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Sedition Law: राजद्रोह कानून पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक, कहा- पुनर्विचार होने तक नहीं दर्ज होंगे नए केस

Sedition Law: सर्वोच्च न्यायालय में बुधवार 11 मई को राजद्रोह (Sedition) मामले पर सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, कि 'राजद्रोह कानून पर पुनर्विचार तक इसका प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए।

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Written By amanPublished By Rakesh Mishra
Published on: 11 May 2022 6:28 AM GMT (Updated on: 11 May 2022 6:53 AM GMT)
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सर्वोच्च न्यायालय। (Social Media)

Sedition Law hearing in Supreme Court:सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) में बुधवार 11 मई को राजद्रोह (Sedition) मामले पर सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, कि 'राजद्रोह कानून पर पुनर्विचार तक इसका प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए। साथ ही, अदालत ने ये भी कहा है कि केंद्र हो या राज्य सरकार, 124A के तहत कोई नए केस (FIR) दर्ज नहीं की जाएगी।

इससे पहले, इस मामले में केंद्र सरकार (Central Government) ने कोर्ट में कहा, कि वह पुलिस को देशद्रोह के प्रावधान के तहत 'संज्ञेय अपराध' (Serious crime) दर्ज करने से नहीं रोक सकती। मगर, पुलिस अधीक्षक (SP) रैंक के सक्षम अधिकारी की संस्तुति (recommendation) के बाद ही 124A के तहत मामले दर्ज करने का प्रबंध किया जा सकता है। केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल (Solicitor General) ने कहा, 'राजद्रोह के लंबित मामलों की समीक्षा की जा सकती है। धारा 124-A के तहत दर्ज मामले में जल्द से जल्द जमानत (Bail) देने पर भी विचार किया जा सकता है।

'फिलहाल इस कानून पर रोक न लगाई जाए'

इस दौरान केंद्र सरकार की तरफ से पक्ष रखा सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता (Tushar Mehta) ने। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट को बताया, कि 'हमने राज्य सरकारों को जारी किए जाने वाले निर्देश (Instruction) का मसौदा तैयार किया। जिसके मुताबिक, राज्य सरकारों (state governments) को स्पष्ट निर्देश होगा, कि बिना एसपी (SP) या उससे ऊंचे स्तर के अधिकारी की मंजूरी के राजद्रोह की धाराओं में एफआईआर (FIR) दर्ज नहीं की जाएगी। अपनी दलील में सॉलिसिटर जनरल ने अदालत से कहा, कि 'फिलहाल इस कानून पर रोक न लगाई जाए।'

FIR दर्ज करने के कारण भी बताएंगे

तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि, 'पुलिस अधिकारी राजद्रोह के प्रावधानों (Provisions Of Sedition) के तहत एफआईआर (FIR) दर्ज करने के समर्थन में पर्याप्त कारण भी बताएंगे। सॉलिसिटर जनरल ने कहा, कि कानून पर पुनर्विचार तक वैकल्पिक उपाय संभव है।'

'गंभीरता का विश्लेषण मुश्किल'

वहीं, सर्वोच्च न्यायालय में आंकड़ों की बात पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, कि 'ये तो जमानती धारा है। अब, सभी लंबित मामले (Pending Cases) की गंभीरता का विश्लेषण या फिर आकलन हो पाना मुश्किल है। लिहाजा, ऐसे में अदालत अपराध (Crime) की परिभाषा पर रोक कैसे लगा सकती है? यह उचित नहीं होगा। वहीं, याचिकाकर्ताओं (Petitioners) की ओर से दलील रखते हुए वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल (Kapil Sibal) ने अदालत से मांग की है, कि राजद्रोह कानून (Sedition Law) पर तत्काल रोक लगाने की जरूरत है।

याचिकाकर्ताओं ने की थी रोक लगाने की मांग

बता दें कि, इसी मामले में कल यानी मंगलवार को सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट से कहा था, कि 'अगर सर्वोच्च न्यायालय कानून की वैधता (Validity Of Law) के मसले को आगे विचार के लिए बड़ी बेंच को जाता है तो अदालत इस बीच कानून के अमल पर रोक लगा दे।' गौरतलब है कि, तीन जजों की बेंच (Three Judge Bench) राजद्रोह कानून की वैधता मामले पर सुनवाई कर रही है। इस बेंच में चीफ जस्टिस एनवी रमणा (Chief Justice N V Ramana), जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली (Justice Hima Kohli) शामिल हैं।

SC ने सरकारी हलफनामे की तारीफ की

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को सरकार को सलाह दी थी। कोर्ट ने कहा था, कि 'केंद्र सरकार को तब तक राजद्रोह कानून (Sedition Law) के इस्तेमाल से बचना चाहिए, जब तक वह खुद कोई फैसला नहीं ले लेती। अदालत ने सरकार के उस हलफनामे की भी तारीफ की, जिसमें कहा गया है, कि केंद्र सरकार धीरे-धीरे अंग्रेजों के जमाने के कानूनों को खत्म कर रही है।' इसी कड़ी में स्वयं प्रधानमंत्री भी देशद्रोह कानून पर विचार कर रहे हैं।

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अमन कुमार - बिहार से हूं। दिल्ली में पत्रकारिता की पढ़ाई और आकशवाणी से शुरू हुआ सफर जारी है। राजनीति, अर्थव्यवस्था और कोर्ट की ख़बरों में बेहद रुचि। दिल्ली के रास्ते लखनऊ में कदम आज भी बढ़ रहे। बिहार, यूपी, दिल्ली, हरियाणा सहित कई राज्यों के लिए डेस्क का अनुभव। प्रिंट, रेडियो, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया चारों प्लेटफॉर्म पर काम। फिल्म और फीचर लेखन के साथ फोटोग्राफी का शौक।

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