कोटेड यूरिया (Neem-Coated Urea)। यह तकनीक इतनी लोकप्रिय हुई कि कुछ एनजीओ ने महिलाओं के सेल्फ हेल्प ग्रुप द्वारा नीम कोटेड यूरिया बिक्रेट (Neem Coated Urea Briquettes) बनाने का काम शुरू कर दिया। इस सफलता के बाद ये क्रम देश भर में फैला।
नीम का लखनऊ कनेक्शन (Neem And Lucknow Connection)
वैसे लखनऊ विश्वविद्यालय (Lucknow University) में नीम पर महत्वपूर्ण रिसर्च कई वर्षों से चल रही थी। इस रिसर्च की कमान वनस्पतिशास्त्र विभाग (Department of Botany) की प्रोफेसर डॉ रश्मि रॉयचौधरी के हाथ में थी। डॉ रॉयचौधरी ने नीम और नीम कोटेड कई उत्पाद स्वयंसेवी समूहों को बनाना सिखाया और नीम का इस्तेमाल (Neem Ka Istemal) खेती तथा रोजमर्रा के जीवन में करने की दिशा में अभिनव प्रयोग किये। निम्बुलियों के कलेक्शन के काम को रोजगार से जोड़ने का बड़ा काम किया गया।
नीम कोटेड यूरिया के फायदे (Neem-Coated Urea Ke Fayde)
खेतों में रासायनिक खादों के लगातार इस्तेमाल से जमीन के नीचे नाइट्रोजन (Nitrogen) की एक लेयर बन जाती हैं जिससे फसल मिटटी में मौजूद पोषक तत्वों को अवशोषित नहीं कर पाती है। लेकिन नीम कोटेड यूरिया के इस्तेमाल से नाइट्रोजन लेयर नहीं बन पाती हैं।
नीम कोटेड यूरिया बनाने के लिए यूरिया के ऊपर नीम के तेल का लेप कर दिया जाता हैं। ये लेप नाइट्रिफिकेशन अवरोधी के रूप में काम करता है। मीम लेपित यूरिया धीमी गति से रिलीज़ होता है। जिसके कारण फसलों का आवश्यकता के अनुरूप नाइट्रोजन पोषक तत्व की उपलब्धता होती है और फसल उत्पादन में भी वृद्धि होती है। इससे खेती की लागत घटती है। भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ती है।
इसके अलावा नीम कोटेड यूरिया का इस्तेमाल शराब और सिंथेटिक दूध बनाने में नहीं किया जा सकता है। चूंकि यूरिया का कोई अन्य इस्तेमाल नहीं हो सकता है सो इसकी कालाबाजारी नहीं हो पाती है।
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