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Swami Vivekananda Story: स्वामी विवेकानंद ने युवाओं से कहा था, गीता पढ़ने के बजाय फुटबॉल खेलो

Swami Vivekananda Story: विवेकानंद को एक देशभक्त संन्यासी के रूप में जाना जाता है और उनके जन्मदिन को युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है।

Ramkrishna Vajpei
Written By Ramkrishna VajpeiPublished By Vidushi Mishra
Published on: 3 July 2021 11:01 PM IST
Swami Vivekananda had told the youth, instead of reading Gita, play football
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फुटबॉल खेलते युवा (फोटो-सोशल मीडिया)

Swami Vivekananda Story: चार जुलाई को को युवा हृदय सम्राट स्वामी विवेकानंद का पुण्य स्मरण दिवस है। विवेकानंद को एक देशभक्त संन्यासी के रूप में जाना जाता है और उनके जन्मदिन को युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। मात्र 39 वसंत देखने वाले युवा संन्यासी' और 'युवा हृदय सम्राट' स्वामी विवेकानंद ने युवाओं का आह्वान किया था, "गीता पढ़ने के बजाय फुटबॉल खेलो।"

दरअसल, वह कर्मयोगी और युगद्रष्टा थे, इसलिए उनका उद्घोष था- "उठो, जागो और तब तक मत रुको, जब तक लक्ष्य को न प्राप्त कर लो।" अपने समय से बहुत आगे की सोचने वाले महान चिंतक और दार्शनिक विवेकानंद की कहानियों में छिपा ज्ञान आज जानते हैं यहां।

हर काम खूब मन लगाकर

एक बार स्वामी विवेकानन्द अपने आश्रम में सो रहे थे। कि तभी एक व्यक्ति उनके पास आया जो कि बहुत दुखी था और आते ही स्वामी विवेकानन्द के चरणों में गिर पड़ा और बोला महाराज मैं अपने जीवन में खूब मेहनत करता हूँ। हर काम खूब मन लगाकर भी करता हूँ फिर भी आज तक मैं कभी सफल व्यक्ति नहीं बन पाया।

स्वामी विवेकानन्द (फोटो-सोशल मीडिया)

उस व्यक्ति कि बाते सुनकर स्वामी विवेकानंद ने कहा ठीक है। आप मेरे इस पालतू कुत्ते को थोड़ी देर तक घुमाकर लायें तब तक आपकी समस्या का समाधान ढूँढता हूँ।

इतना सुनकर वह व्यक्ति कुत्ते को घुमाने के लिए चल गया। और फिर कुछ समय बीतने के बाद वह व्यक्ति वापस आया। तो स्वामी विवेकानन्द ने उस व्यक्ति से पूछा की यह कुत्ता इतना हाँफ क्यों रहा है। जबकि तुम थोड़े से भी थके हुए नहीं लग रहे हो आखिर ऐसा क्या हुआ ?

इस पर उस व्यक्ति ने कहा कि मैं तो सीधा अपने रास्ते पर चल रहा था जबकि यह कुत्ता इधर उधर रास्ते भर भागता रहा और कुछ भी देखता तो उधर ही दौड़ जाता था। जिसके कारण यह इतना थक गया है।

इस पर स्वामी विवेकानन्द ने मुस्कुराते हुए कहा बस यही तुम्हारे प्रश्नों का जवाब है। तुम्हारी सफलता की मंजिल तो तुम्हारे सामने ही होती है, लेकिन तुम अपने मंजिल के बजाय इधर उधर भागते हो जिससे तुम अपने जीवन में कभी सफल नही हो पाए। यह बात सुनकर उस व्यक्ति को समझ में आ गया कि यदि सफल होना है तो हमे अपने मंजिल पर ध्यान देना चाहिए।

एक विदेशी महिला बहुत ही प्रभावित हुईं

स्वामी विवेकानन्द की ख्याति दूर दूर तक फैली हुई थी। एक बार की बात है वह सत्संग के लिए विदेश गए उस कार्यक्रम में बहुत से विदेशी लोग आये हुए थे ! उनके द्वारा दिए गए भाषण से एक विदेशी महिला बहुत ही प्रभावित हुईं।

वह विवेकानन्द के पास आयी और बोली कि मैं आपसे शादी करना चाहती हूँ ताकि आपके जैसा ही मुझे गौरवशाली पुत्र प्राप्ति हो। इसपर स्वामी विवेकानन्द बोले कि क्या आप जानती हैं कि " मै एक सन्यासी हूँ " भला मै कैसे शादी कर सकता हूँ अगर आप चाहो तो मुझे आप अपना पुत्र बना लो।

इससे मेरा संन्यास भी नहीं टूटेगा और आपको मेरे जैसा पुत्र भी मिल जाएगा। यह बात सुनते ही वह विदेशी महिला स्वामी विवेकानन्द के चरणों में गिर पड़ी और बोली कि आप धन्य है। आप ईश्वर के समान है ! जो किसी भी परिस्थिति में अपने धर्म के मार्ग से विचलित नहीं होते हैं।

स्वामी विवेकानन्द (फोटो-सोशल मीडिया)

विवेकानंद का समझाने का ढंग विलक्षण था योग जैसे गूढ़ विषय को समझाते हुए वह कहते हैं, एक राजा किसी बात पर अपने मंत्री से नाराज हो गया और उसे एक बड़ी ऊंची मीनार की चोटी पर कैद कर दिया। बेचारा मंत्री वहां कैद होकर अपनी मौत की राह देखने लगा।

मैं किस प्रकार आपकी मदद करूं

मंत्री की पतिव्रता पत्नी ने रात में उस मीनार के नीचे आकर पुकार कर पति से पूछा कि मैं किस प्रकार आपकी मदद करूं। मंत्री विद्वान था उसने उसे उपाय बता दिया। पति की आज्ञानुसार पत्नी अगली रात आवश्यक सामग्री लेकर वहां पहुँची।

मंत्री के निर्देशानुसार उसने एक भ्रंग (भौंरे) के पैर में रेशम का सूत बाँध दिया और उसकी मूंछ में एक बूँद शहद लगाकर मीनार की दीवार पर छोड़ दिया। शहद की महक से लालायित भंवरे ने दीवार पर चढ़ना शुरू कर दिया और उसके साथ उसके पैर से बंधा रेशम का धागा भी ऊपर जाने लगा जैसे ही वह धागा मंत्री की खिड़की के पास पहुंचा मंत्री ने उसे पकड़ लिया और पुकार कर पत्नी से कहा कि अब इस धागे से सूत का डोरा बाँध दो।

इस प्रकार बह डोरा भी मंत्री तक पहुँच गया और फिर डोरे से मजबूत रस्सा बांधकर ऊपर आ गया, जिसे ऊपर बाँध कर मंत्री नीचे उतरा और मुक्त हो गया। स्वामी जी कहते हैं हमारे शरीर में श्वास प्रश्वास की गति बही रेशमी सूत है जिसके संयम से स्नायविक शक्ति रूप सूत, तदुपरांत मनोवृत्ति रूपी डोरी और अंत में प्राण रूप रस्सा पकड़ा जा सकता है। प्राणों को जीत लेने पर मुक्ति प्राप्त होती है। धारणा ध्यान और समाधि वही क्रमिक विकास है।



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Vidushi Mishra

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