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चुनावी माहौल में आखिर संत रविदास की क्यों बढ़ी अहमियत?

आज गुरु रविदास जी के जयंती पर पूरे देश में जहां धूमधाम से उनका जन्मदिन मनाया गया लेकिन दिल्ली से लेकर बनारस तक यह कुछ खास ही दिखाई दिया। पंजाब और उत्तर प्रदेश में संत रविदास जी के करोड़ों अनुयायी हैं।

Rahul Singh Rajpoot
Published on: 16 Feb 2022 4:03 PM GMT (Updated on: 16 Feb 2022 4:04 PM GMT)
Ravidas Jayanti
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रविदास जयंती पर चुनावी माहौल (फोटो-सोशल मीडिया)

Sant Ravidas: यूं तो संत, महापुरुषों की जयंती और वर्सी हर वर्ष होती है, लेकिन चुनावी माहौल के बीच अगर यह पड़ जाती है तो कुछ खास बन जाती है। ऐसा ही आज भी देखने को मिला हर साल 14 फरवरी को संत रविदास जी की जयंती मनाई जाती है लेकिन इस बार उनकी जयंती पर कुछ खास तस्वीरें सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हुई। देश के तीन बड़े नेता संत शिरोमणि रविदास की वंदना करने मंदिर में पहुंचे इसके पीछे मकसद था एक बड़े तबके को वोट हासिल करना।

सबसे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बात करें तो वह दिल्ली के करोल बाग स्थित गुरु रविदास विश्राम धाम मंदिर पहुंचे पूजा अर्चना की और महिलाओं के साथ झांझ भी बजाया। वहीं यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ गुरु रविदास की जन्मस्थली सीर गोवर्धन पहुंचे जहां माथा टेकने के बाद ज़मीन पर बैठ कर प्रसाद ग्रहण किया। पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी सुबह 4 बजे ही पंजाब से उड़कर वाराणसी पहुंच गए और रविदास मंदिर में माथा टेका, कीर्तन में भाग लिया और संतों की वाणी सुनकर उनका आशीर्वाद भी लिया।

पंजाब और उत्तर प्रदेश में संत रविदास जी के करोड़ों अनुयायी

वैसे तो 14 फरवरी को माघी पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है इसके साथ ही गुरु रविदास का जन्म भी 1376 ईस्वी में इसी दिन हुआ था। जिसे हम उनकी जयंती के रूप में भी मनाते हैं। इस बार गुरु रविदास जी की जयंती इसलिए खास हो गई की यूपी और पंजाब में अभी चुनाव चल रहे हैं, उत्तर प्रदेश में जहां दो चरण का मतदान हो गया है वहीं पंजाब में इसी जयंती की वजह से चुनाव 20 फरवरी को होगा।

पहले चुनाव आयोग ने यहां चुनाव कराने की तारीख 14 फरवरी निर्धारित की थी लेकिन पंजाब के सीएम चरणजीत सिंह चन्नी ने इसी रविदास जयंती का हवाला देकर चुनाव की तारीख को आगे बढ़ाने की मांग की थी। जिस पर चुनाव आयोग ने भी अमल किया और वहां 20 अब तारीख का मतदान होगा।

उससे पहले आज गुरु रविदास जी के जयंती पर पूरे देश में जहां धूमधाम से उनका जन्मदिन मनाया गया लेकिन दिल्ली से लेकर बनारस तक यह कुछ खास ही दिखाई दिया। पंजाब और उत्तर प्रदेश में संत रविदास जी के करोड़ों अनुयाई हैं, चुनाव में सभी दल इस जुगत में हैं कि उनके अनुयाई उनके पाले में आ जाएं और कह दें यह दल हमारे लिए सबसे मुफीद है और हम इन्हें वोट करेंगे इसी की चाह में सब रविदास जी के शरण में पहुंचे थे।

यूपी, पंजाब की सियासत में दलितों का प्रभाव

चलिए अब आपको बताते हैं कि पंजाब और उत्तर प्रदेश में दलितों का क्या प्रभाव है और वह कितनी सीटों पर हार-जीत की निर्णायक भूमिका अदा करते हैं। उत्तर प्रदेश में दलितों की आबादी करीब 21 फ़ीसदी मानी जाती है। दलितों की कई उपजातियां हैं जिनमें जाटव करीब 55 फ़ीसदी माने जाते हैं, इसके अलावा पासी लगभग 16% कनौजिया और धोबी 16% कौल 4.3 प्रतिशत बाल्मीकि 1.3 प्रतिशत खटीक 1.2 प्रतिशत के करीब हैं।

यूपी की 403 सीटों में करीब 300 सीटों पर दलित मतदाता हार जीत तय करने की भूमिका में है। जाटव समुदाय से बीएसपी की मुखिया मायावती भी आती हैं और यही वजह है कि यूपी की राजनीति में मायावती दशकों तक राज करती आई हैं लेकिन 2014 के बाद मायावती के इस वोट बैंक में बीजेपी ने बड़ी सेंधमारी की और वह शून्य पर पहुंच गई, 2017 में 19 सीटों पर सिमट गईं।

पंजाब में 98 सीटों पर दलितों का प्रभाव

पंजाब में 117 विधानसभा सीटों में 98 सीटें ऐसी हैं जहां पर दलितों का अच्छा खासा प्रभाव माना जाता है। पंजाब का हर तीसरा मतदाता दलित है इसी लिहाज से 2022 के चुनाव में मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी विपक्षी दलों के लिए चुनौती बनकर उभरे हैं अमरिंदर सिंह को हटाने के बाद सिद्धू चाह रहे थे उनकी ताजपोशी हो लेकिन कांग्रेस आलाकमान ने बड़ा दांव चलते हुए पंजाब में पहला दलित मुख्यमंत्री बनाकर वहां के समीकरण को पूरी तरह से पलटने का काम किया और इस बार भी चरणजीत सिंह चन्नी के चेहरे पर कांग्रेस पंजाब में चुनाव लड़ रही है।

पंजाब में निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन के आंकड़ों पर गौर करें तो 117 सीटों में से 98 विधानसभा सीटें ऐसी हैं जिनमें 20% से 49% तक दलित मतदाता है दूसरी तरफ से बात करें तो पंजाब की 117 सीटों में से 34 यानी एक तिहाई सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है खास बात यह है कि इन आरक्षित सीटों में 8 सीटें ऐसी हैं जहां पर 40% से अधिक मतदाता हैं।

अब तक आपको पूरी तरह से समझ में आ गया होगा कि चुनाव के बीच गुरु रविदास जी की जयंती क्यों खास हो गई थी दरअसल राजनीतिक दलों ने चुनाव को जिस तरह से जाति और धर्म के मुद्दों में बांट दिया है उसमें पार्टी अपनी विचारधारा से इधर इस बात में अपनी उर्जा ज्यादा खा पाती है कि संत रविदास भगवान राम या फिर भगवान कृष्ण की बिरादरी के मतदाताओं को किस तरह से साधा जाए।

सिर्फ पंजाब की बात करें तो संत रविदास वाला वोट बैंक वहां पूरी तरह से सत्ता के समीकरण को बनाने और बिगाड़ने का पूरा माद्दा रखता है उत्तर प्रदेश भी इससे प्रभावित है। सिर्फ प्रधानमंत्री योगी सीएम योगी सीएम चरणजीत सिंह चन्नी ही नहीं सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव बीएसपी सुप्रीमो मायावती समेत तमाम सियासत डालने रविदास जी को नमन कर उनके अनुयायियों को साधने की कोशिश की है।

Vidushi Mishra

Vidushi Mishra

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