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PM Modi ki America Yatra: जोरदार रही मोदी की अमेरिका यात्रा, भारत ने दिखाई अपनी मजबूती

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा के सकारात्मक नतीजे देखने को मिलने लगा

Neel Mani Lal
Published on: 26 Sept 2021 4:52 PM IST
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पीएम नरेंद्र मोदी संग अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन (फोटो साभार- ट्विटर) 

नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi) की अमेरिका यात्रा, कोरोना महामारी आने के बाद से पहली बड़ी और महत्वपूर्ण विदेश यात्रा थी। कोरोना काल में इसके पूर्व मोदी सिर्फ बांग्लादेश ही गए थे। सवा साल से ज्यादा समय कोरोना महामारी में बीता है। इस दौरान दुनिया में कई बड़े बदलाव आ चुके हैं। अमेरिका समेत कई देशों के शीर्ष नेता बदल चुके हैं, देशों की प्राथमिकतायें और नीतियां भी बदल चुकी हैं। ऐसे में मोदी का दौरा अमेरिका बहुत महत्व रखता है और ये दौरा द्विपक्षीय संबंधों में जरूर मजबूती लायेगा।

पीएम मोदी की अमेरिका यात्रा (pm modi ki america yatra) के तीन हिस्से रहे– क्वाड की बैठक, प्रेसिडेंट बिडेन के साथ मीटिंग और संयुक्त राष्ट्र महासभा में संबोधन। अमेरिका यात्रा के दौरान पीएम मोदी ने बड़ी कंपनियों के सीईओ के साथ भी अलग अलग मुलाकात की। बदले परिवेश में मोदी की अमेरिका यात्रा काफी महत्वपूर्ण रही है। इसके सकारात्मक परिणाम आने वाले दिनों में देखे जा सकते हैं।

क्वाड की बैठक

क्वाड की बैठक में भारत, ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका ने आपसी संबंधों को बढ़ाने और सुरक्षा हितों की बात की लेकिन चीन या बीजिंग शब्द का इस्तेमाल किसी ने नहीं किया। इससे लगता है कि बिडेन प्रशासन अब एक कूटनीतिक रवैया अपनाते हुए आगे बढ़ रहा है। 2019 में हुई क्वाड की बैठक में काफी कड़े शब्दों का इस्तेमाल किया गया था। बहरहाल, क्वाड की बैठक में कोरोना और कोरोना के चलते आये आर्थिक संकट से निपटने पर सहमति बनी। वैक्सीन के बारे में सहयोग की बात हुई। लेकिन वैक्सीन निर्माण में पेटेंट में ढील देने का मसला नहीं उठाया गया। बैठक में जलवायु परिवर्तन पर चर्चा हुई और ग्लोबल वार्मिंग को उपयुक्त लेवल पर लाने पर सहमति बनी। इसके अलावा अफगानिस्तान की जमीन का आतंकवाद के लिए उपयोग न होने देने का संकल्प जताते हुए क्वाड देशों ने आतंकी फंडिंग और सीमा पार आतंकवाद पर पाकिस्तान को भी इशारों में आगाह किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीनी एप का मुद्दा भी उठाया। सेमी कंडक्टर सप्लाई चेन सहयोग के बहाने चीनी बर्चस्व को समाप्त करने की रणनीति पर सहमति बनी।

बिडेन के संग मीटिंग

वैसे तो बिडेन के राष्ट्रपति बनने के बाद उनकी और मोदी की कई बार फोन पर बातचीत हुई है लेकिन यह पहली बार था जब दोनों नेताओं ने आमने-सामने बैठकर विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की। इस बैठक में पीएम मोदी ने कहा कि मौजूदा दशक में भारत और अमेरिका एक दूसरे के पूरक हो सकते हैं। वहीं अमेरिकी राष्ट्रवपति जो बिडेन ने कहा कि मैंने काफी पहले ही बता दिया था कि आने वाले वक्त में भारत और अमेरिका दुनिया के सबसे करीबी देश होंगे। मोदी और बिडेन के बीच बातचीत में द्विपक्षीय व्यापार, कोरोना वैक्सीन एक्सपोर्ट और जलवायु परिवर्तन के मुद्दे प्रमुख रहे। इस बैठक में कोई करार या समझौते का एजेंडा नहीं था सो ऐसा कुछ नहीं हुआ।

कमला हैरिस से मुलाकात

पीएम मोदी की मुलाकात अमेरिकी उपराष्ट्रपति कमला हैरिस से भी हुई। कमला हैरिस बीते समय में मोदी सरकार की नीतियों की काफी आलोचना करती रही हैं।

इस मुलाकात में हैरिस ने अन्य विषयों पर बातचीत करने के अलावा लोकतंत्र के महत्व की चर्चा की। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि कमला हैरिस का भारत के प्रति रुख पहले से ही आलोचनात्मक रहा है। इसी क्रम में उन्होंने लोकतंत्र की बात उठायी।

लोकतंत्र का मसला

मोदी के यात्रा के दौरान हैरिस और बिडेन, दोनों ने ही लोकतान्त्रिक वैल्यू का सम्मान किये जाने की बात की। बाद में पीएम मोदी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में भाषण दिया। अपने संबोधन में मोदी ने भारत को 'सभी लोकतन्त्रों की जननी' करार दिया। मोदी ने अपने संबोधन में जलवायु परिवर्तन, कोरोना महामारी, गरीबी और अफगानिस्तान से लेकर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधारों तक की चर्चा की। उन्होंने पाकिस्तान और चीन का नाम लिए बगैर उनको आतंकवाद का समर्थक और अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था के नियमों का उल्लंघन करने वाला करार दिया।

मोदी ने अपने संबोधन की शुरुआत में ही कहा - मैं एक ऐसे देश का अप्रतिनिधित्व कर रहा हूँ जो सभी लोकतन्त्रों की मां है। उन्होंने कहा कि भारत अपनी आज़ादी के 75 वें वर्ष में हैं। लेकिन हमारे देश की लोकतान्त्रिक परम्पराएँ हजारों साल पुरानी हैं। मोदी ने कहा कि यह भारतीय लोकतंत्र की ताकत ही है जिसकी वजह से एक बच्चा जो कभी एक चाय दूकान में अपने पिता की मदद किया करता था, वो आज भारत के प्रधानमंत्री के रूप में संयुक्त राष्ट्र महासभा में मौजूद है।

दरअसल, बिडेन-हैरिस की डेमोक्रेट टीम का रुझान ट्रम्प प्रशासन जैसा नहीं है। बिडेन-हैरिस की प्राथमिकतायें और डिप्लोमेसी अलग तरह की है, जिसमें साम्यवादी पुट दिखता तो है। लेकिन बात अमेरिका फर्स्ट पर घूम फिर के आ जाती है। अमेरिका ने चीन, पाकिस्तान, तालिबान, रूस आदि के खिलाफ बहुत सख्त रुख नहीं अपनाया हुआ है। लेकिन अफगानिस्तान के घटनाक्रम के बाद अमेरिका के लिए भारत सामरिक रूप से महत्वपूर्ण साथी के रूप में उभरा है। इसके अलावा चीन के मुकाबले भारत ग्लोबल कंपनियों के लिए आकर्षण का केंद्र भी बना है।



Raghvendra Prasad Mishra

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