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Krishi Kanoon Ki Wapsi: किसानों के आगे हारी मोदी सरकार, कृषि बिल पर ऐसे लड़ी गई जंग

Krishi Kanoon Ki Wapsi: किसान इन तीनों बिलों का विरोध बिलों के पास होने के पहले से ही कर रहे थे। लेकिन संसद में पास होकर कानून बनने के बाद इन बिलों का विरोध तीखा हो गया।

Ramkrishna Vajpei
Written By Ramkrishna VajpeiPublished By Shreya
Published on: 9 Dec 2021 2:53 PM IST (Updated on: 9 Dec 2021 2:59 PM IST)
Krishi Kanoon Ki Wapsi: किसानों के आगे हारी मोदी सरकार, कृषि बिल पर ऐसे लड़ी गई जंग
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किसान आंदोलन (फोटो साभार- सोशल मीडिया) 

Krishi Kanoon Ki Wapsi: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) का तीनों विवादित कृषि कानून वापस लेने का एलान किसानों की बहुत बड़ी जीत है। खासकर कार्तिक पूर्णिमा (Kartik Purnima) का दिन यानी गुरुपर्व (Gurpurab) का दिन किसानों के लिए बड़ी खुशी लेकर आया है। सितंबर 2020 में संसद ने तीन किसान बिलों (New Farm Laws) को पास किया। किसान इन तीनों बिलों का विरोध बिलों के पास होने के पहले से ही कर रहे थे। लेकिन संसद में पास होकर कानून बनने के बाद इन बिलों का विरोध तीखा हो गया।

जनवरी 2021 ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने इन कृषि कानूनों (Krishi Kanoon) पर रोक लगा दी। पंजाब, हरियाणा, पश्चिम उत्तर प्रदेश (Western Uttar Pradesh) से शुरू हुआ ये आंदोलन (Kisan Andolan) 26 नवंबर 2020 को दिल्ली की सीमाओं पर आकर ठहर गया। किसानों का दावा है कि आंदोलन के दौरान 700 से अधिक किसान शहीद हुए।

किसान आंदोलन की घटनाएं (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

सितंबर से शुरू हुए इस आंदोलन के दौरान वैसे तो अनगिनत घटनाएं हुईं जिसमें जनवरी में दिल्ली में हुई हिंसा से लेकर लखीमपुर खीरी में किसानों को कार से कुचले जाने तक की घटना शामिल है। सरकार की तरफ से किसान आंदोलन को जाट बनाम गूजर करार दिये जाने। दलालों का आंदोलन करार दिये जाने जैसे बातें कही गईं लेकिन इन सबसे बेअसर कोरोना काल से लेकर आज तक किसान आंदोलन (Farmers Protest) जारी रहा। इस आंदोलन के राजनीतिकरण की भी कोशिशें हुईं लेकिन आंदोलन चलता रहा। किसान आंदोलनकारियों ने अपने क्षेत्रों में भाजपा नेताओं (BJP Neta) के प्रवेश पर बैन लगाया तो उसको लेकर भी टकराव हुआ। 14 अक्टूबर 2020 से लेकर 22 जनवरी 2021 तक किसानों सरकार के बीच कई दौर की बातचीत भी हुई।

इन राज्यों ने विरोध में किया प्रस्ताव पारित

इस आंदोलन के दौरान छह राज्य विधानसभाओं केरल, पंजाब, छत्तीसगढ़, राजस्थान, दिल्ली और पश्चिम बंगाल ने इन कृषि कानूनों के विरोध में प्रस्ताव पारित किया। कृषि कानूनों के खिलाफ पहले तो राज्य स्तर पर प्रदर्शन होते रहे फिर किसान यूनियनों ने एकजुट होकर दिल्ली चलो का आह्वान किया और आंदोलन दिल्ली की सीमाओं पर आकर ठहर गया। नवंबर में किसानों के समर्थन में राष्ट्र्व्यापी हड़ताल भी हुई।

किसान आंदोलन के दौरान किसानों को खालिस्तानी राष्ट्रविरोधी (Khalistani Rashtravirodhi) तक कहा गया जिसमें किसानों ने आंसूगैस, लाठियां, गोलियां तक खाईं। लेकिन अंततः किसानों के दबाव में सरकार को झुकना पड़ा।

पीएम मोदी (फाइल फोटो साभार- ट्विटर)

बेशक सरकार की तरफ से यही कहा जाएगा जो आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने कहा कि सरकार किसानों को कृषि कानूनों के फायदे बता पाने में विफल रही। ये मोदी की नहीं सरकार संगठन और उसके कार्यकर्ताओं की विफलता है। देखना ये होगा कि पंजाब, उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों में होने वाले चुनावों की पूर्व संध्या पर सरकार का ये एलान (Modi Sarkar Ka Elan) कितना कारगर होता है।

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