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योगी सरकार का आदेश सुप्रीम कोर्ट में रद्द, मदद मांगने पर नहीं दर्ज होगा मुकदमा
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, एल नागेश्वर राव और एस रविंद्र भट की पीठ ने कोरोना महामारी से संबंधित मामलों की स्वत: संज्ञान ली।
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को उत्तर प्रदेश की योगी सरकार के उस फैसले पर खासी नाराजगी जताई है जिसमें कहा गया है कि सोशल मीडिया पर ऑक्सीजन सिलिंडर, बेड, दवा की कमी की जानकारी देने वालों पर एफआईआर कराई जाएगी और उनकी संपत्ति जब्त की जाएगी। सुप्रीम कोर्ट ने इसे खारिज करते हुए कहा कि अगर ऐसा किया गया तो इसे अदालत की अवमानना का मामला माना जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, एल नागेश्वर राव और एस रविंद्र भट की पीठ ने कोरोना महामारी से संबंधित मामलों की स्वत: संज्ञान ली। याचिका के तहत सुनवाई के दौरान यह बात कही है। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि हम यह साफ करना चाहते हैं कि अगर लोग सोशल मीडिया पर अपनी पीड़ा बता रहे हैं तो उसे झूठी सूचना बता कर कार्रवाई नहीं की जा सकती। सभी राज्यों और उनके पुलिस महानिदेशक तक यह स्पष्ट संकेत जाना चाहिए कि इस तरह की कार्रवाई को हम कोर्ट की अवमानना के तौर पर देखेंगे।
सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश को उत्तर प्रदेश की योगी सरकार के उस आदेश पर रोक की नजर से देखा जा रहा है जिसमें सरकार ने कहा है कि जो लोग सोशल मीडिया पर ऑक्सीजन सिलिंडर, कोरोना टेस्ट, अस्पताल में उपचार नहीं मिलने, रेमडेसिविर दवा नहीं मिलने संबंधी सूचनाएं डाल रहे हैं। उन्हें झूठी अफवाह फैलाने के लिए दोषी मानकर कार्रवाई की जाएगी। ऐसे लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज होगा और राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत कठोर कार्रवाई की जाएगी।
योगी सरकार के इस आदेश के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में भी एक जनहित याचिका दायर की गई है। सामाजिक कार्यकर्ता साकेत गोखले ने हाईकोर्ट से गुहार लगाई है कि इस आदेश में सुधार किया जाए।
कोर्ट ने रेमडेसिविर के लिए भी दिए निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा कि इस समय राष्ट्रीय स्तर पर हॉस्पिटल में भर्ती करने के लिए क्या कोई स्पष्ट नीति है? जब कोविड का नया वैरिएंट RTPCR से पता नहीं चल पा रहा, तो उस बारे में क्या रिसर्च हुआ है? टेस्ट का नतीजा कम समय में मिल सके, इस बारे में क्या किया जा रहा है? बांग्लादेश में रेमडेसिविर का एक जेनरिक इंजेक्शन बनाया गया है। क्या वर्तमान कानून के तहत उसका आयात हो सकता है? क्या उसे भारत में बनाने का लाइसेंस लिया जा सकता है। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि हम सरकार की तरफ से रखा गया पावर प्वाइंट प्रेजेंटेशन देखेंगे। पर हमने कुछ मुद्दों की पहचान की है। उन्हें रखना चाहते हैं। क्या ऐसी व्यवस्था बन सकती है, जिससे लोगों को पता चल सके कि ऑक्सीजन की सप्लाई कितनी की गई। किस हॉस्पिटल के पास इस समय कितनी उपलब्धता है।
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से यह भी पूछा कि केंद्र सरकार 100 प्रतिशत वैक्सीन क्यों नहीं खरीद रही। एक हिस्सा खरीद कर बाकी बेचने के लिए वैक्सीन निर्माता कंपनियों को क्यों स्वतंत्र कर दिया गया है? कोर्ट ने केंद्र सरकार पर कड़ी टिप्पणी की है कि वैक्सीन विकसित करने में सरकार का भी पैसा लगा है। इसलिए, यह सार्वजनिक संसाधन है। ऐसे में वैक्सीन की कीमत में अंतर क्यों? निरक्षर लोग जो कोविन ऐप इस्तेमाल नहीं कर सकते, वह वैक्सिनेशन के लिए कैसे पंजीकरण करवा सकता हैं? इसके लिए सरकार की ओर से क्या प्रबंध किए जा रहे हैं।
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