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Shaheed Diwas 2022 : पाकिस्तान में भी याद किए जा रहे भगत सिंह, उनके गांव में लगता है मेला

Shaheed Diwas : 23 मार्च 1931 को भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को लाहौर की शादमान चौक पर फांसी दी गई थी। साल 2018 में इस चौक का नाम बदलकर भगत सिंह चौक कर दिया गया था।

Neel Mani Lal
Written By Neel Mani LalPublished By aman
Published on: 23 March 2022 12:35 PM IST
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शहीद भगत सिंह (Shaheed Bhagat Singh)

Shaheed Diwas 2022 : आज न सिर्फ भारत में बल्कि पाकिस्तान में भी अमर शहीद भगत सिंह (Shaheed Bhagat Singh), राजगुरु (Rajguru) और सुखदेव (Sukhdev) को याद किया जा रहा है। आज ही के दिन (23 मार्च) भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को 1931 में लाहौर की शादमान चौक पर फांसी दी गई थी। साल 2018 में इस चौक का नाम बदलकर भगत सिंह चौक कर दिया गया था।

भगत सिंह (Bhagat Singh) का जन्म 28 सितंबर, 1907 को पंजाब प्रान्त के फैसलाबाद (तत्कालीन लायलपुर) जिले के जरांवाला तहसील के बांगे गांव में हुआ था। लाहौर से करीब 150 किलोमीटर दूर भगत सिंह का गांव बांगे आज लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र है।

भगत सिंह का गांव

भगत सिंह के पुश्तैनी घर को 2014 में पाकिस्तान सरकार ने एक हेरिटेज स्थल (Heritage Site) घोषित कर दिया था। हर साल 23 मार्च को गांव में सरदार भगत सिंह मेला का आयोजन किया जाता है। जब देश का बंटवारा हुआ तो भगत सिंह की मां विद्यावती और पिता किशन सिंह यहीं रहने लगे थे। किशन सिंह का यहीं निधन हुआ। भगत सिंह की मां ने 1975 में दुनिया को अलविदा कह दिया। इस घर में पुरानी चारपाई, एक पलंग, लकड़ी से बनी दो अलमारी हैं, जबकि खेती किसानी से जुड़ा कुछ सामान भी मौजूद है।

ये संस्था भगत सिंह से जुड़ी यादें संजोए है

एक कमरे में खाने वाली मेज और कुछ बर्तन रखे हैं। यहां भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद और अन्य क्रांतिकारियों से सम्बंधित फोटो, इत्यादि भी प्रदर्शित की गईं हैं। भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन संगठन कई साल से पाकिस्तान में भगत सिंह से जुड़ी यादों को संजोने का काम कर रहा है। कहा जाता है कि भगत सिंह के दादा ने करीब 124 साल पहले यहां एक आम का पेड़ लगाया था, जो आज भी मौजूद है।

घर देखने दुनियाभर से लोग आते हैं

इस गांव में अब कोई सिख या हिन्दू लोग नहीं रहते हैं। ये हवेली बंटवारे के बाद पेशे से वकील साकिब वरक के बुज़ुर्गों को आवंटित हुई थी। अब उनका ही खानदान इसकी देखभाल करता है। उन्होंने बताया कि 1947 में ये घर उनके दादा फज्ल कादिर वरक को आवंटित हुआ था। उस दौर से ही दुनियाभर से लोग इसे देखने आते रहते हैं। यहां 1890 के बने हुए दो कमरे हैं, जो उसी हालत में मौजूद हैं जैसे भगत सिंह के पिता ने बनवाए थे। साकिब वरक के मुताबिक, उन्हें फख्र है कि वे उस हवेली को देखने और भगत सिंह को खिराज-ए-तहसीन पेश करने के लिए आने वालों की मेजबानी करते हैं।

फैसलाबाद के लोगों को गर्व

फैसलाबाद के जिला समन्वय अधिकारी नूरुल अमीन मेंगल के अनुसार, फैसलाबाद के लोग इस तथ्य पर गर्व करते हैं कि भगत सिंह उनकी धरती के पुत्र थे और चाहते हैं कि यह स्थान "भगत सिंह के शहर" के रूप में जाना जाए। भगत सिंह का गांव ननकाना साहिब से महज 35 किलोमीटर दूर है। भगत सिंह का घर और स्कूल 2014 में नुरुल मेंगल ने करीब एक करोड़ रुपए खर्च कर ठीक कराए थे।shaheed diwas 2022 Bhagat Singh remember in Pakistan history importance martyrs day



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अमन कुमार - बिहार से हूं। दिल्ली में पत्रकारिता की पढ़ाई और आकशवाणी से शुरू हुआ सफर जारी है। राजनीति, अर्थव्यवस्था और कोर्ट की ख़बरों में बेहद रुचि। दिल्ली के रास्ते लखनऊ में कदम आज भी बढ़ रहे। बिहार, यूपी, दिल्ली, हरियाणा सहित कई राज्यों के लिए डेस्क का अनुभव। प्रिंट, रेडियो, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया चारों प्लेटफॉर्म पर काम। फिल्म और फीचर लेखन के साथ फोटोग्राफी का शौक।

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