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Rath Yatra 2021: भगवान जगन्नाथ पुरी की रथ यात्रा पर कोरोना का कर्फ्यू
भगवान जगन्नाथ की यात्रा पर कोरोना का साया पड़ा है। पिछले साल की तरह इस बार भी श्रद्धालु इस पौराणिक यात्रा में शामिल नहीं हो पाएंगे।
लखनऊ: भगवान जगन्नाथ पुरी की रथ यात्रा भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में विख्यात है, लेकिन इस साल भी भगवान जगन्नाथ की यात्रा पर कोरोना का साया पड़ा है। पिछले साल की तरह इस बार भी श्रद्धालु इस ऐतिहासिक यात्रा में शामिल नहीं हो पाएंगे। क्योंकि कोरोना के खतरे को देखते हुए ओडिशा की नवीन पटनायक सरकार ने इस पर रोक लगा दी है। भगवान की रथयात्रा उत्सव बिना भीड़ के निकलेगी, यही नहीं रथ जिस रास्ते से गुजरेगा रास्ते में पड़ने वाले घरों के छतों से भी रस्म देखने की अनुमति नहीं दी गई है। टेलीविजन पर इस उत्सव का सीधा प्रसारण देखने को मिलेगा।
ओडिशा सरकार ने शनिवार को इस संबंध में दिशा निर्देश जारी किया है। आदेश के मुताबिक इस साल वार्षिक रथयात्रा उत्सव श्रद्धालुओं की भीड़ के बगैर ही होगा और उन्हें रथ के मार्ग में छतों से भी रस्म देखने की अनुमति नहीं होगी। पुरी के जिलाधिकारी समर्थ वर्मा ने कहा कि 12 जुलाई को होने वाले इस उत्सव से एक दिन पहले पुरी शहर में कर्फ्यू लगाया जाएगा। जो अगले दिन दोपहर तक प्रभाव में रहेगा। डीएम ने कहा कि भगवान बलभद्र, देवी सुभद्रा और भगवान जगन्नाथ का यह उत्सव कोविड-19 महामारी के चलते लगातार दूसरे वर्ष बिना श्रद्धालुओं की भागीदारी के मनाया जा रहा है।
12 जुलाई से शुरू हो रही जगन्नाथ यात्रा
हिन्दू पंचांग के अनुसार प्रतिवर्ष उड़ीसा में आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि को यानी इस वर्ष 12 जुलाई से शुरू हो रही जगन्नाथ रथ यात्रा का समापन 20 जुलाई को होगा। हिन्दू धर्म में ये बेहद ही पवित्र त्योहार माना जाता है, इसलिए हर साल जगन्नाथ रथ यात्रा का भव्य आयोजन किया जाता है। कहते हैं कि इस यात्रा के माध्यम से भगवान जगन्नाथ साल में एक बार प्रसिद्ध गुंडिचा माता के मंदिर में जाते हैं। इस दौरान भगवान को ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा के दिन 108 पानी के घड़ों से स्नान कराया जाता है, और जिस कुंए से पानी निकाला जाता है उस कुंए को दोबारा ढंक दिया जाता है अर्थात् वह कुंआ साल में सिर्फ एक ही बार खोला जाता है।
भगवान की प्रतिमा का निर्माण
जगन्नाथ पुरी की रथ यात्रा देश ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में विख्यात है। हर साल भगवान जगन्नाथ सहित बलभ्रद और सुभद्रा की प्रतिमाएं नीम की लकड़ी से बनाई जाती हैं, इस साल भी ये प्रतिमाएं नीम की लकड़ी से बनाई जाएंगी। इस दौरान रंगों का भी विशेष ध्यान दिया जाता है। भगवान जगन्नाथ जी का रंग सांवला होने के कारण नीम की उसी लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता है जो सांवले रंग में छिप जाए। वहीं दूसरी ओर भगवान जगन्नाथ के भाई-बहन का रंग गोरा होता है इसलिए उनकी मूर्तियों को हल्के रंग की नीम की लकड़ी का प्रयोग कर उन्हे बनाया जाता है।
हर साल होता है नए रथों का निर्माण
हर साल पुरी में आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि को जगन्नाथ रथ यात्रा निकाली जाती है। भगवान जगन्नाथ के रथ को नंदीघोष कहते हैं जिसकी ऊंचाई 45.6 फुट होती है। इसके बाद बलराम का रथ आता है जिसका नाम ताल ध्वज होता है इसकी ऊंचाई 45 फुट होती है। वहीं सुभद्रा का दर्पदलन रथ 44.6 फुट ऊंचा होता है। अक्षय तृतीया से नए रथों का निर्माण आरंभ हो जाता है। बता दें कि हर साल नए रथों का निर्माण होता है। खास बात तो यह है कि इन रथों को बनाने में किसी भी प्रकार की कील या अन्य किसी धातु का प्रयोग नहीं होता है।