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Congress PK Relation: जाते–जाते गांधी परिवार पर तंज कस गए पीके, कहा – कांग्रेस को मेरी नहीं, अच्छी लीडरशिप की जरूरत
Congress PK Relation: बीजेपी (BJP) के खिलाफ देशभर में एक मजबूत मोर्चा बनाने की कवायद में जुटे प्रशांत किशोर एकबार फिर देश की सबसे पुरानी पार्टी को इस मिशन में जोड़ने में असफल रहे।
New Delhi: साल 2014 के लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections 2014) के बाद से देश की सियासत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बाद अगर किसी शख्स की सबसे अधिक चर्चा की जाती है तो वो हैं मशहूर चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर (Election Strategist Prashant Kishor)। कभी पीएम मोदी के बेहद करीब रहे पीके को आज देश में उनके सबसे बड़े विरोधी के तौर पर देखा जाता है। बीजेपी (BJP) के खिलाफ देशभर में एक मजबूत मोर्चा बनाने की कवायद में जुटे प्रशांत किशोर एकबार फिर देश की सबसे पुरानी पार्टी को इस मिशन में जोड़ने में असफल रहे।
कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व और नेताओं के साथ कई दौर की मैराथन बैठक करने के बाद भी वो जब उन्हें समझाने में सफल नहीं रहे, तो जाते –जाते उन्होंने कांग्रेस (Congress) के प्रथम परिवार पर तंज कस पार्टी की सबसे बड़ी कमजोरी का अहसास करा दिया। दरअसल प्रशांत किशोर ने 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले देश में कांग्रेस संगठन के रिवाइवल को लेकर 600 पन्नों का भारी–भरकम प्रेजेंनटेशन दिया था। कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी (Congress President Sonia Gandhi) ने 8 सदस्यों की कमेटी से PK को पार्टी में शामिल करने पर सलाह मांगी थी। कमेटि ने पीके से कांग्रेस में आने से पहले अन्य दलों का साथ छोड़ने को कहा था।
क्या चाहते थे पीके
चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की सियासी महत्वाकांक्षा किसी से छिपी नहीं है। मोदी –शाह की बीजेपी को बिहार –बंगाल में करारी शिकस्त देने के अलावा अपने मैनेजमेंट में कई और बड़ी चुनावी सफलता दिलाने वाले पीके लंबे समय से सक्रिय राजनीति में उतरने का मन बना रहे हैं। जनता दल यूनाइटेड (Janta Dal United) में अपनी पहली असफल सियासी पारी के बाद पीके अब संभलकर चल रहे हैं और किसी दल को ज्वाइन करने के लिए जल्दबाजी नहीं दिखा रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक, प्रशांत किशोर कांग्रेस में पावरफुल पद चाहते थे। वो कांग्रेस में केवल सोनिया गांधी के नीचे काम करना चाहते थे। उनकी इस मंशा ने गांधी परिवार के करीबी नेताओं और कांग्रेस के पुराने चावल को उनके खिलाफ कर दिया।
पीके की यह मांग ठीक वैसे ही थी जैसा उन्होंने 2014 के आम चुनाव के बाद पीएम मोदी के सामने रखी थी। वो पीएमओ में ताकतवर पद चाहते थे और केवल उन्हें (पीएम मोदी) रिपोर्ट करना चाहते थे। जिसे अमित शाह ने खारिज कर दिया था। जिसके बाद क्या हुआ ये सबके सामने है। ऐसा ही कुछ उनके साथ कांग्रेस में हुआ है।
गांधी परिवार पर तंज
प्रशांत किशोर इससे पहले भी कांग्रेस में शामिल होने की कोशिश कर चुके हैं। लेकिन पहले भी उनकी ये कोशिश परवान नहीं चढ़ सकी। जिसके बाद उन्होंने मीडिया में कांग्रेस और विशेषकर गांधी परिवार के खिलाफ कई बयान भी दिए थे। लेकिन पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में मिली कांग्रेस को करारी हार ने दोनों को एकबार फिर करीब ला दिया। दरअसल देश के लगभग सभी क्षेत्रीय दलों से अच्छे संबंध रखने वाले पीके को पता है कि राष्ट्रीय राजनीति में जिस पद एवं प्रतिष्ठा की वो लालसा रखते हैं वो केवल कांग्रेस में ही मिल सकती है।
क्योंकि बीजेपी के खिलाफ राष्ट्रीय स्तर पर आज भी एक बड़ा विकल्प कांग्रेस ही है। लेकिन एकबार फिर पीके कांग्रेस को अपनी शर्तों पर मनवा नहीं सके। अब इसे तंज कहें ये मुफ्त सलाह, प्रशांत किशोर ने कांग्रेस में शामिल होने के अटकलों पर विराम लगाते हुए कह दिया कि पार्टी को उनकी नहीं बल्कि एक अच्छी लीडरशिप की जरूरत है। जो संगठन में बड़े पैमाने पर बदलाव कर उसे फिर से जिंदा कर सके। पीके की तरफ से पहले ही बताया जा चुका है कि ये कांग्रेस में जाने की उनकी अंतिम कोशिश है।
पीके को लेकर कांग्रेस में था संदेह
प्रशांत किशोर को लेकर शुरू से ही कांग्रेस का एक तबका असहज रहा है। बताया जा रहा है कि कांग्रेस के ऐसे ही कुछ दिग्गज नेताओं ने उनके कोशिशों पर पानी फेर दिया। दरअसल पीके बीजेपी के अलावा कई अन्य प्रमुख कांग्रेस विरोधी क्षेत्रीय पार्टियों के साथ काम कर चुके हैं। बीजेपी, आप, जेडीयू, टीएमसी सहित कई राजनीतिक दलों से उनके गठजोड़ को लेकर नेताओं में आम राय नहीं बन पा रही थी। किशोर ने कांग्रेस में जान फूंकने के लिए 600 पेज का प्रजेंटेशन दिया। इसे देखने के लिए एक कमिटी बनाई गई।
फिर इस कमिटी की रिपोर्ट पर गौर करने के लिए एक और एंपावर्ड कमिटी बना दी गई। यह साफ दिखाता है कि कांग्रेस उन पर आंख मूंदकर विश्वारस नहीं कर पा रही है। इसके बाद हाल ही में टीआरएस (TRS) के साथ उनकी कंपनी आईपैक का तेलंगाना चुनाव को लेकर एक अनुबंध सामने आय़ा। पीके खुद भी अभी सीएम केसीआर के घर दो दिनों से रूके थे।
यहां बता दें कि तेलंगाना विधानसभा में कांग्रेस मुख्य विपक्षी पार्टी है। ऐसे में केसीआर उसकी विरोधी है। यही वजह है कि पार्टी में उन्हें लेकर काफी संदेह था। इसके बाद हाल के दिनों में कांग्रेस के कई प्रमुख नेताओं ने पार्टी छोड़कर ममता बनर्जी की टीएमसी ज्वाइन की, जिसके पीछे भी पीके का हाथ बताया जा रहा है। सबसे ताजा उदाहरण असम कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष रिपुण बोरा का है जिन्होंने राज्यसभा चुनाव में मिली हार के बाद टीएमसी ज्वाइन कर ली।
ऐसे में अब देखना दिलचस्प होगा कि चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर बीजेपी विरोधी व्यापक गठजोड़ का कैसे निर्माण करते हैं और उसमें कांग्रेस की क्या भूमिका होती है।