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जानिए क्यों सुभाष चंद्र बोस का 'फॉरवर्ड ब्लॉक' राष्ट्रवाद से वाम और फिर राष्ट्रवाद की ओर कर रहा वापसी

Subhas Chandra Bose: अमर स्वतंत्रता सेनानी सुभाष चंद्र बोस ने कांग्रेस की नीतियों से सहमत न होने के बाद ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉसक की स्थापना एक राष्ट्रवादी पार्टी के तौर भी की थी।

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Newstrack NetworkPublished By Deepak Kumar
Published on: 12 April 2022 3:43 PM IST
जानिए क्यों सुभाष चंद्र बोस का फॉरवर्ड ब्लॉक राष्ट्रवाद से वाम और फिर राष्ट्रवाद की ओर कर रहा वापसी
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Subhas Chandra Bose: अमर स्वतंत्रता सेनानी सुभाष चंद्र बोस (subhas chandra bose)। जिन्हें हम नेता जी के नाम से जानते हैं। उन्होंने कांग्रेस (Congress) की नीतियों से सहमत न होने के बाद ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉसक (AIFB) की स्थापना एक राष्ट्रवादी पार्टी के तौर भी की थी। कालांतर में ये राष्ट्रवादी दल विचारधारा बदल वामपंथी हो गया। इसके बाद अब करीब 70 साल बाद ये अपने झंडे से लाल रंग, हसिया और हथौड़ा हटा रहा है। इसके बाद झंडे पर सिर्फ बाघ ही नजर आएगा। फॉरवर्ड ब्लॉक का ये बदलाव राष्ट्रवाद की तरफ झुकाव के रूप में देखा जा रहा है।

जब नेता जी ने बनाया फॉरवर्ड ब्लॉरक

साल 1939 में महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) और कांग्रेस के सदस्यों के विरोध के बाद भी सुभाषचंद्र बोस एकबार फिर कांग्रेस अध्यक्ष निर्वाचित हो जाते हैं। नेता जी का अध्यक्ष बनना अप्रत्याशित मानते हुए जवाहरलाल नेहरू (Jawaharlal Nehru) और सरदार वल्लभभाई पटेल (0) ने कांग्रेस कार्यसमिति (Congress Working Committee) से इस्तीफा दे दिया।

त्रिपुरा अधिवेशन में नेता जी ने जो भाषण दिया वो कांग्रेस के गले नहीं उतरा और पार्टी में उनके खिलाफ माहौल बनने लगा। अगस्त, 1939 में सुभाष को तीन वर्षों के लिए पार्टी के आतंरिक चुनाव से दूर कर दिया गया। सुभाष समझ गए थे कि अब कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर वो अधिक समय तक काम नहीं कर सकते।

29 अप्रैल 1939 को नेता जी ने अध्यकक्ष पद से इस्ती फा दिया और कांग्रेस के अंदर 3 मई 1939 को फॉरवर्ड ब्लॉंक का गठन किया। मतभेद बढ़ते जा रहे थे और काम करना मुश्किल। ऐसे में 22 जून 1939 को उन्होंने फॉरवर्ड ब्लॉमक पार्टी का गठन किया।

22 जून 1939 को फॉरवर्ड ब्लॉक का पहला अधिवेशन नागपुर में आयोजित हुआ। फॉरवर्ड ब्लॉक का झंडा जनता के सामने लाया गया। इस झंडे में केसरिया, सफेद, हरे रंग के साथ सफेद रंग में बाघ की तस्वी र थी।

डर गई अंग्रेज सरकार

  • पार्टी देश भर में जागरूकता अभियान चलाने लगी। इस अभियान में हजारों लोग शामिल होते थे। दिन पर दिन लोग पार्टी से जुड़ने लगे। अंग्रेजों के दमन के खिलाफ पार्टी मुखर थी। उसे जनता का समर्थन मिल रहा था। इससे बौखला कर अंग्रेजी हुकूमत ने रैलियों की अनुमति बंद कर दी। बड़े स्तर पर गिरफ़्तारी हुई। नेता जी भी गिरफ्तार किए गए। जेल में उन्होंने अनशन किया।
  • जनवरी, 1941 में कोलकाता में नजरबंदी के दौरान बोस पुलिस को चकमा देकर देश से बाहर निकल गए। इसके लगभग ढाई साल बाद उन्होंने आजाद हिंद फौज बनाई। उनके सैन्य अभियान के बारे में हम आपको फिर कभी बताएँगे फिलहाल फॉरवर्ड ब्लॉक की ही बात करते हैं।
  • जून, 1942 में अंग्रेजी सरकार ने फारवर्ड ब्लॉक को बैन कर दिया। देश भर में गिरफ्तारी आरंभ हुई कई सदस्य भूमिगत हो गए।
  • आजादी से पहले पार्टी दो गुटों सुभाषवादी फारवर्ड ब्लॉक और मार्क्सवादी फारवर्ड ब्लॉक में विभाजित हो गई। लेकिन दोनों ही गुट देश के विभाजन के खिलाफ थे।
  • 1953 में सुभाषवादी फारवर्ड ब्लॉक का प्रजा समाजवादी दल में विलय हो गया। वहीं मार्क्सवादी फारवर्ड ब्लॉक सिर्फ पश्चिम बंगाल तक सीमित रह गया।

पार्टी का चुनावी सफर

  • 1971 के आम चुनाव में फॉरवर्ड ब्लॉक ने 24 प्रत्याशी मैदान मं् उतारे।
  • रामंतपुरम से पीके मुकिया थेवर और नागपुर से जम्बुवंतराव धोटे ने जीत दर्ज की।
  • 1971 में ही ओडिशा विधानसभा चुनाव हुए यहाँ भी पार्टी ने 4 उम्मीदवार उतारे थे।
  • 1972 में त्रिपुरा में वाम दलों के 'संयुक्त मोर्चा' में शामिल हो हुई।
  • 1977 के आम चुनाव परिणाम फॉरवर्ड ब्लॉक के लिए काफी उत्साहजनक थे, तीन प्रत्याशी चुनाव जीते।

अब क्या है पार्टी का प्लान

फॉरवर्ड ब्लॉक वर्तमान में जनसमर्थन और सहयोग पाने के लिए नेता जी की बनाई राष्ट्रवादी पार्टी की तरफ लौटना चाहती है। इसलिए वो पुराना झंडा अपनाने जा रही है। नया झंडा स्थातपना दिवस 22 जून को फहराया जाएगा। जिस तरह से फॉरवर्ड ब्लॉक आजादी के इतने साल बाद अपने को बदल रही है, उससे ये तो साफ़ हो गया कि वो बंगाल के बाहर भी पैर पसारना चाहती है। उसे ये भी अच्छे से पता है कि वाम विचारधारा का प्रभाव सिमटता जा रहा है। इस समय देश में राजनीति करनी है तो राष्ट्रवाद की करनी होगी। पार्टी नेत्रत्व अब देश भर में पैर पसारने का प्लान कर रहा है। इसके लिए वो नेता जी का नाम भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते। क्योंकि ये सभी को पता है, न आजादी से पहले और न ही अब नेता जी से बड़ा कोई राष्ट्रवादी नहीं हुआ है।

फॉरवर्ड ब्लॉक की राह कैसी होगी

फॉरवर्ड ब्लॉक के पास जनता को बताने के लिए नेता जी का नाम है, उनका काम है, उनकी विरासत है। जो उन्हें स्थापित कर सकती है। लेकिन ये कोई ऐसा काम नहीं जो महीनों में हो जाए। इसके लिए सालों मेहनत करनी होगी। उन्हें जनता को इसका भी जवाब देना होगा कि आखिर उन्होंने नेता जी विरासत से क्यों अपने को अलग किया। और अब क्यों वापस नेता जी की तरफ लौट रहे हैं।

देखना रोचक होगा कि देश की सत्ता पर काबिज बीजेपी जो अपने राष्ट्रवादी होने का दम भरती है, उसके साथ फॉरवर्ड ब्लॉक के रिश्ते अब कैसे होते हैं। इसके साथ ही फॉरवर्ड ब्लॉक का बदला चेहरा जनता के सामने कितना असरदार होगा।

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Deepak Kumar

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