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Election Results: कड़े मुकाबले के बीच राज्यपालों की भूमिका अहम, इन राज्यों में भाजपा पृष्ठभूमि वाले गवर्नर

Election Results: राज्यपालों की अहम भूमिका को देखते हुए यह जानना दिलचस्प है कि जिन पांच राज्यों में चुनाव हुए हैं, वहां कौन-कौन राज्यपाल तैनात हैं और उनकी पृष्ठभूमि क्या रही है।

Anshuman Tiwari
Written By Anshuman TiwariPublished By Vidushi Mishra
Published on: 9 March 2022 5:26 PM IST
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चुनावी परिणामों पर असर (फोटो-सोशल मीडिया)

Election Results: पांच राज्यों में मतदान का काम पूरा होने के बाद अब सबकी निगाहें गुरुवार को होने वाली मतगणना पर टिकी हुई हैं। एग्जिट पोल में लगाए गए अनुमानों के मुताबिक कई राज्यों में कड़ा मुकाबला दिख रहा है और चुनावी नतीजों में विधायकों की संख्या को लेकर बड़ा पेंच फंस सकता है। ऐसी स्थिति में राज्यपालों की भूमिका काफी अहम मानी जा रही है। राज्यपाल सबसे बड़ी पार्टी या सबसे बड़े गठबंधन को सरकार बनाने का न्योता दे सकते हैं। समर्थन पत्रों के जरिए राजभवन में परेड का नजारा भी दिख सकता है।

राज्यपालों की अहम भूमिका को देखते हुए यह जानना दिलचस्प है कि जिन पांच राज्यों में चुनाव हुए हैं, वहां कौन-कौन राज्यपाल तैनात हैं और उनकी पृष्ठभूमि क्या रही है। पांच राज्यों में सबसे महत्वपूर्ण नतीजे उत्तर प्रदेश के माने जा रहे हैं क्योंकि यहां के नतीजों का पूरे देश की सियासत पर बड़ा असर पड़ने वाला है। राज्य में मतगणना से पूर्व ही ईवीएम को लेकर आरोप-प्रत्यारोप के कारण सियासत गरमाई हुई है। ऐसे मैं अब सबकी निगाहें नतीजों और उसके बाद राज्यपाल की ओर से उठाए जाने वाले कदम पर टिकी हुई है।

गुजरात भाजपा का बड़ा चेहरा रही हैं आनंदीबेन

सबसे पहले बात उत्तर प्रदेश की मौजूदा राज्यपाल आनंदीबेन पटेल की। उनके पति मफत भाई पटेल भी भाजपा के बड़े नेता थे। अहमदाबाद के एक स्कूल की प्रिंसिपल की भूमिका में दो छात्राओं को नर्मदा में डूबने से बचाने के बाद वे चर्चा में आई थीं और बाद में उन्होंने गुजरात भाजपा के बड़े नेता और पूर्व मुख्यमंत्री शंकर सिंह वाघेला और नरेंद्र मोदी के अनुरोध पर भाजपा की सदस्यता ग्रहण की थी। पहले उन्हें गुजरात महिला भाजपा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी गई।

वे पहली बार 1994 में भाजपा से राज्यसभा सांसद बनीं और उसके बाद 1998 में उन्हें गुजरात मंत्रिमंडल में शामिल किया गया। नरेंद्र मोदी के गुजरात का मुख्यमंत्री बनने के बाद भी वे लगातार मंत्री बनी रहीं और बाद में 2014 में मोदी के देश का प्रधानमंत्री बनने पर उन्हें गुजरात का मुख्यमंत्री बनाया गया।

मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद उन्हें राज्यपाल की जिम्मेदारी सौंपी गई। उत्तर प्रदेश का राज्यपाल बनने से पहले वे मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी इस पद की जिम्मेदारी संभाल चुकी हैं। उत्तर प्रदेश में कड़ी सियासी जंग को देखते हुए उनकी भूमिका को काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है और चुनाव नतीजों के बाद उनके फैसले पर सभी की निगाहें लगी हुई हैं।

केरल भाजपा के दो बार अध्यक्ष रहे पिल्लई

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से राजनीतिक कॅरियर की शुरुआत करने वाले गोवा के राज्यपाल श्रीधरन पिल्लई को केरल में भाजपा का बड़ा चेहरा माना जाता था। वे दो बार प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष भी रहे हैं। पहली बार उन्होंने 2003 से 2006 तक प्रदेश भाजपा अध्यक्ष के रूप में बड़ी भूमिका निभाई थी। बाद में 2018 में उन्हें एक बार फिर प्रदेश भाजपा की कमान सौंपी गई। युवावस्था में उन्होंने विद्यार्थी परिषद की राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाई थी। उन्हें 2019 में मिजोरम का राज्यपाल बनाया गया था मगर बाद में उन्हें गोवा के राज्यपाल की जिम्मेदारी सौंपी गई।

गोवा में इस बार भाजपा और कांग्रेस के बीच कड़ा मुकाबला माना जा रहा है। एग्जिट पोल के नतीजों में भी दोनों पार्टियों के बीच कांटे के मुकाबले की बात कही गई है। गोवा पर सबकी निगाहें इसलिए भी लगी हुई हैं कि 2017 के चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद कांग्रेस यहां सरकार नहीं बना सकी थी। 2017 में कांग्रेस के 17 विधायक चुने गए थे जबकि भाजपा ने 13 विधायक होने के बावजूद क्षेत्रीय दलों और निर्दलीयों के समर्थन से सरकार बनाने में कामयाबी हासिल की थी। इस बार भी इस सरकार के गठन में राज्यपाल की भूमिका महत्वपूर्ण हो सकती है।

कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए थे पुरोहित

पंजाब के राज्यपाल बनवारीलाल पुरोहित कांग्रेस से सियासत की शुरुआत करने के बाद भाजपा में शामिल हुए थे। पहले उन्हें महाराष्ट्र के विदर्भ इलाके में कांग्रेस का मजबूत नेता माना जाता था और उन्होंने 1978 में पहली बार विधायक का चुनाव जीता था। बाद में वे कांग्रेस के टिकट पर 1984 में सांसद भी चुने गए। 1999 में उन्होंने भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली थी मगर बाद में विदर्भ में अपना अलग राजनीतिक दल भी बनाया था। 2009 में उन्होंने भाजपा की सदस्यता ग्रहण करके लोकसभा चुनाव में फिर किस्मत आजमाई थी मगर उन्हें हार का सामना करना पड़ा।

पुरोहित को 2016 में असम के राज्यपाल पद पर नियुक्त किया गया था और फिर अगले साल उन्हें तमिलनाडु के राज्यपाल की जिम्मेदारी सौंपी गई। पिछले साल अगस्त महीने में वे पंजाब के राज्यपाल नियुक्त किए गए थे। पंजाब की 117 सदस्यीय विधानसभा सीटों के लिए इस बार कड़ा मुकाबला हो रहा है। राज्य में मुख्य रूप से आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला माना जा रहा है और ऐसे में इस राज्य में भी राज्यपाल की भूमिका महत्वपूर्ण हो गई है।

तमिलनाडु भाजपा से जुड़े रहे हैं गणेशन

मणिपुर में इन दिनों तमिलनाडु में भाजपा का बड़ा चेहरा रहे ला गणेशन राज्यपाल की भूमिका निभा रहे हैं। गणेशन को तमिलनाडु में ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी भाजपा में जिम्मेदारी सौंपी गई थी। वे पार्टी में राष्ट्रीय सचिव और राष्ट्रीय उपाध्यक्ष की भूमिका भी निभा चुके हैं। आपातकाल के बाद से ही वे भाजपा से जुड़े रहे हैं और जानकारों का मानना है कि इसी कारण उन्हें गवर्नर पद पर नियुक्ति भी मिली थी।

मणिपुर में इस बार भाजपा को सत्ता का बड़ा दावेदार माना जा रहा है। हालांकि पार्टी को कांग्रेस की ओर से कड़ी चुनौती भी मिल रही है। ऐसे में हर किसी की नजर चुनावी नतीजों और उसके बाद राज्यपाल की भूमिका पर टिकी हुई है।

उत्तराखंड में पूर्व सैन्य अधिकारी पर निगाहें

पांचों राज्यों में सिर्फ उत्तराखंड ही अकेला ऐसा राज्य है जहां कोई राजनीतिक चेहरा नहीं बल्कि पूर्व सैन्य अधिकारी गुरमीत सिंह राज्यपाल की भूमिका निभा रहे हैं। वे भारतीय सेना के उपप्रमुख के तौर पर चीन के साथ उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के सीमा विवाद को सुलझाने में कामयाब रहे थे। हालांकि वे लद्दाख के मामले में चीन के साथ विवाद को नहीं खत्म कर सके।

एलएसी पर चीन के साथ पैदा हुए विवाद के दौरान भी भारत की ओर से उनकी मदद ली गई थी। चीन का कई बार दौरा करने के बावजूद उन्हें कामयाबी नहीं मिली।

बेबीरानी मौर्य के इस्तीफे के बाद पिछले साल सितंबर में उन्हें उत्तराखंड के राज्यपाल की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। उत्तराखंड के संबंध में एग्जिट पोल के नतीजों से संकेत मिला है कि इस बार राज्य में भाजपा और कांग्रेस के बीच कांटे का मुकाबला दिख रहा है। ऐसे में राज्यपाल गुरमीत सिंह की भूमिका काफी महत्वपूर्ण हो सकती है।



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Vidushi Mishra

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