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भारतीय वैज्ञानिकों ने किया सूर्य पर एक विरोधाभासी दावा, जानिए इसके बारे में

Sun Facts: इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स (IIA) बेंगलुरु द्वारा किए गए इस नए अध्ययन का दावा है कि 2008 और 2019 की अवधि के मध्य सूर्य 1996 से 2007 की अवधि की तुलना में अधिक शांत रहा है।

Ankit Awasthi
Written By Ankit AwasthiPublished By Chitra Singh
Published on: 20 Dec 2021 6:13 AM GMT
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सूर्य (फोटो- सोशल मीडिया)

Sun Facts: लगभग एक महीने पहले अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने बताया कि नए सौर चक्र शुरू होने की इस अवधि के दौरान सौर ज्वालाएं अधिक सक्रिय होती हैं। वहीं नासा (NASA) के इस दावे के उलट भारतीय अंतरिक्ष वैज्ञानिकों (Indian space scientists) का कहना है कि अब सूरज पहले से ज्यादा शांत है। इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स (IIA) बेंगलुरु द्वारा किए गए इस नए अध्ययन का दावा है कि 2008 और 2019 की अवधि के मध्य सूर्य 1996 से 2007 की अवधि की तुलना में अधिक शांत रहा है।

पहले ही बदल चुका है सूर्य का बरताव

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स (IIA) बेंगलुरु स्थित वैज्ञानिकों का मानना है कि सूर्य में मौजूद कोरोनल मास इफेक्ट पहले की अपेक्षा कमजोर हो चुका है। वैज्ञानिक 23वें और 24वें सौर चक्र के दौरान अन्य ग्रहों पर भी कोरोनल मास इफेक्ट (ICMEs) को समझने की कोशिश कर रहे हैं। फ्रंटियर्स इन एस्ट्रोनॉमी एंड स्पेस साइंस में प्रकाशित एक शोधपत्र से प्राप्त जानकारी इस ओर एक बड़े परिवर्तन का उल्लेख करती है।

बेहद आवश्यक है कोरोनल मास इजेक्शन का अध्ययन

कोरोनल मास इजेक्शन (coronal mass ejection) सूर्य की सतह से अंतरिक्ष में प्लाज्मा और चुंबकीय क्षेत्रों के उत्सर्जन को संदर्भित करता है। इसके अनुरूप बीते 11 वर्षों के दौरान सूर्य से प्राप्त उत्सर्जन को मूलतः तीन भागों में बांटा गया है, जो कि बढ़ते हुए, अधिकतम तथा घटते हुए के रूप में हैं और यही तीनों भाग एक सौर चक्र को पूर्ण भी करते हैं। वैज्ञानिकों ने जानकारी दी है कि करोनल मास इफ़ेक्ट की सूर्य से अलग-अलग दूरी पर जांच करने और उनमें होने वाले परिवर्तनों का अध्ययन कर खगोलीय घटनाओं को समझने में मदद में मदद मिओ सकती है।

पिछले सौर चक्र से है दो तिहाई की कमी

सौर चक्र का औसत आकार 24 ज्ञात हुआ है, यानी इसके मुताबिक 2008 और 2019 के बीच कोरोनल मास इंजेक्शन में पिछले चक्र की तुलना में दो-तिहाई की कमी देखी गयी है। यह आंकड़ा बेहद चौंकाने वाला है क्योंकि इस कमी और दर्ज किए गए कम दबाव का अर्थ है कि करोनल मास इफेक्ट अंतरिक्ष में पहले की अपेक्षा अत्यधिक फैल रहे हैं। इस विषय पर शोध कर रहे वैज्ञानिकों ने ज्ञात किया है कि 24वें चक्र में प्राप्त गैस का दबाव 23वें चक्र की तुलना में केवल 40 प्रतिशत था।

जानें क्या है कोरोनल मास इफेक्ट?

आसान भाषा में बात करें तो सूर्य के उत्सर्जन से कोरोनल मास इफेक्ट (coronal mass effect) को भली-भांति समझा जा सकता है। आमतौर पर इस तरह के उत्सर्जन सूर्य की सतह से निकलने वाली लपटों के परिणामस्वरूप होते हैं तथा इसके अंतर्गत आने वाले प्लाज्मा, गैस और चुंबकीय क्षेत्र उनमें से एक हैं। इसका प्रमुख सूर्य के चुंबकीय क्षेत्र लगातर हो रहा परिवर्तन बताया जा रहा है तथा लगातार ऐसे उत्सर्जन सौर सौर मंडल में मौजूद अन्य ग्रहों को भी प्रभावित कर सकते हैं।

जानें यह कितनी चिंता का विषय है?

सूर्य की सतह से निकलने के पश्चात कोरोनल मास इफ़ेक्ट की अंतरिक्ष में गति 250 किमी/सेकेंड से बढ़कर अधिकतम 3,000 किमी/सेकेंड तक हो सकती है तथा इसी गति के आधार पर कोरोनल मास इफ़ेक्ट को धरती पर (coronal mass ejection effects on earth) पहुंचने में 15 से 18 घंटे का समय लग सकता है यानी इससे सम्बंधित चेतवानी जारी करने के पश्चात खतरे से निपटने के लिए बेहद ही कम समय मिलता है। हालांकि इसके अतिरिक्त इस तरह के बदलाव का पृथ्वी पर तत्काल कोई बड़ा प्रभाव नहीं पड़ता है तदैव इसके चलते किसी विशेष चिंता करने की ज़रूरत नहीं है।

(अनुवाद-रजत वर्मा)

Chitra Singh

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