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स्तनपान संवैधानिक अधिकार से मजाक है दुनिया का शिशु दूध बाजार

मां का दूध बच्‍चे को आसानी से पच जाता है। यह सर्वोत्तम वृद्धि व विकास और बीमारियों के विरुद्ध प्रतिरक्षा प्रदान करता है।

Yogesh Mishra
Written By Yogesh MishraPublished By Vidushi Mishra
Published on: 18 Oct 2021 1:15 PM GMT
Breastfeeding
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स्तनपान (फोटो- सोशल मीडिया)

Stanpan: शायद हम आप में से बहुत कम लोगों को पता हो कि स्तनपान संवैधानिक अधिकार है। यक़ीन भी शायद न हो। पर यदि कोई उच्च न्यायालय यह बात कहता हो तो विश्वास न करने की कोई गुंजाइश नहीं रह जाती। कर्नाटक हाईकोर्ट ने जन्म देने वाली मां( जेनेटिक मदर) व पालने वाली माँ (फ़ॉस्टर मदर) के एक विवाद में बताया कि "स्तनपान संवैधानिक अधिकार है।

कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद-21 मां को यह अधिकार देता है। इसे छीना नहीं जा सकता। इसी तरह नवजात को पूरा हक है कि उसे उसकी मां का दूध मिले। ये दोनों आपस में जुड़े समवर्ती अधिकार हैं।" संविधान के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय कानूनों में भी इसका प्रावधान है।

मां को अपने बच्चे को स्तनपान कराने का अधिकार (stanpan karna maulik adhikar)

मानवाधिकारों के वैश्विक घोषणापत्र में दर्ज बाल अधिकार के अंतरराष्ट्रीय कन्वेंशन 1989 के अनुच्छेद 25(2) के तहत नवजात को मां के दूध का अधिकार दिया गया है। मां को भी अपने बच्चे को स्तनपान कराने का अधिकार मिला है।

कोर्ट एक ऐसी मां की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसके नवजात को जन्म के तुरंत बाद अस्पताल से चुरा लिया गया था। महिला ने अपने बच्चे को उसकी पालक मां से वापस दिलाने की अपील की थी।

ऐसे में स्तनपान (stanpan karna kyon jaruri hai) को लेकर नई बहस का खड़ा होना लाज़िमी है। जन्‍म के एक घंटे के भीतर स्‍तनपान शुरू करवाना चाहिए। इससे दूध की मात्रा बढ़ती है। शिशु जितनी बार चाहे, उतनी बार उसे स्‍तनपान करवाना चाहिए। स्तनपान मां के गर्भाशय को संकुचित होने में मदद करता है। अधिक रक्‍तस्राव या संक्रमण के खतरे को कम कर देता है।

स्तनपान (फोटो- सोशल मीडिया)

कोलोस्‍ट्रोम, गाढ़ा-पीला दूध, जो बच्‍चे के जन्‍म के शुरूआती कुछ दिनों में मां के स्‍तन से निकलता है, नवजात शिशु के लिए सर्वोत्‍तम होता है। यह अत्‍यधिक पौष्टिक होता है। शिशु की संक्रमणों से रक्षा करता है। कभी-कभी माताओं को अपने शिशुओं को कोलेस्‍ट्रोम न देने की सलाह दी जाती है। लेकिन यह सलाह गलत है।

क्योंकि स्वास्थ्य मंत्रालय और विश्व स्वास्थ्य संगठन शिशु को जन्म के पहले छह महीने तक केवल अनन्य स्तनपान (एक्सक्लूसिव ब्रेस्टफीडिंग) कराने की सलाह देते है। विश्व स्वास्थ्य संगठन और स्वास्थ्य मंत्रालय शिशु को दो साल का होने तक स्तनपान जारी रखने की सलाह देते हैं।

माँ के लिए भी इसके बहुत से फायदे (stanpan karane ke fayde)

स्तनों के दूध में मौजूद पोषक तत्व उसे लाभ पहुंचाते रहेंगे। स्तनदूध शिशु के लिए सर्वोत्तम होता है। स्तनदूध शिशु को वह सब प्रदान करता है, जिसकी जरुरत उसकी ग्रोथ के लिए होती है। साथ ही, माँ के लिए भी इसके बहुत से फायदे हैं।

एक शोध के मुताबिक़ सभी शिशुओं को उनके शुरुआती छह महीनों में केवल मां का दूध दिया गया होता, तो अनुमानित प्रत्‍येक वर्ष 15 लाख बच्चों की जिंदगी बचा ली गई होती। स्‍वास्थ्‍य और विकास भी बहुत अच्‍छा रहता है। पशु का दूध, नवजात फॉर्मूला, पाउडर का दूध, चाय, मीठे पेय, पानी और ब्रेकफास्‍ट में लिए जाने वाले खाद्य मां के दूध की अपेक्षा कम पौष्टिक होते हैं।

मां का दूध बच्‍चे को आसानी से पच जाता है। यह सर्वोत्तम वृद्धि व विकास और बीमारियों के विरुद्ध प्रतिरक्षा प्रदान करता है। गर्म और सूखे मौसम में भी मां के दूध से नवजात शिशु के लिए द्रव्‍य की जरूरत पूरी होती है। पानी और अन्‍य पेय पदार्थ शुरुआती छह महीनों के दौरान आवश्‍यक नहीं होते। शिशु को मां के दूध की अपेक्षा कोई भी अन्‍य खाद्य या पेय पदार्थ देना हैजा और अन्‍य बीमारियों के खतरे को बढ़ाता है।

स्‍तनपान शिशुओं और छोटे बच्‍चों को गंभीर बीमारियों से लड़ने में मदद करता है। यह मां और बच्‍चे के बीच एक विशिष्‍ट सम्‍बन्‍ध भी बनाता है। मां का दूध बच्‍चे का 'पहला टीकाकरण' है। यह हैजा, कान और छाती के संक्रमण तथा अन्‍य स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍याओं के विरुद्ध प्रतिरोधक क्षमता प्रदान करता है। जब शिशु को शुरुआती महीनों में केवल मां का दूध दिया जाए। दूसरे वर्ष या उससे अधिक समय तक स्‍तनपान जारी रहे तो यह प्रतिरोधक क्षमता गजब की होती है।

आमतौर पर स्‍तनपान कर रहे शिशु, उन शिशुओं की अपेक्षा जो बोतल के भरोसे छोड़ दिये गये हैं, अधिक ध्‍यान प्राप्‍त करते हैं। देखभाल नवजात की वृद्धि और विकास तथा उसे अधिक सुरक्षित महसूस करवाने में मदद करता है।

शिशुओं को बोतल से दूध पिलाना (फोटो- सोशल मीडिया)

स्‍तनपान एक महिला को कम से कम छह महीनों के लिए गर्भव‍ती न होने की 98 फीसदी सुरक्षा प्रदान करता है। लेकिन यह केवल तब, जब उसका मासिक-धर्म दोबारा शुरू न हुआ हो, यदि शिशु सुबह-शाम स्‍तनपान कर रहा हो, यदि शिशु को अन्‍य कोई खाद्य और पेय पदार्थ या वैकल्पिक पेय न दिया गया हो।

जब तक बच्‍चा स्‍तनपान करता रहेगा, माता के मासिक धर्म की दोबारा शुरुआत में उतना ही वक्‍त लगेगा। यदि मां 24 घंटे में आठ बार से कम बार स्‍तनपान करवाती है या अन्‍य खाद्य या पेय देती है या पेसिफियर या वैकल्पिक पेय देती है, तो बच्‍चा कम मात्रा में दूध प्राप्‍त करेगा जो मां के मासिक धर्म को जल्‍द शुरुआत का कारण हो सकता है। यह संभव है कि उसके मासिक-चक्र के वापस आने से पहले ही वह फिर गर्भवती हो जाए। इसका खतरा जन्‍म के छह महीनों के बाद बढ़ता है।

स्तनपान से कहीं ज्यादा बेहतर बेबी मिल्क फॉर्मूला (baby milk formula)

दुनिया में बहुत सी कंपनियां सिर्फ अपने मुनाफे के लिए बेबी मिल्क को बेचने और प्रोमोट करने में लगा हुईं हैं। 'सेव द चिल्ड्रेन' संस्था की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के गरीब देशों में कंपनियों द्वारा ऐसे अभियान चलाए जाते हैं, जिनमें दावा किया जाता है कि स्तनपान से कहीं ज्यादा बेहतर बेबी मिल्क फॉर्मूला होता है।

ऐसे प्रचार अभियान माताओं को टारगेट करके चलाये जाते हैं। सेव द चिल्ड्रेन की रिपोर्ट में चार कंपनियों का नाम लिया गया है - नेस्ले, एबट, मीड जॉनसन और वेथ। बताया गया है कि ये कंपनियां चोरी छिपे और अवैध तरीके से प्रचार अभियान चलाती हैं।

रिपोर्ट में फिलीपींस का उदाहरण दिया गया है, जहां मात्र 34 फीसदी माताएँ ही अपने शिशु को स्तनपान कराती हैं। कंपनियों ने कोरोना के बहाने भी बेबी मिल्क (baby milk formula) को खूब बढ़ावा दिया है। 'इंटरनेशनल बेबी फ़ूड एक्शन नेटवर्क' संस्था ने कहा है कि कंपनियां इस डर को भुना रही हैं कि मां के दूध से कोरोना वायरस बच्चे में फैल सकता है। इस बारे में नेस्ले का उदाहरण दिया गया है, जो भारत और पाकिस्तान में कोरोना राहत के नाम पर बेबी फ़ूड बांट रहा है। जबकि इस तरह के डोनेशन के खिलाफ कानून हैं और ग्लोबल नियम कायदे हैं।

डायरेक्ट मार्केटिंग पर बैन के बावजूद कई बड़ी कंपनियां दुनियाभर में डिजिटल विज्ञापन चला रही हैं, जिसमें कोरोना वायरस और स्तनपान को जोड़कर प्रस्तुत किया जा रहा है। ग्लोबल बाजार 50.46 अरब डॉलर का है, जो 2027 तक 109.20 अरब डॉलर का हो जाएगा। यानी सालाना 10.6 फीसदी की ग्रोथ। सिर्फ अमेरिका में बेबी फ़ूड का बाजार 5.59 अरब डॉलर सालाना है।

भारत में बेबी फ़ूड की बड़ी कंपनियों में नेस्ले, अमूल, न्यूट्रिशिया, एबट, मन्ना फूड्स, प्रिस्टिन ऑर्गेनिक्स, मीड जॉनसन और रैप्टाकोस ब्रेट हैं। भारत में बेबी फ़ूड का बाजार 4500 करोड़ रुपए सालाना का है। यह बाजार 16 फीसदी सालाना की दर से बढ़ रहा है।

(फोटो- सोशल मीडिया)

भारत में प्रतिवर्ष ढाई करोड़ शिशुओँ जन्म

दुनियाभर में बेबी मिल्क का जितना बाजार है, उसका 56.26 फीसदी हिस्सा सिर्फ एशिया प्रशांत में है। इसकी वजह अशिक्षा और गरीबी है। भारत में 58 फीसद माताएँ पांच महीने तक अपने शिशु को स्तनपान कराती हैं। विश्व में यह औसत 43 फीसदी का है। यूनिसेफ के अनुसार भारत में प्रतिवर्ष ढाई करोड़ शिशु जन्म लेते हैं।

यूरोप के देशों में बेबी मिल्क पावडर बेचने पर पाबंदी है। यूरोप के कई देशों में सरकार की तरफ से प्रचार किया जाता है कि आप अपने बच्चे को बेबी पाउडर मत खिलाईये। " यूरोप में बेबी मिल्क पाउडर को "बेबी किलर" कहा जाता है।

बेबी मिल्क पाउडर पहले धड़ल्ले से भारत के बाजार में बिकता था। बहुत वर्षों तक देश में जो बेबी पाउडर बिकता था, उसके डब्बे पर कुछ भी लिखा नहीं होता था। दबाव पड़ने के बाद सरकार ने इतना संशोधन कर दिया कि कंपनियों को बेबी पाउडर के डब्बे पर यह लिखना आवश्यक होगा कि माँ का दूध बच्चे के लिए सर्वोत्तम है।

भारत में शिशुओं के अनेक तरह के बेबी फ़ूड फार्मूला उपलब्ध हैं। ये भी कंपनियों की एक रणनीति के तहत है कि अपना प्रोडक्ट किसी न किसी तरह बेच डाला जाए। रेडी-टू-यूज फॉर्मूला, लिक्विड कंसंट्रेट फॉर्मूला, पाउडर फॉर्मूला, गाय के दूध पर आधारित फॉर्मूला, हाइड्रोलाइज्ड फॉर्मूला, सोया बेस्ड फॉर्मूला, लैक्टोज रहित फॉर्मूला, प्रीमैच्योर बच्चों के लिए विशेष फॉर्मूला, फोर्टीफायर फॉर्मूला, मेटाबॉलिज्म पर केंद्रित फॉर्मूला, ऑर्गेनिक फॉर्मूला, स्पेशल फॉर्मूला बाज़ार में बेचा जाता है।

भारत सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश (Milk Production in India)

भारत दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश है। नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड के अनुसार, 1991-92में 55.6 मिलियन टन दूध उत्पादन हुआ।प्रति व्यक्ति उपलब्धता 178 ग्राम प्रतिदिन थी, 2000 - 01 में 84.4 मिलियन टन उत्पादन हुआ। उपलब्धता बढ़ कर 222 ग्राम प्रति दिन हो गयी।

2018-19 में 187.7 मिलियन टन दूध उत्पादन हुआ। प्रति व्यक्ति दूध की उपलब्धता 394 ग्राम प्रतिदिन थी। 2019-20 में 198 टन दूध का उत्पादन हुआ।प्रति व्यक्ति प्रति दिन उपलब्धता 406 ग्राम हो गई।

फोटो- सोशल मीडिया

कोरोना काल का असर डेयरी सेक्टर पर भी पड़ा है जिसके चलते वित्तीय वर्ष 2020-21 में उत्पादन में काफी गिरावट दर्ज की गई। 2020-21 के लिए यह आंकड़ा 208 मिलियन टन तय किया गया था। भारत में दूध का उत्पादन पिछले छह वर्षों के दौरान सालाना औसतन 6.3 प्रतिशत की दर से बढ़ा है। दूध की उपलब्धता वर्ष 2013-14 में प्रति व्यक्ति 307 ग्राम थी।

दूध के उत्पादन का मूल्य 2018-19 के दौरान मौजूदा कीमतों पर 7.72 लाख करोड़ रुपये से अधिक है। यह गेहूं और धान के कुल उत्पादन मूल्य से अधिक है। पिछले छह वर्षों के दौरान दुग्ध उत्पादन औसतन 6.3 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से बढ़ा है, जबकि विश्व दुग्ध उत्पादन 1.5 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से बढ़ रहा है।

अर्थव्यवस्था में 4 फीसदी हिस्सेदारी के साथ डेयरी क्षेत्र सबसे बड़ा इकलौता कृषि कॉमोडिटी है। 2019-20 में लगभग 188 मिलियन मीट्रिक टन उत्पादन के साथ भारत विश्व स्तर पर दूध का सबसे बड़ा उत्पादक है।

भारतीय दूध उत्पादन 2025 तक 270 मिलियन मीट्रिक टन तक बढ़ने की उम्मीद है। पिछले छह वर्षों के दौरान भारत में दुग्ध उत्पादन औसतन 6.3 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से बढ़ा है, जबकि विश्व दुग्ध उत्पादन 1.5 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से बढ़ रहा है।

दूध के व्यवसाय से देश के सात करोड़ से ज्यादा लोग जुड़े

फोटो- सोशल मीडिया

भारत में डेयरी उत्पादों का निर्यात वर्ष 2020-21 के दौरान 54,762.31 मीट्रिक टन था। इस दौरान 1,491.66 करोड़ रुपये यानी 201.37 मिलियन डॉलर का कारोबार हुआ। 2020-21 में जिन देशों को प्रमुख रूप से डेयरी उत्पादों का निर्यात किया गया, उनमें से यूएई, बांग्लादेश और अन्य दक्षिण पूर्व एशियाई देश थे।

उत्तर प्रदेश ने भारत के दुग्ध उत्पादन में सर्वाधिक योगदान देकर डेयरी क्षेत्र में एक कीर्तिमान स्थापित किया है। पिछले चार वर्षों में उत्तर प्रदेश ने 1,242.37 लाख मीट्रिक टन दूध का उत्पादन किया। यूपी में दूध का उत्पादन 2016-17 में 277.697 लाख मीट्रिक टन से बढ़कर 2019-20 में 318.630 लाख मीट्रिक टन हो गया।

खुले दूध और उससे संबंधित प्रोडक्ट्स में मिलावट के तमाम मामले सामने आ चुके हैं। दरअसल, भारत में दुग्ध उत्पादन में स्वच्छता के बुनियादी मानकों का पालन नहीं किया जाता। वहीं, कीटाणुओं और जीवाणुओं के कारण 68.5 फीसदी दूषित दूध की आपूर्ति होती है।

भारत में 80 फीसदी से ज्यादा तरल दूध की खपत होती है। लेकिन इसके प्रोसेसिंग पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता। इस तरह की सप्लाई चेन भी बहुत दुरुस्त नहीं है।उत्पादित दूध का एक बड़ा हिस्सा स्वच्छता के बुनियादी मानकों का पालन ही नहीं करता।

देश में 70 प्रतिशत दूध की आपूर्ति छोटे, सीमांत या भूमिहीन किसानों से होती है। पिछले 15 वर्षों से भारत दूध उत्पादन के क्षेत्र में सबसे आगे है। उत्तर प्रदेश, गुजरात और पंजाब, ये तीन प्रदेश दूध उत्पादन में सबसे आगे हैं। दूध के व्यवसाय से देश के सात करोड़ से ज्यादा लोग जुड़े हुए हैं।

भारत विश्व में सबसे कम खर्च पर यानी 27 सेंट या बीस रुपये प्रति लीटर की दर से दूध का उत्पादन करता है। अमेरिका में ये लागत 63 सेंट है। अगले 10 वर्षों में तिगुनी वृद्धि के साथ भारत विश्व में दुग्ध उत्पादों को तैयार करने वाला अग्रणी देश बन जाएगा।

देश में अब 400 से अधिक डेरी प्लांट हैं। गाय या भैंस से दूध लेने पर 3.2 किलोग्राम कार्बन उत्सर्जन होता है।डेयरी का एक लीटर दूध उत्पादन करने के लिए 628 लीटर पानी की जरूरत होती है।

शिशु दूध के बाजार को बंद करने का कठोर फैसला

वर्ष 2018 में भारतीय पशु कल्याण बोर्ड के सदस्य मोहन सिंह अहलुवालिया देश में बिकने वाले करीब 68 प्रतिशत दूध और उससे बने उत्पादों को नकली बताया था। कहा कि यह उत्पाद भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) के मानदंडों पर खरे नहीं उतरते हैं। अहलुवालिया ने दूध और उससे बनने वाले उत्पादों में मिलावट की पुष्टि करते हुए कहा था कि सबसे आम मिलावट डिटर्जेंट, कास्टिक सोडा, ग्लूकोज, सफेद पेंट और रिफाइन तेल के रूप में की जाती है।

बड़ा सवाल है कि शिशुओं के लिए जब दुनिया का सर्वोत्तम दूध उसकी मां के पास मौजूद है । कानून के अनुसार यह संवैधानिक अधिकार भी है और बेबी फूड के नुकसान भी सर्वविदित हैं तो कंपनियों को मुनाफा कमाने के लिए क्यों शिशु दूध के कारोबार की छूट दी जा रही है।

कोरोना काल में भी कंपनियों शिशुओं के स्वास्थ्य से खिलवाड़ कर रही हैं और माता—पिता की संवेदना का सौदा करने में जुटी हैं। शायद यह समय है जब​ स्तनपान के संवैधानिक अधिकार के साथ ​ही शिशु दूध के बाजार को बंद करने का कठोर फैसला कर लिया जाना चाहिए।

Vidushi Mishra

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