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Shaheed Udham Singh Kaun Hai: उधम सिंह ने लिया था जलियावाला बाग हत्याकांड का बदला, जानिए कब और क्यों हुई थी फांसी
Udham Singh Shaheed : उधमसिंह के बचपन का नाम शेर सिंह था लेकिन अनाथालय में रहने के दौरान उनका नाम बदल गया। वह अपने नाम से संतुष्ट नहीं थे इसलिए उन्होंने फिर से अपना नाम बदल लिया।
Shaheed Udham Singh Kaun Hai: 31 जुलाई महान क्रांतिकारी उधम सिंह का शहादत दिवस (Udham Singh Death Anniversary) । इन्हें 31 जुलाई 1940 को उन्हें पेंटनविले जेल में फांसी (Udham Singh Fansi) दे दी गई थी। भारत के इस सपूत ने जलियांवाला बाग नरसंहार (Jallianwala Bagh Hatyakand) का बदला लेने के लिए 20 साल इंतजार किया और फायरिंग का आदेश देने वाले पंजाब के तत्कालीन गवर्नर जनरल माइकल फ्रांसिस ओ'ड्वायर (Governor General Michael Francis O'Dwyer) को लंदन जाकर मार गिराया। इसके बाद वह भागे नहीं और अपनी गिरफ्तारी दी।
उधम सिंह का असली नाम (Udham Singh Ka Asli Naam)
एक और खास बात उधमसिंह का बचपन का नाम शेर सिंह और उनके भाई का नाम मुक्तासिंह था लेकिन जब उन्हें अनाथालय में रहना पड़ा तो उनका और उनके भाई का नाम उधमसिंह और साधुसिंह दिया गया। लेकिन उधमसिंह अपने नाम से संतुष्ट नहीं थे इसलिए उन्होंने देश में सर्वधर्म समभाव का संदेश देने के लिए अपना नाम बदलकर राम मोहम्मद सिंह आजाद रख लिया था जो भारत के तीन प्रमुख धर्मों हिन्दू, मुस्लिम, सिख और उनके लक्ष्य आजादी का प्रतीक था।
13 अप्रैल, 1919 भारतीय इतिहास का सबसे काला दिन (Black Day Of Indian History)
Jallianwala Bagh Hatyakand Kab Hua Tha- इतिहास के पन्नों को पलटें तो 13 अप्रैल, 1919 भारतीय इतिहास का सबसे काला दिन माना जाता है। इसी दिन अमृतसर के जलियांवाला बाग में रोलेट एक्ट के विरोध में हजारों लोग एकत्र हुए थे और अंग्रेज अफसर जनरल डायर ने इस बाग के मुख्य द्वार को अपने सैनिकों और हथियारंबद वाहनों से रोककर निहत्थी भीड़ पर बिना किसी चेतावनी के 10 मिनट तक गोलियों की बरसात कराई थी।
उधम सिंह ने लिया था जलियावाला बाग कांड का बदला (Udham Sing Revenge)
कहा जाता है कि इस घटना में तकरीबन 1000 लोगों की मौत हो गई थी और 1500 से ज्यादा घायल हुए थे। इतिहासकारों का कहना है कि जब ये घटना हुई तो वहां जनरल डायर मौके पर मौजूद थे। लेकिन लोगों पर गोलीबारी चलाने का निर्देश पंजाब के तत्कालीन गर्वनर जनरल माइकल फ्रांसिस ओ'ड्वायर ने दिया था। इसी ओ'ड्वायर की क्रांतिकारी उधम सिंह ने लंदन के कैक्सटन हॉल में 13 मार्च, 1940 को ड्वायर की गोली मारकर हत्या की थी। जिन्होंने फायरिंग के निर्देश दिये थे। जबकि फायरिंग करने और करवाने वाले डायर की मौत आर्टेरिओस्क्लेरोसिस (धमनियों की बीमारी) और सेरेब्रल हैमरेज के कारण 1927 में हुई बतायी जाती है।
उधम सिंह और जवाहर लाल नेहरु (Udham Singh And Jawahar Lal Nehru)
शहीद उधम सिंह के इस कारनामे की तत्कालीन कांग्रेस नेता और आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने भी प्रशंसा की थी। उन्होंने कहा कि यह घटना अफसोसजनक है परन्तु ब्रिटिश शासन को चेतावनी देने के लिए अत्यावश्यक थी।
अपने मिशन को अंजाम तक पंहुचाने के लिए उधम सिंह ने विभिन्न नामों से अफ्रीका, नैरोबी, ब्राजील और अमेरिका की यात्रा की। सन् 1934 में उधम सिंह लंदन पहुँचे और वहां 9, एल्डर स्ट्रीट कमर्शियल रोड पर रहने लगे। वहां उन्होंने अपने उद्देश्य के लिए एक कार खरीदी और साथ में अपना मिशन पूरा करने के लिए छह गोलियों वाली एक रिवाल्वर भी खरीदी। इसके बाद वह उचित मौके का इंतजार करने लगे। उधम सिंह को अपने सैकड़ों भाई-बहनों की मौत का बदला लेने का मौका 13 मार्च 1940 में मिला। जब रायल सेंट्रल एशियन सोसायटी की लंदन के काक्सटन हाल में बैठक थी जहां माइकल ओ डायर भी वक्ताओं में शामिल था। उधम सिंह नियत समय पर बैठक स्थल पर पहुँच गए। अपनी रिवॉल्वर उन्होंने एक मोटी किताब में छिपा ली। इसके लिए उन्होंने किताब के पृष्ठों को रिवॉल्वर के आकार में काट लिया था।
उधम सिंह को फांसी कब हुई (Udham Singh Ko Fansi Kab Hui)
मौका मिलते ही उधम सिंह ने माइकल ओ डायर पर गोलियां दाग दीं। दो गोलियां माइकल ओ डायर को लगीं जिससे उसकी तत्काल मौत हो गई। उधम सिंह ने वहां से भागने की कोशिश नहीं की और अपनी गिरफ्तारी दे दी। उन पर मुकदमा चला। 4 जून 1940 को उधम सिंह को हत्या का दोषी ठहराया गया और 31 जुलाई 1940 को उन्हें पेंटनविले जेल में फांसी दे दी गई।
उधम सिंह का बचपन (Udham Singh Wikipedia In Hindi)
पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम गाँव में 26 दिसम्बर 1899 को जन्मे उधम सिंह की माताजी उनके दो साल के भीतर चल बसीं। जब वह आठ साल के हुए तो उनके पिता का निधन हो गया। उन्हें अपने बड़े भाई के साथ अमृतसर के एक अनाथालय में शरण लेनी पड़ी। 1917 में उनके बड़े भाई का भी देहांत हो गया। वह पूरी तरह अनाथ हो गए तभी जलियांवालाबाग कांड 1919 में हो गया और उन्होंने अनाथालय छोड़ दिया। इसके बाद क्रांतिकारियों के साथ आजादी की लड़ाई में शमिल हो गए। देश की आजादी तथा डायर को मारने की अपनी प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए लगातार काम किया और शहादत पाई।