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वैक्सीन के साइड इफ़ेक्ट की जिम्मेदारी का पेंच फंसा, फाइजर अपनी शर्तों पर अड़ा
देश में वैक्सीन की कमी को पूरा करने के लिए बहुत सीमित विकल्प हैं।
लखनऊ। देश में वैक्सीन की कमी को पूरा करने के लिए बहुत सीमित विकल्प हैं। फाइजर और मॉडर्ना तत्काल सप्लाई करने की स्थिति में नहीं हैं क्योंकि इनके पास पहले के भरी भरकम आर्डर पड़े हैं जिनको पूरा किया जाना है। फाइजर के साथ एक और समस्या जवाबदेही की है। फाइजर ने कहा है कि वैक्सीन के बाद किसी भी साइड इफ़ेक्ट होने की स्थिति में कंपनी कोई जिम्मेदारी नहीं लेगी और भारत सरकार को अपने कॉन्ट्रैक्ट में ये लिख कर देना होगा। फाइजर कंपनी चाहती है कि उसे पूरी कानूनी सुरक्षा मिलनी चाहिए।
दरअसल, फाइजर जहाँ भी अपनी कोरोना वैक्सीन दे रही है उसने सभी देशों की सरकारों से पूरा लीगल प्रोटेक्शन ले रखा है। यानी अगर किसी व्यक्ति को कोरोना वैक्सीन के बाद कुछ होता है तो वह कंपनी पर मुआवजे का दावा नहीं ठोंक सकता है।
फाइजर के साथ-साथ मॉडर्ना को भी अमेरिका की संघीय सरकार ने फुल लीगल प्रोटेक्शन प्रदान किया है। अब कम्पनियाँ भारत से भी ऐसा ही चाहेंगी। मॉडर्ना और जॉनसन एंड जॉनसन भले ही अभी कुछ नहीं कह रहे हैं लेकिन जब कॉन्ट्रैक्ट करने की बात होगी तो वो भी कानूनी सुरक्षा की मांग करेंगे। जहाँ तक भारत में सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंडिया और भारत बायोटेक की बात है तो इन कंपनियों ने भी कानूनी सुरक्षा की मांग की थी लेकिन सरकार ने ये मांग नहीं मानी।
ताजा स्थिति ये है कि मॉडर्ना ने 2022 से पहले वैक्सीन सप्लाई करने से मना कर दिया है। फाइजर शायद 5 करोड़ खुराकें इस साल दे सकता है लेकिन उसको कानूनी गारंटी चाहिए। जॉनसन एंड जॉनसन अभी भारत में सप्लाई नहीं करेगा।
दिक्कत ये है कि सरकार एक बार किसी भी कंपनी को अगर कानूनी सुरक्षा दे देती है तो फिर सभी वैक्सीन कम्पनियाँ ऐसी मांग उठा सकती हैं। पिछले साल फाइजर ने भारत में सबसे पहले वैक्सीन सप्लाई करने के लिए आवेदन किया था। उस समय उसका आवेदन इस आधार पर ख़ारिज कर दिया गया कि उसकी वैक्सीन के पहले और दूसरे चरण के ट्रायल भारत में नहीं हुए हैं। दरअसल, नियमों के अनुसार भारत में कोई भी दवा या वैक्सीन लोगों के इस्तेमाल के लिए तभी लांच की जा सकती है जब उसके दूसरे और तीसरे चरण के ट्रायल भारत में हुए हों। ऐसा इसलिए है क्योंकि हर देश अपने नागरिकों के लिए पूरी तरह सुरक्षित दवा या वैक्सेने चाहता है। इसके अलावा लोगों का जेनेटिक सेटअप अलग-अलग होता है सो कोई वैक्सीन अगर अमेरिकी लोगों पर सुरक्षित और प्रभावी है तो जरूरी नहीं कि वो भारत के लोगों पर भी प्रभावी और सुरक्षित हो।
बहरहाल, फाइजर ने पिछले साल अपना आवेदन वापस ले लिए था। लेकिन कोरोना की दूसरी लहर में जो आफत आई उसको देखते हुए केंद्र सरकार ने अप्रैल में वैक्सीनों के बारे में अपने नियमन में महत्वपूर्ण बदलाव कर दिए। सरकार ने घोषणा की कि विदेशी निर्माताओं को अब दूसरे और तीसरे चरण के ट्रायल करने की शर्त पूरी करने की जरूरत नहीं है। बशर्ते उन वैक्सीनों को अमेरिका, यूरोपियन यूनियन, यूके, जापान और डब्लूएचओ से एप्रूवल मिल गया हो।
ट्रायल की शर्त हटाने का ये मतलब नहीं है कि अब कम्पनियां भारत की तरफ दौड़ पड़ेंगी। फाइजर और मॉडर्ना की वैक्सीनें सबसे ज्यादा प्रभावी पाई गईं हैं। इन कंपनियों के बाद ढेरों एडवांस आर्डर पड़े हुए हैं। अपने पहले के कमिटमेंट पूरे करने के बाद ही ये कम्पनियाँ भारत के बाजार का रुख करेंगी, ऐसा जानकारों का कहना है। अब एक अड़चन कानूनी सुरक्षा की है, जानकार कहते हैं कि मुमकिन है सरकार कुछ शर्तें जोड़ कर ये सुरक्षा भी प्रदान कर दे।