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नए कृषि कानून: पवार का बयान बना मोदी सरकार का सहारा, यूपीए राज में भी की थी वकालत
पूर्व केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार ने नए कृषि कानूनों की वकालत करते हुए कहा कि इसे पूरी तरह खारिज नहीं किया जा सकता।
नई दिल्ली: केंद्र सरकार (central government) की ओर से पारित नए कृषि कानूनों (new agricultural laws) को लेकर राष्ट्रवादी कांग्रेस (एनसीपी) के मुखिया शरद पवार (Sharad Pawar) का एक बयान मोदी सरकार (modi government) के लिए बड़ा सहारा बन सकता है। पूर्व केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार ने नए कृषि कानूनों की वकालत करते हुए कहा कि इसे पूरी तरह खारिज नहीं किया जा सकता। किसानों ने पिछले सात महीने से इन कानूनों को रद्द करने की मांग को लेकर जोरदार आंदोलन (farmers protest) छेड़ रखा है। किसानों के इस आंदोलन के बीच पवार ने कहा कि सरकार को किसानों की मांग पर गौर फरमाते हुए नए कृषि कानूनों के उस हिस्से में संशोधन करना चाहिए जिसे लेकर किसान संगठन बिफरे हुए हैं।
पवार का यह बयान मोदी सरकार के रुख से पूरी तरह मेल खाता है। केंद्रीय कृषि मंत्री राधामोहन सिंह (Radha Mohan Singh) भी कई बार यह बात कह चुके हैं कि सरकार कानून वापस नहीं लेगी मगर उन हिस्सों में संशोधन करने के लिए तैयार है जिन्हें लेकर किसान संगठनों को आपत्ति है। दूसरी ओर किसान संगठनों की मांग है कि नए कृषि कानूनों को पूरी तरह रद्द किया जाना चाहिए। सरकार और किसान संगठनों के अपने-अपने रुख पर अड़े रहने के कारण यह मुद्दा सुलझ नहीं पा रहा है।
सिर्फ आपत्ति वाले बिंदुओं में संशोधन संभव
एनसीपी मुखिया शरद पवार ने मुंबई में एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने के दौरान नए कृषि कानूनों को लेकर महत्वपूर्ण टिप्पणी की। नए कृषि कानूनों के खिलाफ महाविकास अघाड़ी सरकार की ओर से प्रस्ताव लाए जाने के संबंध में पूछे जाने पर पवार का जवाब मोदी सरकार के रुख से पूरी तरह मेल खाता है। उन्होंने स्पष्ट तौर पर कहा कि बिल को पूरी तरह खारिज नहीं किया जा सकता। केवल बिल के उस हिस्से में संशोधन की मांग की जा सकती है जिसे लेकर किसान संगठनों में ज्यादा नाराजगी है।
उन्होंने कहा कि इस बाबत विधानसभा में प्रस्ताव लाए जाने से पहले बिल से जुड़े सभी पहलुओं पर गंभीरता से विचार किया जाएगा। पूर्व केंद्रीय कृषि मंत्री ने कहा कि महाविकास अघाड़ी सरकार बिल के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन कर रही है। यह जिम्मेदारी राज्य सरकार के मंत्रियों के एक समूह को सौंपी गई है।
कानून के पहलुओं का अध्ययन करें राज्य
पवार ने कहा कि अन्य राज्यों को भी इस बिल से जुड़े विभिन्न पहलुओं का गंभीरता से अध्ययन करना चाहिए। इस बिल को लागू करने से पहले इसके विवादित पहलुओं पर विचार करना जरूरी है। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र विधानसभा का आगामी सत्र सिर्फ दो दिनों का है और दो दिनों के दौरान इस बिल पर बहस करना संभव नहीं लगता। फिर भी यदि सरकार की ओर से इस बिल को विचार के लिए विधानसभा के पटल पर रखा जाता है तो सभी पक्षों को इस पर बेबाकी से अपनी राय रखनी चाहिए।
किसान आंदोलन पर केंद्र सरकार करे पहल
उन्होंने कहा कि कृषि बिल के खिलाफ देश के विभिन्न हिस्सों में किसान संगठनों का सात महीने से आंदोलन चल रहा है। किसान नेता और सरकार के बीच कई दौर की बातचीत के बावजूद अभी तक गतिरोध समाप्त नहीं हो सका है। उन्होंने कहा कि किसानों का आंदोलन समाप्त करने के लिए केंद्र सरकार की ओर से जल्द से जल्द पहल की जानी चाहिए।
केंद्र सरकार की ओर से पारित तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसान संगठनों ने पिछले साल 26 नवंबर से ही आंदोलन छेड़ रखा है। दिल्ली के गाजीपुर और सिंधु बॉर्डर पर तभी से किसानों का धरना लगातार चल रहा है। सरकार और किसान संगठनों दोनों पक्षों के अड़ियल रवैये के कारण अभी तक इस मामले का कोई समाधान नहीं खोजा जा सका है।
पवार ने लिखी थी राज्यों को चिट्ठी
एनसीपी के मुखिया शरद पवार जब यूपीए सरकार में कृषि मंत्री थे तब उन्होंने राज्यों के मुख्यमंत्रियों से एपीएमसी कानून में संशोधन करने को कहा था। उनका कहना था कि इस कदम को उठाने से निजी क्षेत्र महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकेंगे। पवार ने इस बाबत मुख्यमंत्रियों को चिट्ठी लिखी थी।
जानकारों का कहना है कि मोदी सरकार ने भी एपीएमसी के उन्ही प्रावधानों में बदलाव किए हैं जिनके बारे में कृषि मंत्री रहते हुए पवार ने पत्र लिखा था। कांग्रेस की ओर से भी भले ही नए कृषि कानूनों का विरोध किया जा रहा हो मगर यूपीए-2 के कार्यकाल के दौरान कांग्रेस ने संसद में किसानों के लिए ऐसे ही कानून का समर्थन किया था।