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Peepal Farm: जानें बेजुबानों के मसीहा 'रॉबिन' की क्या है कहानी, लाखों लोग क्यों हैं इनके मुरीद?
Peepal farm: न्यूज़ट्रैक हिंदी ने रॉबिन से कुछ खास बातचीत की और उनके संघर्ष भरे सफर के बारे में जाना।
Peepal Farm: कहते हैं 'डिग्रियां तो तालीम के ख़र्चों की रसीदें हैं, इल्म वही है जो किरदार में झलकता है'। इस वाक्य को सच कर दिखाया है 'पीपल फर्म के सह-संस्थापक 'रॉबिन सिंह' ने. जी हां ! रॉबिन सिर्फ एक नाम नहीं है बल्कि इंसानियत का वह जीता जागता उदाहरण हैं जिसकी मिसाल समाज में हर किसी को दी जानी चाहिए।
आज जिस समाज में कुछ लोग बेजुबानों को नकार देते हैं। उन्हें धिक्कारते, दुत्कारते हैं, रॉबिन उसी समाज में इनके लिए एक मसीहा बने हुए हैं। बेजुबानों की भाषा समझना, उन्हें हर दर्द-तकलीफ से बचाने में प्रयासरत हैं। इतना ही नहीं, रॉबिन ने अमेरिका जैसी जगह, जहां नौकरी करना लोगों का ख्वाब होता है, उस जगह को छोड़कर वह दिन-रात जानवरों के हित के लिए कार्य कर रहे हैं। सबसे खास बात यह है कि वह न सिर्फ जानवरों बल्कि ऐसे युवाओं / लोगों के मार्गदर्शन के लिए वीडियो भी बनाते हैं जो अपने जीवन में हताशा का सामना कर रहे होते हैं। रॉबिन की वीडियो लाखों लोग देखना पसंद करते हैं।
न्यूज़ट्रैक हिंदी ने रॉबिन से कुछ खास बातचीत की और उनके संघर्ष भरे सफर के बारे में जाना। आइये पढ़ते हैं उनसे बातचीत के कुछ अंश: हु
सवाल : आपके सोशल मीडिया के बायो में एक लाइन लिखी है 'अच्छा काम करने के अलावा करने को और है भी क्या' इस लाइन को लिखने के पीछे क्या विचार था?
जवाब : दरअसल हम जो काम कर रहे हैं, वह बहुत ज़्यादा समस्याओं से घिरा है। कई बार हम फ्रस्टेड हो जाते हैं और लगता है छोड़ दो, लेकिन कई बार हम अल्टेरनेटिव निकालते हैं किसी भी चीज का। ऐसा लगता है कि अब दुनिया में आए हैं, तो क्या करें तो सबसे अच्छा है कि अच्छा काम करें।
सवाल : अच्छा बनने या अच्छा होने से आपका क्या तात्पर्य है?
जवाब : देखिए ! मेरे लिए किसी के भी शारीरिक कष्टों को दूर करना ही अच्छा होने की परिभाषा है। जैसे कि अगर हम केंचुए को भी पिन चुभाएंगे, तो वो पीछे हट जाएगा, न सिर्फ बेजुबान बल्कि इंसान भी शारीरिक कष्टों से परेशान होता है, तो अगर फिजिकल पेन बुरा है तो उसे हटाना मेरे लिए 'अच्छे' की परिभाषा है।
सवाल : आपकी लाइफ को अगर तीन हिस्सों यानी बचपन, किशोरावस्था, और आज का रॉबिन में बांटा जाए, तो क्या अनुभव शेयर करेंगे आप?
जवाब : बचपन मेरा थोड़ा तनावपूर्ण था, मेरी मां मुझे काफी सीख देती थी उस टाइम जो मुझे समझ नहीं आती थी क्योंकि मेरे दोस्त काफी अमीर हुआ करते थे। मुझे उस वक्त उनकी लाइफस्टाइल भाती थी. लगता था यही जिंदगी आरामदायक है। हालांकि बचपन में परिस्थितियां एकदम अलग थी मेरे लिए, हालात मन-मुताबिक नहीं थे लेकिन जैसे-तैसे बीता। इसके बाद, मैंने कंप्यूटर से जुड़ी कुछ स्किल्स सीखी और मैं फिर हैकर बन गया। फिर मुझे तुक्के से अमेरिका जाने का मौका मिला।
यहां मैंने अपने ड्रीम को रिलाइज किया। अधिकतर लोग लक्ष्य बनाते हैं लेकिन वहां तक नहीं पहुंच पाते, जिस घर-गाड़ी, बंगले का सपना मैं देखा करता था वह मुझे मिल गया था, लेकिन मैं खुश नहीं था। डेढ़ साल तक मैं इसी विचार में गुम रहा कि करना क्या है। इसी बीच मेरी मुलाक़ात लॉरेन से हुई, वह एक बेहद गरीब, ऐनीमिक, बीमार सी महिला थी। बावजूद इसके वह होटलों से झूठन इकठ्ठा करके कई सारे कुत्तों को खिलाती थी। वहां से मेरे जीवन की दिशा बदल गई। इसी दिशा पर चलते-चलते उस वक्त जो मैं ख़ुशी ढूंढने की कोशिश कर रहा था, वह मुझे मिल गई.
सवाल : लॉरेन ने आपकी लाइफ पर क्या असर डाला ?
जवाब : लॉरेन से मैंने सीखा कि जिंदगी का असली और सही मतलब 'दूसरों की मदद करना' है। उन्होंने मुझे जिंदगी जीने का तरीका सिखा दिया। मेरे लाइफ की फ़िलॉसफ़ी यानी कि 'जीवन जीने के लिए कम से कम लो और जियो ज़्यादा से ज़्यादा दूसरों की मदद के लिए'' पर मैं काम कर पाया। इसके अलावा, पीपल फर्म में उन्होंने कुछ समय तक काम किया। मैं फ़ोन पर जुड़ा रहता था उनसे। पिछले साल उनका देहांत हो गया।
सवाल : पुराने कपड़े खरीदने और पहनने के पीछे आपका क्या विचार है?
जवाब : जी। साल 2008 से ही मैं पुराने कपड़े, फर्नीचर का इस्तेमाल कर रहा हूं. दरअसल हमारे अंदर एक खोखलापन होता है, जिसे हम सामानों से भरने की कोशिश करते हैं। अगर आप ज़्यादा से ज़्यादा चीज़ों का उपभोग करते हैं, मतलब आप उतनी ही चीजों को नुकसान पहुंचा रहे हैं. 'उपभोग' मासूम दिखता है होता नहीं है। एक चीज बनने में न जाने कितनी ही और चीजों को नष्ट किया जाता है, इसलिए बेहतर है कि हम जिन्दा रहने (सर्वाइवल) के लिए जिएं न कि विलासिता के लिए।
सवाल : ऐसे लोग जो समाज में बेजुबानों के लिए जमीनी स्तर पर काफी कार्य कर रहे हैं, उनकी आप कैसे मदद करना चाहेंगे ?
जवाब : ये सही बात है! कई लोग हैं जो ग्राउंड पर बढ़िया काम कर रहे हैं। देखिए ऐसे फीडर्स, रेस्कयूर्स के लिए हमने व्हाट्सऐप पर एक एचएचए ग्रुप बना रखे हैं जिसमें वे जुड़ सकते हैं और अपनी चीजें साझा कर सकते हैं। बाकी इस पर मैं अभी बहुत कार्य करना चाहता हूं लेकिन उसे कैसे मैनेज करना है क्या करना है ये थोड़ा बड़ा विषय है। यह मेरे लिए एक बहुत बड़े सपने जैसा है जिसे असल में शक्ल देना मुश्किल लगता है।