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सुप्रीम कोर्ट ने POCSO पर बदला बॉम्बे हाईकोर्ट का फैसला, कहा- 'स्किन टू स्किन कॉन्टेक्ट होना जरूरी नहीं'
सर्वोच्च अदालत ने गुरुवार को 'स्किन टू स्किन' कांटेक्ट और पॉक्सो कानून को लेकर बड़ा फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट किया कि यौन उत्पीड़न के मामले में 'स्किन टू स्किन' कांटेक्ट के बिना भी POCSO Act लागू होता है।
सर्वोच्च अदालत (Supreme Court) ने गुरुवार (18 नवंबर 2021) को 'स्किन टू स्किन' कांटेक्ट और पॉक्सो कानून (POCSO Act) को लेकर बड़ा फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट किया कि यौन उत्पीड़न के मामले में 'स्किन टू स्किन' कांटेक्ट के बिना भी POCSO Act लागू होता है।
दरअसल, एक मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट (High Court of Bombay) की नागपुर पीठ ने यौन उत्पीड़न (Sexual Harrasment) के एक आरोपी को बरी कर दिया था। कोर्ट ने आरोपी को बरी करने के आदेश में कहा था, कि 'नाबालिग के निजी अंगों को स्किन टू स्किन संपर्क के बिना टटोलना पॉक्सो एक्ट (POCSO Act) के तहत नहीं आता।' इसी मुद्दे को अटॉर्नी जनरल (Attorney General) के.के. वेणुगोपाल ने सुप्रीम कोर्ट में उठाया था। कोर्ट ने अब बॉम्बे हाईकोर्ट (High Court of Bombay) उस फैसले को पलटते हुए ये फैसला सुनाया है।
'पॉक्सो एक्ट के मकसद ही खत्म कर देगी'
सुप्रीम अदालत ने इस मुद्दे पर अपने फैसले में आरोपी के मंशा पर सवाल उठाए। कोर्ट ने साफ कर दिया, कि आरोपी की मंशा से शरीर के निजी अंगों के स्पर्श की रही थी, जिससे यह पॉक्सो एक्ट का मामला है। यह नहीं कहा जा सकता, कि कपड़े के ऊपर से बच्चे का स्पर्श यौन शोषण नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा, ऐसी परिभाषा बच्चों को शोषण से बचाने के लिए बने पॉक्सो एक्ट के मकसद ही खत्म कर देगी।
कोर्ट ने पॉक्सो एक्ट को परिभाषित किया सुप्रीम कोर्ट ने POCSO पर बदला बॉम्बे हाईकोर्ट का फैसला, कहा- 'स्किन टू स्किन कॉन्टेक्ट होना जरूरी नहीं'सर्वोच्च न्यायालय ने यौन शोषण के इस मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच से बरी हुए आरोपी को दोषी पाया है। कोर्ट ने आरोपी को पोक्सो एक्ट के तहत तीन साल की सजा का ऐलान किया। कोर्ट ने अपने फैसले में पॉक्सो एक्ट को परिभाषित भी किया। कोर्ट ने कहा, सेक्सुअल इंटेंशन के तहत कपड़ों के साथ भी छूना पॉक्सो एक्ट के तहत आता है। जिसमें 'टच' शब्द का इस्तेमाल प्राइवेट पार्ट के लिए किया गया है, जबकि शारीरिक संपर्क (फिजिकल कॉन्ट्रेक्ट) का मतलब ये नहीं है कि इसके लिए स्किन टू स्किन कांटेक्ट हो।
महाराष्ट्र सरकार भी थी पक्षकार
बता दें, कि अटॉर्नी जनरल (AG) के.के. वेणुगोपाल ने बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। फिर, इस याचिका का समर्थन करते हुए महाराष्ट्र राज्य महिला आयोग (Maharashtra State Commission for Woman), महाराष्ट्र सरकार सहित कई अन्य पक्षकारों की ओर से दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई हुई। 30 सितंबर को मामले की सुनवाई पूरी हो गई थी। बस, फैसला सुरक्षित रख लिया गया है।
..तो मिल जाएगी खुली छूट
इस मामले की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था, कि हाईकोर्ट के फैसले का मतलब है कि यदि यौन उत्पीड़न के आरोपी और पीड़िता के बीच सीधे स्किन टू स्किन का संपर्क नहीं होता है, तो POCSO Act के तहत यौन उत्पीड़न का मामला नहीं बनता है। अटॉर्नी जनरल ने सुनवाई के दौरान कहा था कि कोर्ट के इस फैसले से व्यभिचारियों को खुली छूट मिल जाएगी। उन्हें सजा देना बेहद पेचीदा और मुश्किल हो जाएगा।