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New Delhi: CJI के संसद संबंधी बयान पर सरकार ने जताई सहमति, विपक्ष ने साधी चुप्पी, माहौल बदलने की उम्मीद नहीं
New Delhi: केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू ने कहा कि जब मैं नया सांसद बना था तो मुझे संसद में काफी कुछ सीखने को मिला करता था मगर अब वरिष्ठ सांसदों की ओर से जूनियर सांसदों को आगे करके संसद को ठप कराया जाता है।
New Delhi: मुख्य न्यायाधीश एन वी रमना ने संसद के मानसून सत्र के दौरान विपक्ष के भारी हंगामे को लेकर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि इससे लोकतंत्र की गरिमा भी प्रभावित होती है। इसलिए सांसदों को इस बारे में जरूर सोचना चाहिए। उन्होंने कहा कि पहले महत्वपूर्ण मुद्दों पर संसद में बहस के बाद ही कानून बनाए जाते थे मगर अब संसद में बुद्धिजीवियों की कमी दिखती है। उन्होंने कहा कि जिन मुद्दों पर संसद में बहस होती भी हैए उनमें गुणवत्ता का पूरी तरह अभाव होता है। उन्होंने बहस के बिना कानून बनाने पर भी सवाल उठाया और कहा कि ऐसे कानूनों में स्पष्टता का अभाव होता है और जज भी किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाता।
दूसरी ओर सरकार ने संसद में बहस के गिरते स्तर पर मुख्य न्यायधीश की ओर से कही गई बातों पर सहमति जताई है। केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू ने कहा कि जब मैं नया सांसद बना था तो मुझे संसद में काफी कुछ सीखने को मिला करता था मगर अब वरिष्ठ सांसदों की ओर से जूनियर सांसदों को आगे करके संसद को ठप कराया जाता है। इस खतरनाक प्रवृत्ति के कारण नए सांसद कुछ भी नहीं सीख पाते। दूसरी ओर रमना के बयान पर विपक्ष की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं जताई गई है। माना जा रहा है कि मुख्य न्यायाधीश की ओर से चिंता जताए जाने के बावजूद विपक्ष के रवैए में कोई बदलाव आना संभव नहीं दिखता।
कमियां होने पर भी बना दिया गया कानून
स्वतंत्रता दिवस के कार्यक्रम में शामिल होने के बाद जस्टिस रमना ने कहा कि संसद में बहस न होने का नतीजा कानूनों में भी दिख रहा है। कई ऐसे कानून भी पारित कर दिए गए हैं जिनमें कई कमियां थीं मगर उन कमियों को दूर करने की कोई कोशिश नहीं की गई। उन्होंने कहा कि नए कानूनों को लेकर बहस न होने से कोर्ट पर भी काम का बोझ बढ़ता है।
कई कानूनों में स्पष्टता का पूरी तरह अभाव होता है और छोटी.छोटी बातों को लेकर मामले अदालतों में पहुंचते हैं। यदि नए कानूनों पर बहस की जाए तो तमाम मुद्दे अपने आप ही स्पष्ट हो जाएंगे मगर संसद में ऐसा माहौल हाल के दिनों में नहीं दिखा है। नए कानूनों पर बहस न होने के कारण यह पता ही नहीं लग पाता कि किस मकसद से इस कानून को बनाया गया है।
पहले बहस में उठाए जाते थे कई सवाल
देश के मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि पहले सदन में कई प्रसिद्ध वकील भी बतौर सांसद मौजूद रहा करते थे और वे विधेयकों को लेकर विस्तार से चर्चा किया करते थे। विपक्षी सांसदों की ओर से भी तमाम सवाल उठाए जाते थे जिनका निदान सरकार की ओर से किया जाता था मगर अब वह माहौल नहीं रह गया है।
उन्होंने संसद में बुद्धिजीवियों की कमी की ओर इशारा करते हुए कहा कि महत्वपूर्ण मुद्दों पर बहस की जानी चाहिए ताकि देश के लोगों को भी उस मुद्दे से जुड़े विभिन्न पहलुओं की जानकारी मिल सके। उन्होंने संसद में बहस का माहौल बनाने के लिए वकीलों से भी आगे आने का अनुरोध किया।
कानून मंत्री ने किया रमना का समर्थन
कानून मंत्री किरण रिजिजू ने देश के मुख्य न्यायाधीश की और से कही गई बातों का समर्थन किया है। उन्होंने कहा कि जस्टिस रमना ने सही सवाल उठाए हैं। संसद का माहौल इतना बिगड़ चुका है कि सरकार चाहकर भी विभिन्न महत्वपूर्ण मुद्दों पर बाहर से नहीं करा सकी। उन्होंने कहा कि संसद में वरिष्ठ सांसदों का व्यवहार काफी आपत्तिजनक है। वे जूनियर सांसदों को आगे करके हंगामा कराते हैं ताकि संसद की कार्यवाही को ठप कराया जा सके।
उन्होंने कहा कि यह सबसे बड़ी बात तो यह है कि विपक्षी सांसदों की ओर से इस बात पर गर्व जताया जाता है कि उन्होंने संसद की कार्यवाही को नहीं चलने दिया। संसद में गैर संसदीय भाषा और आचरण से लोकतंत्र के मंदिर की पवित्रता नष्ट होती है और सांसदों के इस रवैए में बदलाव आना चाहिए।
तल्ख रिश्तों के कारण नहीं बदलेगा माहौल
वैसे विपक्षी सांसदों की ओर से रमना के बयान पर कोई प्रतिक्रिया नहीं जताई गई है। मानसून सत्र के दौरान विपक्ष ने पेगासस जासूसी कांड को लेकर कई दिनों तक संसद में हंगामा किया था और इस कारण कई विधेयक बिना चर्चा के पारित कर दिए गए। सियासी मामला होने के कारण सिर्फ ओबीसी विधेयक पर सरकार को विपक्ष का समर्थन हासिल हुआ। पूरे मानसून सत्र के दौरान विपक्ष धरनाए प्रदर्शनए हंगामे और मार्च निकालने में जुटा रहा और महत्वपूर्ण मुद्दों पर कोई बहस नहीं हो सकी।
सरकार और विपक्ष के बीच रिश्तों में इतनी ज्यादा तल्खी आ चुकी है कि आगे भी माहौल सुधारने की कोई संभावना नहीं दिख रही है। यही कारण है कि तय समय से पहले ही मानसून सत्र समाप्त कर दिया गया। विपक्ष ने इसके लिए सरकार के हठवादी रवैये को जिम्मेदार ठहराया है जबकि सरकार का कहना है कि विपक्ष चर्चा से लगातार भागता रहा।