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Sarat Chandra Chattopadhyay : हर घर की कहानी में नजर आते शरतचंद्र चट्टोपाध्याय, जानिये कौन थे?
Sarat Chandra Chattopadhyay : बांग्ला भाषा के महान उपन्यासकार और कहानी लेखक शरतचंद्र के साहित्य की लोकप्रियता को देखकर ही इनके साहित्य का कई भाषाओं में अनुवाद हो चुका है।
Sarat Chandra Chattopadhyay : कौन थे शरतचंद्र चट्टोपाध्याय? क्यों उनकी जयंती पर आज 15 सितंबर को उन्हें याद किया जाए? ऐसा क्या काम किया था जिसके लिए उन्हें याद किया जाए? आज 145 साल बाद भी यह नाम क्यों लोगों के जेहन में क्यों है?
आपने देवदास (Devdas) पिक्चर तो देखी होगी, लेकिन क्या आपको पता है वह फिल्म शरतचंद्र के कालजयी उपन्यास पर ही बनी थी । एक बार नहीं इस उपन्यास पर तीन बार फिल्में बनीं । हो सकता है शायद चौथी बार फिर बने।
हर बार लोगों को उपन्यास को एक नये नजरिये से देखने का मौका मिले। इसी तरह शरतचंद्र के उपन्यास चरित्रहीन पर 1974 में फिल्म बनी थी। 2005 में उपन्यास परिणीता पर फिल्म बनी। 1969 में बड़ी दीदी (Badi Didi) और मंझली दीदी (Majhli Didi) उपन्यासों पर भी फिल्में बन चुकी है।
बांग्ला भाषा के महान उपन्यासकार और कहानी लेखक शरतचंद्र के साहित्य की लोकप्रियता को देखकर ही इनके साहित्य का कई भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। अगर संक्षेप में कहें तो आज से लगभग सौ सवा सौ साल पहले इस उपन्यासकार ने अपनी रचनाओं के माध्यम से नारी सशक्तीकरण की जो अनूठी मुहिम चलाई थी। उसके बारे में आज हम सोच भी नहीं सकते।
सामाजिक परिवेश को देखकर उनकी रचनाओं में नारी जिस तरह परंपरागत बंधन से मुक्ति के लिए छटपटाती नजर आती है , उसे आज भी देखा जा सकता है। हम इसे नारी सशक्तीकरण की मुहिम के जरिये परवान चढ़ा रहे हैं। शायद इसीलिए आलोचक कहते भी रहे हैं कि शरतचंद्र के उपन्यासों में उनके स्त्रियां या नारी पात्र पुरुष चरित्रों या पात्रों से कहीं अधिक ताकतवर दिखाई देती हैं।
शरतचंद्र चट्टोपाध्याय कौन हैं
बांग्ला साहित्य के इस अमर नायक का जन्म (Sarat Chandra Chattopadhyay Birthday) 15 सितंबर, 1876 में पश्चिम बंगाल के हुगली जिले के देवानंदपुर गांव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। वह बचपन से ही निर्भीक और एडवेंचरस थे। हालांकि वह एक बेहतरीन स्टूडेंट भी थे। उन्हें उनकी प्रतिभा के चलते ही क्लास में करा दी गई । लेकिन वह दसवीं की परीक्षा गरीबी के कारण नहीं दे पाए।
उनका बचपन अधिकांशतः अपने मामा के यहां बीता। भागलपुर में ही उन्होंने अपना उपन्यास देवदास लिखा । जिसके बारे में कहा जाता है कि यह उनकी खुद की कहानी है। यहीं जोगसार में उनकी चंद्रमुखी से मुलाकात हुई जो कि उस समय रेडलाइट एरिया था ।.जहां वेश्याएं रहती थीं।
कहां है शरत चंद्र कुटी
कहते हैं कुछ समय बाद शरतचंद्र बर्मा चले गए। जब वह वहां से लौटे तो तकरीबन 11 साल हावड़ा के बाजे शिबपुर में रहे। इसके बाद उन्होंने 1923 के आसपास हावड़ा में ही रुपनारायण नदी के किनारे समता गांव को अपना ठिकाना बनाया। यहां एक घर बनाया । जिसे शरत चंद्र कुटी के नाम से जाना जाता है । यहीं तकरीबन 12 साल तक उन्होंने साहित्य साधना की। वह एक उपन्यासकार के रूप में स्थापित हो गए।
यहीं पर बर्मी शैली में निर्मित शरत चंद्र के भाई, स्वामी वेदानन्द का दो मंजिला घर भी है, जो बेल्लूर मठ के अनुयायी थे। उनकी और उनके भाई की समाधि इसी घर के अहाते में है। शरतचंद्र द्वारा लगाए गए बांस और अमरूद जैसे पेड़ आज भी घर के बगीचों में ऊंचे खड़े हैं।
शरतचंद्र का साहित्य
आलोचक उनका पहला उपन्यास बड़ादीदी मानते हैं , जो 1907 में लिखा गया था। इसके बाद बिंदुर छेले ओ अन्यान्य, परिणीता, बैकुंठेर विल, पल्लीसोमाज, देवदास, चोरित्रहीन निष्क्रिति, श्रीकांता, दत्ता, गृहदाह, देना पाओना, पोथेर दाबी, शेष प्रश्नो आदि उनके उपन्यास गिनाये जाते हैं। इसके अलावा शरत चंद्र ने तमाम निबंध और कहानियां भी लिखीं।
शरतचंद्र को मात्र एक पुरस्कार मिलने का जिक्र मिलता है जो उन्हें कलकत्ता विश्वविद्यालय ने दिया था। यह पुरस्कार था जगतारिणी अवार्ड। शरतचंद्र ने दो विवाह किये थे । पहली पत्नी का नाम शांति देवी था। यह शादी 1906 से 1908 तक चली। दूसरी शादी हिरोन्मयि देवी से की । यह विवाह 1910 से 1938 तक चला। 1938 में इस महान लेखक का 16 जनवरी को 61 साल की उम्र में कोलकाता में निधन हुआ
इस बंगला लेखक की असाधारण
लोकप्रियता को तमाम लेखकों ने सराहा है। ओ. एन. वी. कुरुप के अनुसार "... शरत चंद्र का नाम उतना ही प्रिय है जितना कि मलयालम के जाने-माने उपन्यासकारों के नाम। उनका नाम एक घरेलू शब्द रहा है"।
डॉ मिराजकर का मानना है "शरत चंद्र के अनुवाद ने पूरे महाराष्ट्र में पाठकों और लेखकों के बीच हलचल पैदा कर दी। वह महाराष्ट्र में एचएन आप्टे, वीएस खांडेकर, एनएस फड़के सहित किसी भी लोकप्रिय मराठी लेखकों के समतुल्य एक प्रसिद्ध साहित्यिक व्यक्तित्व बन गए।
जीटी मडखोलकर और जैनेंद्र कुमार का मानना रहा कि सांस्कृतिक भारत के निर्माण और संरक्षण के लिए उनका योगदान शायद केवल गांधी के बाद दूसरा है। शरत चंद्र बंगाली लेखक थे। लेकिन ऐसी कौन सी भारतीय भाषा है जहां उनका साहित्य लोकप्रिय नहीं हुआ।