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Operation Blue Star: पाक की जंग में साथ लड़े दो जांबाज एक दूसरे के खिलाफ बरसा रहे थे गोली

Operation Blue Star: भारतीय सेना द्वारा अपने देश में ही चलाया गया अब तक का सबसे बड़ा ऑपरेशन था।

Dharmendra Singh
Written By Dharmendra Singh
Published on: 6 Jun 2021 2:10 AM IST (Updated on: 6 Jun 2021 6:44 AM IST)
Kuldeep Singh Brar And Shabeg Singh
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 कुलदीप सिंह बरार, आॅपरेशन ब्लू स्टार के दौरान स्वर्ण मंदिर और सुबेग सिंह (फाइल फोटो: सोशल मीडिया) 

Operation Blue Star: ऑपरेशन ब्लू स्टार को भारत के इतिहास में कभी भूलाया नहीं जा सकता। भारतीय सेना द्वारा अपने देश में ही चलाया गया अब तक का सबसे बड़ा ऑपरेशन था। सेना ने अमृतसर के विश्व प्रसिद्ध सिखों के पवित्र स्थल हरिमंदिर साहिब (Golden Temple) परिसर को खालिस्तान समर्थक जनरैल सिंह भिंडरावाले से मुक्त कराने के लिए ऑपरेशन चलाया था। इसी ऑपरेशन ने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (Prime Minister Indira Gandhi) की मौत की पटकथा लिख दी थी, क्योंकि यह अभियान ही उनकी हत्या की वजह थी। इस ऑपरेशन ने देश की राजनीति की दिशा बदल दी।

ऑपरेशन ब्लू स्टार में भारतीय सेना के दो बड़े अधिकारी आमने-सामने थे। भारतीय सेना के लेफ्टीनेंट जनरल कुलदीप सिंह बरार (Lieutenant General KS Brar) इस ऑपरेशन को लीड कर रहे थे, तो वहीं रिटायर्ड लेफ्टीनेंट जनरल सुबेग सिंह (Rt. Lieutenant General Shabeg Singh ) जनरैल सिंह भिंडरवाले का सैनिक सलाहकार था। इस लड़ाई में एक तरफ जनरल सुबेग और दूसरी तरफ जनरल बरार थे, दोनों ने एक साथ 1971 की जंग में पाकिस्तान के खिलाफ लड़ाई थी, लेकिन दोनों दोस्त ऑपरेशन ब्लू स्टार में आमने-सामने थे।

जानिए कुलदीप सिंह बरार के बारे में

मेजर जनरल कुलदीप सिंह बरार नवीं इनफेंट्री डिवीजन और स्वर्ण मंदिर में प्रवेश करने वाली सेना के कमांडर थे। कुलदीप सिंह बरार को यह जिम्मेदार खास कारणों से दी गयी थी। कहा जाता है कि उनकी बहादुरी के कारण उनको इस अभियान की जिम्मेदारी दी गयी थी, जिसको उन्होंने बखूबी अंजाम दिया। जनरल बरार 1971 की पाकिस्तान और भारत की लड़ाई के हीरो थे। बरार 16 दिसंबर 1971 को ढाका में घुसने वाले सैनिकों में शामिल थे। जमालपुर की लड़ाई में वीरता के लिए उन्हें वीर चक्र से सम्मानित किया गया था। इसके बाद जनरल बरार को जेड प्लस की सुरक्षा प्रदान की गई थी। सुरक्षा कारणों से जनरल बरार रिटायरमेंट के बाद मुंबई में रहने का निर्णय लिया था।

ऑपरेशन ब्लू स्टार के दौरान अपने साथियों के साथ (कुलदीप सिंह बरार)

कौन था मेजर जनरल सुबेग सिंह
कहा जाता है कि अगर भिंडरावाले के साथ सुबेग सिंह नहीं होता तो स्वर्ण मंदिर में वह सबकुछ नहीं होता। जरनैल सिंह भिंडरावाले की असली ताकत सेना से बर्खास्त मेजर जनरल सुबेग सिंह था। सुबेग सिंह पर 2500 रुपए के गबन का आरोप था और उसको रिटायरमेंट से एक दिन पहले बर्खास्त कर दिया गया था, लेकिन अदालत ने उसे बाइज्जत बरी कर दिया। सेना से रिटायरमेंट से एक दिन पहले बर्खास्त करने को वह अपना अपमान मानता था। उसने इसी का बदला लेने के लिए भिंडरावाले से हाथ मिला लिया। सुबेग सिंह और जनरल बरार ने एक साथ पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध लड़ा था। लेकिन इस जंग में वह एक दूसरे के खिलाफ थे और एक दूसरे पर गोलियां दाग रहे थे।

ऑपरेशन ब्लू स्टार की वजह ( Reason for Operation Blue Star)

आपरेशन ब्लू स्टार (Operation Blue Star) भारतीय सेना ने 1984 में 3 से 6 जून तक चलाया था। माना जाता है कि यह घटना ओछी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं और गलत रणनीति का नतीजा थी। राजनीति के जानकारों का कहना है कि भिंडरावाले को आगे बढ़ाने में कांग्रेस का ही हाथ था। अकाली दल की काट के लिए जैल सिंह और दरबारा सिंह ने भिंडरावाले को आगे बढ़ाया था। संजय गांधी का उसकी पीठ पर हाथ था और उसे पंजाब का अघोषित मुखिया बना दिया गया था। पत्रकार कुलदीप नैयर की किताब के मुताबिक, संजय गांधी सोचते थे कि अकाली दल के तत्कालीन मुखिया संत हरचरण सिंह लोंगोवाल को एक और संत ही टक्कर दे सकता है। कांग्रेस को संत दमदमी टकसाल (सिखों की एक प्रभावशाली संस्था) के भिंडरावाले के रूप में मिल गया। उन्होंने अपनी किताब में लिखा है कि कांग्रेस नेता कमलनाथ ने माना था कि वह भिंडरावाले को पैसे देते थे, उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि भिंडरावाले आतंकवाद के रास्ते पर जाएगा। लेकिन हालात बदल गए और भिंडरावाले इंदिरा गांधी सरकार के लिए गले का फांस बन गया।
हालात तेजी से बदले और अकाली और भिंडरावाले साथ आ गए। दोनों सरकार के खिलाफ खड़े हो गए थे। 1982 में हरचरण सिंह लोंगोवाल ने धर्म युद्ध मोर्चा की स्थापना कर दी और आनंदपुर साहिब प्रस्ताव को मनवाना प्रमुख मांग थी। इस प्रस्ताव में देश के संघीय ढांचे को तोड़ने वाली कई मांगे रखी गईं और दूसरी मांग में पंजाब को ज़्यादा अधिकार देने की बात कही गई थी। हालांकि खलिस्तान की मांग नहीं की गई थी। पंजाब में हालात बिगड़ चुके थे और टकराव होना तय हो गया था।
इंदिरा गांधी की सरकार को आनंदपुर साहिब प्रस्ताव की अधिकतर मांगें नामंजूर थीं और जो मानी थी उसको भी पूरा नहीं किया। सरकार और मोर्चा के साथ आखिरी बैठक 26 मई को हुई थी। दोनों गुट मानने का तैयार नहीं हुआ जो ऑपरेशन ब्लू स्टार की वजह बना।

जनरैल सिंह भिंडरवाले वाले अपने साथियों के साथ (फाइल फोटो: सोशल मीडिया)


कितने दिन तक चला ऑपरेशन ब्लू स्टार

भिंडारवाले ने स्वर्ण मंदिर को किले में तब्दील कर लिया था और उसका गुट चाहता था कि आम पंजाबी के विद्रोह करने तक संघर्ष चलता रहे, तो वहीं भारतीय सेना के के तत्कालीन मेजर जनरल कुलदीप सिंह बरार को आतंकियों से निपटने के लिए कमान सौप दी गई थी। बरार से कहा गया था कि 48 घंटों में स्वर्ण मंदिर को बिना किसी नुकसान के खाली करवाना है। भिंडारवाले की तरफ से जनरल सुबेग ने मोर्चा संभाला हुआ था। दो जून को इंदिरा गांधी ने आतंकियों से हथियार छोड़ने की अपील की थी। सेना ने 3 जून को'ऑपरेशन ब्लू स्टार' शुरू कर दिया। प्रदेश की टेलीफोन और बिजली काट दी गई। इसके बाद मंदिर की घेराबंदी कर फायरिंग की शुरुआत कर दी गई जो भिंडरावाले की मौत के बाद 7 जून की सुबह समाप्त हुई।

ऑपरेशन में मौतों का आंकड़ा

जिस दिन ऑपरेशन ब्लू स्टार शुरू किया गया उस दिन गुरु अर्जुन देव शहीदी दिवस भी था इसके चलते मंदिर परिसर में काफी लोग जमा थे। सेना के हाथ बंधे थे और वह खुलकर फायरिंग नहीं कर रही थी। आतंकियों ने लोगों को ढाल बना लिया और मंदिर से बाहर नहीं जाने दिया। सेना की परेशानी बढ़ गई। सेना ने किसी तरह लोगों बाहर निकाला और 5 जून की रात को सेना ने निर्णायक हमला बोल दिया। इसके बाद सेना ने 6 जून की रात को जरनैल सिंह भिंडरावाले का शव बरामद किया। 7 जून की सुबह ऑप्रेशन ब्लू स्टार' खत्म हो गया जिसमें 83 सौनिको और आतंकियों समेत 492 लोगों की मौत हुई थी।

ऐसे मारा गया भिंडरावाले

ऑपरेशन ब्लू स्टार शुरू होने के बाद सेना को पता चला कि भिंडरावाले के पास राॅकेट भी हैं। सैनिकों को कामयाबी मिलती नहीं दिख रही थी और समय खत्म हो रहा था। इसके बाद सेना ने मशीनगन, हल्की तोपें, रॉकेट और लड़ाकू टैंक से हमला बोल दिया। मंदिर की बाहरी दीवार तोड़कर बमबारी की गई। इस हमले में आतंकियों को काफी नुकसान पहुंचा। इस आखिरी हमले में भिंडरावाले, सुबेग सिंह और अमरीक सिंह मारे गए।

आॅपरेशन के बाद क्षतिग्रस्त दीवारें (फाइल फोटो: सोशल मीडिया)

सिखों की भावनाएं हुईं आहत

दरअसल अमृतसर में स्थित हरमंदिर साहिब (Golden Temple) सिख समुदाय के सबसे पूजनीय स्थलों में शामिल हैं। भिंडरावले ने स्वर्ण मंदिर पर कब्जा कर लिया था। भारतीय सेना ने खालिस्तान के समर्थक जरनैल सिंह भिंडरावाले का मारने और सिखों के पवित्र स्थल स्वर्ण मंदिर को आतंकियों से मुक्त कराने के लिए अभियान चलाया। ऑपरेशन ब्लू स्टार के दौरान स्वर्ण मंदिर में जो कुछ हुआ उसे दुनियाभर के सिखों की भावनाएं आहत हुईं। सिखों ने इसे हरमंदिर साहिब की बेअदबी माना। क्योंकि इस घटना में मंदिर को काफी नुकसान हुआ।

खालिस्तान का पूरा आंदोलन

साल 1947 में जब भारत के बंटवारे की अंग्रेज तैयारी कर रहे थे, तभी कुछ सिख नेताओं ने अलग देश खालिस्तान की मांग उठाई। आजादी के बाद खालिस्तान की मांग को लेकर हिंसक आंदोलन हुआ। इस आंदोलन में कई लोगों की मौत हुई है। इसके बाद भी बार-बार अलग सिख देश की मांग लगातार उठती रही। 1980 के दशक में खालिस्तान आंदोलन चरम पर था। जनरैल सिंह भिंडरावाले खालिस्तान का सबसे मजबूत नेता बनकर सामने आया। उसने स्वर्ण मंदिर के हरमंदिर साहिब को अपना ठिकाना बना लिया और वहीं से अपनी गतिविधियां चलाता रहा।

ऑपरेशन ब्लू स्टार के दौरान फायरिंग करते सैनिक (फाइल फोटो: सोशल मीडिया)

1984 में स्वर्ण मंदिर में का हाल
साल 1984 में स्वर्ण मंदिर को खालिस्तान समर्थक भिंडरावाले से मुक्त कराने के लिए ऑपरेशन ब्लू स्टार चलाया गया। अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में अलगाववादी बाते तीन सालों से कब्जा जमाए हुए थे। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सेना को यह ऑपरेशन चलाने का आदेश दिया था। इसमें भिंड़रावले तो मारा गया, लेकिन मंदिर को काफी नुकसान पहुंचा था।

अभियान खत्म होने के बाद मंदिर में हथियार

भिंडरावाले के मारे जाने के बाज सेना ने 7.62 एमएम की हल्की मशीनगन 41, 7.62 एमएम की एसएलआर 84, 7.62 एमएम चीनी रायफल 52, असारडिट रायफल (सभी तरह की) 28, 303 रायफल 398, कार्बाइन 40, 5.56 एमएम सब मशीन गन 50, पिस्तौल-रिवाल्वर (टकसाली नमूने के) 85, पिस्तौल (देशी) 67, 12 बोर की गन 77, रॉकेट चालक ग्रेनेड लांचर (एंटी टैंक गन) बरामद किया था।










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