TRENDING TAGS :

Aaj Ka Rashifal

प्रोफेसर जयंत नार्लीकर के नाम से जाना जाता है विज्ञान का ये सिद्धांत

प्रोफेसर जयंत नार्लीकर न सिर्फ विज्ञान में किए कार्य के लिए जाने जाते हैं, बल्कि विज्ञान में भी उनका योगदान है

Ramkrishna Vajpei
Written By Ramkrishna VajpeiPublished By Ragini Sinha
Published on: 18 July 2021 8:52 PM IST
principle of science is known as Professor Jayant Narlikar
X

प्रोफेसर जयंत नार्लीकर के नाम से जाना जाता है विज्ञान का ये सिद्धांत (social media)

विज्ञान के क्षेत्र में 83 वर्षीय प्रोफेसर जयंत नार्लीकर एक बड़ा नाम है जिन्हें न केवल विज्ञान में किये उनके कार्य के लिये जाने जाते है अपितु विज्ञान को लोकप्रिय बनाने में भी उनका उल्लेखनीय योगदान उनकी पहचान है। उन्हें अक्सर दूरदर्शन या रेडियो पर बोलते हुए या फिर विज्ञान पर सवालों के जवाब देते हुए देखा एवं सुना जा सकता है। उन्होंने सर फ्रेड हॉयल के साथ कन्फार्मल ग्रेविटी थ्योरी विकसित की, जिसे हॉयल-नार्लीकर सिद्धांत के रूप में जाना जाता है। यह अल्बर्ट आइंस्टीन के सापेक्षता के सिद्धांत और मच के सिद्धांत का संश्लेषण करता है।

अंग्रेजी, हिन्दी, मराठी के साथ कई अन्य भाषाओं में शामिल

नार्लीकर ने विज्ञान से सम्बन्धित फिक्शन आधारित और वास्तविकता पर दोनों तरह की पुस्तकें लिखी हैं। यह सारी पुस्तकें अंग्रेजी, हिन्दी, मराठी के साथ कई अन्य भाषाओं में हैं। उनकी धूमकेतु नामक पुस्तक विज्ञान से सम्बन्धित की छोटी छोटी कल्पित कहानियों का संकलन है। यह हिन्दी में है। इसकी कुछ कहानियाँ मराठी से अनूदित हैं। यह कहानियां विज्ञान के अलग अलग सिद्धान्तों पर आधारित हैं।

द रिटर्न ऑफ वामन उनके द्वारा लिखा हुआ विज्ञान आधारित फिक्शन

द रिटर्न ऑफ वामन उनके द्वारा लिखा हुआ विज्ञान आधारित फिक्शन उपन्यास है। इस उपन्यास की कहानी भविष्य की एक घटना पर आधारित है, जिसके ताने-बाने में भगवान विष्णु के वामन अवतार की कथा बहुत सुन्दर तरीके से समायोजित है। यह दोनो पुस्तकें सरल भाषा में, विज्ञान को सरलता से समझाते हुए लिखी गयी हैं।


लेकिन आज उनकी चर्चा की वजह यह है कि प्रोफेसर जयंत नार्लीकर जो कि प्रसिद्ध खगोलभौतिकविद हैं। उनका जन्मदिन 19 जुलाई को है। उनका जन्म कोल्हापुर में 1938 में हुआ था। यहां यह बताना आवश्यक है कि उनके पिता, विष्णु वासुदेव नार्लीकर, एक गणितज्ञ और सैद्धांतिक भौतिक विज्ञानी थे, जिन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी में गणित विभाग के प्रोफेसर और प्रमुख के रूप में कार्य किया, और माँ, सुमति नार्लीकर, संस्कृत की विद्वान थीं। उनकी पत्नी मंगला नार्लीकर हैं और उनकी तीन बेटियाँ हैं। इस तरह से उत्तर प्रदेश से प्रोफेसर नार्लीकर का गहरा नाता रहा है।

प्रोफेसर नार्लीकर की प्रारम्भिक शिक्षा सेंट्रल हिन्दू ब्वायज स्कूल वाराणसी में हुई। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि लेने के बाद वे कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय चले गये। उन्होने कैम्ब्रिज से गणित की उपाधि ली और खगोल-शास्त्र एवं खगोल-भौतिकी में दक्षता प्राप्त की।

मध्यप्रदेश का भटनागर पुरस्कार भी मिल चुका है

नार्लीकर को कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार और मानद डॉक्टरेट मिल चुके हैं। भारत का दूसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान, पद्म विभूषण, उन्हें 2004 में प्रदान किया गया था। इससे पहले, 1965 में, उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। उन्हें 1981 में FIE फाउंडेशन, इचलकरंजी द्वारा 'राष्ट्र भूषण' से सम्मानित किया गया था। वर्ष 2010 में महाराष्ट्र भूषण पुरस्कार मिला था। उन्हें मध्यप्रदेश का भटनागर पुरस्कार भी मिल चुका है।

1996 में यूनेस्को द्वारा कलिंग पुरस्कार से सम्मानित किया गया

वह लंदन की रॉयल एस्ट्रोनॉमिकल सोसाइटी के एसोसिएट हैं, और तीन भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमियों और तीसरी दुनिया की विज्ञान अकादमी के फेलो हैं। उन्हें 1996 में यूनेस्को द्वारा कलिंग पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। 1989 में, उन्हें केंद्रीय हिंदी निदेशालय द्वारा आत्माराम पुरस्कार मिला। 1990 में भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी का इंदिरा गांधी पुरस्कार मिला। 2014 में, उन्हें मराठी में अपनी आत्मकथा, चार नागरंतले भूलभुलैया विश्व के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला।


प्रोफेसर जयंत नार्लीकर अपनी बेबाक टिप्पणियों के लिए भी जाने जाते हैं। पिछले दिनों इंदिरा गांधी ओपन यूनिवर्सिटी द्वारा ज्योतिष का कोर्स शुरू करने का वैज्ञानिकों ने विरोध किया था। उन्होंने इस कोर्स को वापस लिए जाने की मांग की थी।

20 प्रतिशत फलादेश सही साबित हुआ

इस संबंध में बार्क वैज्ञानिक बाल फुंडके ने जयंत विष्णु नार्लीकर का हवाला देकर कहा था कि एक बार उन्होंने 20 मानसिक रूप से अस्वस्थ और 20 अलग-अलग विषयों के स्कॉलर्स की जन्मकुंडलियां 40 से ज्यादा ज्योतिषियों को भेजीं तो ज्यादातर ज्योतिषी यह बताने में असफल रहे कि कौन मानसिक रूप से अस्वस्थ बच्चों की कुंडली है और कौन विद्वान लोगों की कुंडलियां हैं। इस तरह से इस प्रयोग में सिर्फ 20 प्रतिशत फलादेश सही साबित हुआ। 80 प्रतिशत गलत साबित हुए।

इस संबंध में उल्लेखनीय है कि 2001 में इसी तरह का निर्णय अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने भी लिया था जिसकी व्यापक आलोचना हुई थी और प्रोफेसर जयंत नार्लीकर सहित तमाम वैज्ञानिकों ने इसका विरोध किया था।

2015 में असहिष्णुता के मुद्दे पर प्रोफेसर ने इसका विरोध किया

इसी तरह 2015 में असहिष्णुता के मुद्दे पर भी प्रोफेसर नार्लीकर ने इसका विरोध किया था लेकिन अवार्ड वापस करने से इनकार कर दिया था।



\
Ragini Sinha

Ragini Sinha

Next Story