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'रामायण' और 'बुद्ध सर्किट' के बाद अब नेताजी सुभाष चंद्र बोस पर बनेंगे तीन सर्किट, जानें क्या होगा रूट

इन सभी सर्किट को रेल तथा हवाई दोनों ही रास्तों से जोड़ा जाएगा। जनवरी 2022 में तीनों सर्किट पर काम शुरू हो जाएंगे।

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Report amanPublished By Ragini Sinha
Published on: 24 Oct 2021 11:02 AM IST
Netaji Subhash Chandra Bose
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रामायण' और 'बुद्ध सर्किट' के बाद अब नेताजी सुभाष चंद्र बोस पर बनेंगे तीन सर्किट (social media)

Netaji Subhash Chandra Bose: केंद्र सरकार (Central Government) 'रामायण' (Ramayan) और 'बुद्ध सर्किट' (Buddh circuit) के बाद अब 'नेताजी सुभाष चंद्र बोस सर्किट'( Netaji Subhas Chandra Bose circuit) बनाने जा रही है। यह सरकार के सुभाष चंद्र बोस (Netaji Subhas Chandra Bose) से जुड़े स्थानों को दर्शनीय स्थल के रूप में विकसित करने की योजना के तहत किया जाएगा। बता दें, कि देशभर में सुभाष चंद्र बोस (Subhash chandra bose ki yojna ) से जुड़े तीन सर्किट बनाने की योजना है।

2022 में तीनों सर्किट पर काम शुरू हो जायगा

सरकार द्वारा बनाया जाने वाला पहला सर्किट दिल्ली-मेरठ-डलहौजी (Delhi-meerut-dalhoji) से सूरत (surat) तक होगा। जबकि, दूसरा कोलकाता (Kolkata) से नागालैंड (Nagaland) के रुजज्हो गांव तक बनाया जाएगा। वहीं तीसरा, कटक-कोलकाता से अंडमान तक बनेगा। जानकारी के अनुसार, इन सभी सर्किट को रेल तथा हवाई दोनों ही रास्तों से जोड़ा जाएगा। उम्मीद है, कि जनवरी 2022 में तीनों सर्किट पर काम शुरू हो जाएंगे।

126वीं जयंती पर शुरू हो सकता है काम

इस संबंध में केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय (Union Ministry of Tourism) के वरिष्ठ अधिकारी ने एक राष्ट्रीय दैनिक को बताया, कि देश नेताजी सुभाष चंद्र बोस (Netaji Subhash Chandra Bose jayanti) की 125वीं जयंती को 'पराक्रम दिवस' के रूप में मना रहा है। इस उपलक्ष्य में अगले साल यानी 23 जनवरी 2022 को एक बड़ा कार्यक्रम की तैयारी भी चल रही है। इसी मौके पर इन तीनों सर्किट पर काम शुरू होना है। जिसके तहत नेताजी सुभाष चंद्र बोस (Netaji Subhash Chandra Bose) पराक्रम दिवस से जुड़े स्थानों को आपस में जोड़ा जाएगा। इसके पीछे मंत्रालय का मकसद, पर्यटकों और युवाओं को नेताजी के बारे में जानकारी उपलब्ध करवाना और उनसे जोड़ना है।

शिक्षा मंत्रालय की भी तैयारियां

शिक्षा मंत्रालय (Education Minister) की ओर से देश के सभी स्कूलों और कॉलेजों में अगले साल 23 जनवरी को नेताजी सुभाषचंद्र बोस (Netaji Subhash chander bose) पर आधारित कार्यक्रम आयोजित होंगे। इस कार्यक्रम में छात्र नेताजी और उनकी सेना की तरह कपड़े पहनेंगे। इस कार्यक्रम में 'कदम-कदम बढ़ाए जा...' जो आजाद हिंद फ़ौज का मार्च सांग रहा है को प्रमुखता से पेश किया जाएगा। मंत्रालय इस दिशा में काम कर रहा है।

जानें तीनों सर्किट के बारे में:

पहला सर्किट: दिल्ली मेरठ-डलहौजी से सूरत

पहले सर्किट के तहत पर्यटकों को दिल्ली से मेरठ के टाउन हॉल और शहीद स्मारक से रूबरू करवाया जाएगा। बता दें, कि यहां नेताजी सुभाष चंद्र बोस (Netaji Subhash chander bose circuit) 1940 में भारत की आजादी को लेकर भाषण दिए थे। इसके अलावा यहां नेताजी से जुड़ी स्मृतियों और सामानों को संग्रहालय में रखने की भी योजना है। इसके बाद, टूर के अगले दिन पर्यटकों को मेरठ से हिमाचल प्रदेश के डलहौजी तक सड़क मार्ग से ले जाया जाएगा। मेरठ से डलहौजी की दूरी 554 किलोमीटर के लगभग है। यहां पर्यटकों को कांस्य भवन ले जाया जाएगा। सुभाष चंद्र बोस ने यहां सात महीने गुजारे थे। इसके बाद हवाई यात्रा के जरिए पर्यटकों को सूरत ले जाया जाएगा।

दूसरा सर्किट: कोलकाता-रुजज्हो गांव नागालैंड

अब बारी दूसरे सर्किट की। यहां पर्यटकों को नेताजी द्वारा तैयार आजाद हिन्द फौज के बारे में जानकारी दी जाएगी। पर्यटकों को कोलकाता से दीमापुर तक हवाई मार्ग से ले जाया जाएगा। इसके बाद 150 किमी की दूरी यानी रुजज्हो गांव तक सड़क मार्ग से सफर करना पड़ेगा। यहां पर कभी आजाद हिन्द फौज का मुख्यालय हुआ करता था। यहीं नेताजी सुभाष बोस का घर भी है। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान मोइरांग आजाद हिन्द फ़ौज का मुख्यालय था। पहली बार इस सेना के कर्नल शौकत मलिक ने 14 अप्रैल 1944 को मोइरांग में भारतीय राष्ट्रीय ध्वज भी फहराया था।

तीसरा सर्किट: कटक कोलकाता-अंडमान

इस सर्किट के तहत पर्यटकों को सबसे पहले कटक स्थित नेताजी के बचपन के घर जानकीनाथ भवन दिखाने ले जाया जाएगा। यहां के संग्रहालय में नेताजी द्वारा लिखित 22 असली पत्र भी हैं। यह भुवनेश्वर से 32 किलोमीटर की दूरी पर है। इसके बाद नेताजी के स्कूल स्टीवार्ट ले जाया जाएगा। यहां उन्होंने वर्ष 1902 से 1909 तक यानी सातवीं कक्षा तक की पढ़ाई की थी। इसके बाद पर्यटकों को पोर्ट ब्लेयर ले जाया जाएगा। पोर्ट ब्लेयर वही स्थान है जहां नेताजी ने साल 1943 में तिरंगा फहराया था।



Ragini Sinha

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