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प्रकृति के निर्माण के लिए धरती माता भी होती हैं रजस्वला

रज संक्रांति पर्व इस साल 15 जून से शुरू होकर 18 जून तक चलेगा

Ramkrishna Vajpei
Written By Ramkrishna VajpeiPublished By Pallavi Srivastava
Published on: 8 Jun 2021 2:56 PM IST (Updated on: 8 Jun 2021 3:00 PM IST)
प्रकृति के निर्माण के लिए धरती माता भी होती हैं रजस्वला
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Spirituality: धरती जिसे हम भूदेवी के रूप में मानते हैं क्या आपको पता है कि वह भी रजस्वला होती हैं। और यह पर्व तीन दिन तक मनाया जाता है। ओडिशा के लोग इस पौराणिक मान्यता पर बहुत विश्वास रखते हैं कि भूदेवी, भगवान विष्णु की पत्नी हैं और आषाढ़ मास के तीन दिन वह रजस्वला होती हैं। इन तीन दिनों के लिए राज्य में कृषि संबंधी सभी कार्यों को रोककर इस समय को "रज" या "रजो" त्यौहार के तौर पर बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है। इस दौरान धरती मां का प्रतीक मानकर सिल बट्टे की पूजा होती है और मिट्टी से जुड़े कार्य नहीं किये जाते। आज हम आपको इसी पर्व के बारे में बताने जा रहे हैं। यह पर्व इस साल 15 जून से शुरू हो रहा है और 18 जून को इसका समापन होगा। मोटे तौर पर यह पर्व मिथुन संक्रांति से शुरू होता है जिसे रज संक्रांति भी कहते हैं। इस दिन भगवान सूर्य देव वृषभ राशि से मिथुन राशि में संचरण करते हैं जिसका विभिन्न राशियों पर भी असर होता है। मान्यता है रज संक्रांति के बाद ही बारिश की ऋतु की शुरुआत मानी जाती है।


साल में एक बार धरती माता भी होती है रजस्वला

विशेषकर ओडिशा के तटीय क्षेत्र, पुरी, कटक, बालासोर, ब्रह्मपोर आदि में रहने वाली महिलाओं के बीच में यह त्यौहार हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस बार यह रज पर्व 15 जून से शुरू होगा। मान्यता है कि साल में एक बार धरती माता भी रजस्वला होती है। इस दौरान मिट्टी से जुड़े सभी कार्यों को करने का निषेध होता है। रज संक्रांति पर अच्छी बारिश होने के बावजूद लोग खेतों में मिट्टी वाले कार्य नहीं करते हैं। कुछ जगहों पर विभिन्न योजनाओं के तहत कराये जा रहे निर्माण कार्य भी दो दिन तक बंद रखे जाते हैं।


बच्चे स्वांग रचकर राधा-कृष्ण का ब्याह रचाते हैं

रज संक्रांति के उपलक्ष्य में गांवों में बच्चे राधा-कृष्ण, सुदामा, महाराज वासुदेव सहित अनेक देवी-देवताओं का स्वांग रचकर राधा-कृष्ण का ब्याह रचाते हैं। बच्चों द्वारा राधा-कृष्ण के ब्याह के कार्यक्रम का आयोजन तीन से 8 दिन तक चलता है। गांवों के बच्चे समूहों में अपने गांवों में घूमते हैं। हर घर में इनकी विधिवत पूजा कर चावल एवं सामर्थ्य के अनुसार पैसे देकर विदा किया जा रहा है।


बच्चे स्वांग रचकर राधा-कृष्ण का रचाते हैं ब्याह, करते हैं मस्ती

मिट्‌टी खुदाई की तो मिलेगी सजा

ओडिशा की संस्कृति में रूचि रखने वाले जानकार बताते हैं जिस तरह नारी प्रति माह कुछ दिन के लिए प्राकृतिक कारणों से अशुद्ध मानी जाती है, उसी तरह वर्ष में एक बार धरती माता भी रजस्वला होती हैं। इन दिनों में मिट्‌टी की खुदाई नहीं की जाती है।

इस पर्व के दौरान अगर कोई मिट्‌टी खुदाई करता है, तो उस पर धरती मां को चोट पहुंचाने का आरोप लग जाता है। जिसे हर वर्ष रोपाई पूर्व आयोजित ग्राम पूजा के समय दंडित किया जाता है। जिससे संबंधित व्यक्ति भी सहर्ष स्वीकार कर दंड भुगतता है। वह ग्राम देवता एवं ग्रामीणों से माफी मांग कर दोष मुक्त होता है। कई वर्षों से चली आ रही यह परंपरा बच्चों के मनोरंजन का माध्यम बन जाती है एवं किसानों में एक जुटता बनी रहती है।

जमशेदपुर में भी मनाया जाता है त्योहार

झारखंड की लौहनगरी जमशेदपुर में भी ओडिशा का लोक पर्व रज उत्सव धूम-धाम से मनाने की शुरुआत हो गयी है। घरों के साथ-साथ विभिन्न सामाजिक संगठनों द्वारा सामूहिक रज उत्सव का आयोजन भी किया जाता है। इसमें व्यंजन बनाने से लेकर अन्य मनोरंजक प्रतियोगिताओं का आयोजन आकर्षण का केंद्र रहता है। यह उत्सव तीन दिनों तक चलता है। पहले दिन इस उत्सव में विभिन्न प्रकार के व्यंजन पोड़ पीठा, मंडा पीठा, आरिसा पीठा सहित रज पान का आनंद महिलाओं द्वारा लिया जाता। उत्सव के दूसरे दिन महिलाएं व युवतियां घरों में ताश, लूडो सहित अन्य इनडोर गेम खेल कर समय बिताती हैं। यह सिलसिला तीसरे दिन भी जारी रहता है। चैथे दिन महिलाएं व युवतियां पहले खुद बाल धोकर स्नान करती हैं। इसके बाद धरती माता को वसमति स्नान कराती हैं। धरती माता को हल्दी भी चढ़ाई जाती है। मान्यता के अनुरूप रज उत्सव के दौरान धरती माता रजस्वला होती हैं और इसी वजह से महिलाएं व युवतियां धरती माता को स्पर्श नहीं करती हैं और न ही घर के काम करती हैं।

हिंदू धर्म में सूर्य का राशि परिवर्तन संक्रांति कहलाता है। सूर्य जिस भी राशि में गोचर करते हैं, उसे उसी राशि की संक्रांति माना जाता है। साल भर में 12 संक्रांतियां आती हैं। जिनमें से मिथुन संक्रांति भी एक है। इस दिन दान और पुण्य करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है। जेष्ठ के महीने में सूर्य देव मिथुन राशि में प्रवेश करते हैं, जिसके कारण इसे मिथुन संक्रांति कहा जाता है। इस दिन भगवान सूर्यदेव की विशेष रूप से पूजा होती है। सामान्यतः मिथुन संक्रांति को देश के हर हिस्से में अलग-अलग तरह से मनाया जाता है। हालांकि, उड़ीसा में इस त्योहार का विशेष महत्व है। इस दिन लोग अच्छी खेती के लिए बारिश की मनोकामना भगवान सूर्य से करते हैं। मिथुन संक्रांति को रज पर्व भी कहा जाता है। रज पर्व के दिन भगवान सूर्यदेव को प्रसन्न करने के लिए कई जगहों पर तो व्रत करे का भी चलन है।


सिलबट्टे को भुदेवी मानकर होती है पूजा

इस दिन सिलबट्टे की पूजा की जाती है। सिलबट्टे को लोग भूदेवी मानकर इसकी पूजा करते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन सिलबट्टे को दूध और पानी से पहले स्नान कराया जाता है। फिर सिलबट्टे को सिंदूर, चंदन लगाकर उस पर फूल और हल्दी चढ़ाई जाती है। मिथुन संक्रांति के दिन दान देने का भी बड़ा महत्व है। इस दिन ब्राह्मणों, गरीबों और जरूरतमंदों को दान देने से भगवान सूर्य प्रसन्न होते हैं। वसुंधरा के रजोनिवृत्ति होने का उत्सव रज संक्रांति और भूमि दहन ओडिआ संस्कृति के इस पर्व की परंपराऐं पूर्वी छत्तीसगढ़ मे भी प्रचलित हैं। हमारी संस्कृति में पृथ्वी को भी स्त्री रुप में ही माना गया है। भगवान विष्णु वराह अवतार धारण कर पृथ्वी का उद्धार करते हैं और शास्त्रों में भू देवी उद्धार के नाम से जानी जाती हैं। जब पृथ्वी को स्त्री के रुप में माना जाता है तो उसके साथ उसी रुप में व्यवहार किया जाता है। मान्यता है कि जिस तरह स्त्री रजस्वला होने के पश्चात गर्भाधान के लिए तैयार होती है उसी तरह वसुंधरा ॠतुमति होती है। रजस्वला होने के पश्चात जिस तरह एक स्त्री गर्भाधान के लिए तैयार हो जाती है उसी तरह सूर्य के मिथुन राशि में प्रवेश करने पर भूमि भी बीजारोपरण के लिए तैयार हो जाती है। इसलिए भूमि की इस गर्मी बीजारोपण के लिए उपयुक्त मानकर भूमि दहन त्यौहार मनाया जाता है।


धूम-धाम से मनाया जाता है रज संक्रांति पव

कहते हैं रज संक्रांति पर्व का मनाना इतना प्राचीन है जितनी प्राचीन जगन्नाथ संस्कृति है। श्रीक्षेत्र के राजा विद्याबसु एवं चंद्रचूड़ के समय से यह पर्व मनाया जा रहा है। इस पर्व के दिन तोषगांव का महल परिवार जमीन पर पैर नहीं रखता एवं उस दिन चूल्हा नहीं जलाया जाता, पूर्व दिन का बनाया भोजन ही किया जाता है। कोई सामान्य व्यक्ति भी ऐसा कार्य नहीं करता जिससे पृथ्वी को आघात पहुंचता हो। कृषि कार्य से लेकर सभी कार्य बंद होते हैं। पृथ्वी को लक्ष्मी का ही एक रुप माना जाता है क्योंकि वह जीवन यापन के लिए धन धान्य प्रदान करती है। इसके पश्चात किसान अपने खेतों में जाकर होम धूप देकर देवों का स्मरण कर खेतों में बीजारोपण करते हैं। तथा अच्छी फसल की कामना करते हैं। जहां एक ओर आज भी स्त्री के रजस्वला होने को छुपाया जाता है वहीं यहां पृथ्वी के रजस्वला होने को सार्वजनिक उत्सव के रुप में मनाया जाता है। इस पर्व के जरिए प्रथम वर्षा का स्वागत किया जाता है। जिस तरह वंसुधरा ऋतुमति हो रही है, बिल्कुल उसी तरह हर स्त्री ॠतुमति या रजस्वला होती है। चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व में झूले बंधते हैं, सजते हैं। कन्याएं झूले झूलती हंै और ढेर सारे पकवान घर घर में बनते हैं तथा वसुंधरा के ॠतुमति होने के इस पर्व को प्रतिवर्ष धूम धाम से मनाया जा रहा है।



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Pallavi Srivastava

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