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अवैध शराब कारोबारियो को होगी मौत की सजा, शिवराज सरकार ने बनाया सख्त कानून
शिवराज सरकार ने प्रदेश में जहरीली शराब बेचने वालों के उपर कड़ी सजा का प्रावधान किया है। आज कैबिनेट की बैठक में ये फैसला लिया गया।
Lucknow Desk: मध्य प्रदेश कि शिवराज सरकार ने जहरीली शराब को बनाने और उसे बेचने वालों के उपर सख्त सजा का प्रावधान किया है। जिसमें बेचने या बनाने पर कड़ी सजा देने का फैसला सीएम शिवराज सिंह ने कैबिनेट की बैठक के दौरान लिया। सरकार ने 1915 के कानून को बदलते हुए इसमें कई संसोधन की है जिसमें बेचने वालों के उपर आजीवन कारावास की सजा या फिर मृत्यु दंड को प्रावधान किया गया है। इससे पहले इस जुर्म में 10 साल की सजा का प्रावधान था। एमपी में जहरीली शराब से लगातार लोग मर रहे थें इस बात को ध्यान में रखते हुए सरकार ने फैसला लिया है। पिछले 15 महीनों में जहरीली शराब के सेवन करने का बाद 53 लोगों कि मौत हुई है।
शिवराज सिंह चौहान कह चुके हैं कि प्रदेश में अवैध शराब के खिलाफ सख्त कानून बनाया जाएगा
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सोमवार को कह चुके हैं कि प्रदेश में अवैध शराब के खिलाफ सख्त कानून बनाया जाएगा। इसके लिए सरकार विधानसभा के मानसून सत्र में विधेयक पेश करने की तैयारी कर रही है। इसका ड्राफ्ट मंगलवार को होने वाली कैबिनेट बैठक में चर्चा के लिए रखा जा सकता है। मंत्रालय सूत्रों ने बताया, सरकार आबकारी अधिनियम 1915 में कई बदलाव करने जा रही है। वाणिज्यिक कर विभाग ने आबकारी संशोधन विधेयक 2021 के प्रस्ताव में सभी आपराधिक धाराओं में सजा बढ़ाने की बात कही गई है। इस पर कैबिनेट बैठक में चर्चा के बाद निर्णय लिया जा सकता है।
पिछले 15 महीने में प्रदेश में जहरीली शराब से 53 लोगों की मौत हो चुकी है
मंत्रालय सूत्रों का कहना है, पिछले 15 महीने में प्रदेश में जहरीली शराब से 53 लोगों की मौत हो चुकी है। मंदसौर में 23 जुलाई को जहरीली शराब पीने से 5 लोगों की मौत के बाद मुख्यमंत्री ने अवैध शराब के कारोबार पर सख्ती बरतने के निर्देश दिए थे। इसके बाद गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने कहा था, दूसरे राज्यों से मध्य प्रदेश लाई जा रही अवैध शराब को रोकने के लिए सख्त कानून बनाया जाएगा।
प्रदेश में लघु, सूक्ष्म और मध्यम उद्योगों (MSME) के निवेश का दायरा बढ़ाने के प्रस्ताव को कैबिनेट से मंजूरी मिली सकती है। प्रस्ताव के मुताबिक एमएसएमई के लिए निवेश सीमा बढ़ाकर 50 करोड़ रुपए किया जा रहा है। वर्तमान में केवल 10 करोड़ के निवेश वाले उद्योग ही इस दायरे में आते हैं।