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Pegasus Case: जस्टिस रवीन्द्रन आयोग ने जांच से जुड़ी 11 सवालों पर मांगी जनता की राय, 31 मार्च तक समय
Pegasus spyware case : आयोग ने आम लोगों से ये भी पूछा है, कि क्या सरकारी जासूसी या निगरानी की सीमा रेखा तय की जानी चाहिए? साथ ही, क्या कोई शिकायत निवारण तंत्र जैसी व्यवस्था हो?
Pegasus spyware case : आयोग ने आम लोगों से ये भी पूछा है, कि क्या सरकारी जासूसी या निगरानी की सीमा रेखा तय की जानी चाहिए?बेहद चर्चित पेगासस जासूसी मामले (Pegasus case) की जांच कर रहे जस्टिस रवींद्रन (Justice Ravindran) आयोग ने 11 महत्वपूर्ण सवालों पर अब जनता से राय मांगी है। जनता को राय देने के लिए 31 मार्च 2022 तक का समय दिया गया है। इन सवालों में आम लोगों से ये भी पूछा गया है कि क्या सरकारी जासूसी या निगरानी की सीमा रेखा तय की जानी चाहिए? और, यदि किसी की लगातार निगरानी की जा रही हो, तो क्या उसके लिए कोई शिकायत निवारण तंत्र जैसी व्यवस्था हो?
बता दें, कि जस्टिस रवींद्रन आयोग का गठन सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) किया है। इस्राइली जासूसी सॉफ्टवेयर पेगासस (israeli spy software pegasus) पर बवाल मचने के बाद सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी। सर्वोच्च अदालत ने पूर्व जस्टिस आर.वी रवीन्द्रन की अध्यक्षता में एक जांच आयोग का गठन किया।
आयोग में कौन-कौन?
जस्टिस रवींद्रन आयोग में गांधीनगर राष्ट्रीय फोरेंसिक विज्ञान विश्वविद्यालय के प्रोफेसर नवीन कुमार चौधरी, केरल के अमृता विश्वविद्यालय में इंजीनियरिंग पढ़ाने वाले प्रभारण पी तथा आईआईटी बॉम्बे (IIT Bombay) में कंप्यूटर विज्ञान व इंजीनियरिंग के एसोसिएट प्रोफेसर अश्विन अनिल गुमस्ते शामिल हैं।
'Right to Privacy' के उल्लंघन का आरोप
सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में जासूसी सॉफ्टवेयर पेगासस के जरिए 'निजता के अधिकार' (Right to Privacy) के उल्लंघन का आरोप लगाया गया है। साथ ही, यह भी कहा गया है कि यह जासूसी सिस्टम इस्राइल की कंपनी द्वारा सिर्फ किसी देश की सरकारों और उनकी एजेंसियों को ही बेचे गए थे। सुप्रीम कोर्ट ने अक्तूबर में जासूसी के आरोपों की जांच के लिए इस समिति का गठन किया था।
क्या है पेगासस?
दरअसल, पेगासस एक स्पाईवेयर है। यह मोबाइल फोन में घुसपैठ के जरिये पूरा नियंत्रण पा लेता है। इस स्पाईवेयर को लेकर सऊदी अरब, पोलैंड, संयुक्त अरब अमीरात, मैक्सिको और अब भारत सहित कई देशों में जासूसी के आरोप लग चुके हैं। इन देश की सरकारों पर मानवाधिकार कार्यकर्ताओं (human rights activists),पत्रकारों (journalists) और राजनेताओं की जासूसी के आरोप लगे हैं। इस मामले में भारतीय संसद में भारी हंगामा भी मच चुका है। इसके बाद यह जासूसी कांड मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा।