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The Kashmir Files: विस्थापित कश्मीरी पंडितों ने दी SC के दरवाजे पर दस्तक, 90 के दशक में हुए नरसंहार के जांच की लगाई गुहार
The Kashmir Files: कश्मीरी पंडितों की संस्था 'रूट्स इन कश्मीर' ने सुप्रीम कोर्ट में क्यूरेटिव याचिका दाखिल करते हुए मामले की फिर से जांच करने की मांग की है।
New Delhi: 'द कश्मीर फाइल्स' (The Kashmir Files) फिल्म के आने के बाद दशकों से किसी कोने में दफन पड़ा कश्मीरी पंडितों के नरसंहार (Massacre) का मुद्दा एकबार फिर सुर्खियों में है। 90 के दशक में कश्मीर (Kashmir) घाटी में पाकिस्तान ( Pakistan) समर्थित कट्टरपंथियों और आतंकवादियों के द्वारा कश्मीरी पंडितों का भीषण नरसंहार किया गया था। 1989-90 के दौरान हुए इस नरसंहार को लेकर एकबार फिर कश्मीरी पंडितों ने देश की सर्वोच्च अदालत (supreme court) पर दस्तक दी है। कश्मीरी पंडितों की संस्था 'रूट्स इन कश्मीर' ने सुप्रीम कोर्ट में क्यूरेटिव याचिका दाखिल करते हुए मामले की फिर से जांच करने की मांग की है।
दरअसल, 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने कश्मीरी पंडितों के नरसंहार (Massacre of Kashmiri Pandits) की जांच को लेकर दायर रिव्यू याचिका को खारिज कर दिया था। उस दौरान कोर्ट ने कहा था कि नरसंहार के 27 साल बाद सबूत जुटाना मुश्किल है। अब सुप्रीम कोर्ट में दाखिल नई याचिका में कहा गया है कि सर्वोच्च अदालत ने 1984 के सिख दंगों की जांच 33 साल बाद करवाई है। ऐसा ही इस मामले में भी किया जाना चाहिए।
विस्थापित कश्मीरी पंडितों का दर्द
कश्मीर में अल्पसंख्यक कश्मीरी पंडितों (minority kashmiri pandits) के पलायन के 31 साल पूरे हो चुके हैं। 19 जनवरी, 1990 को लाखों कश्मीरी पंडितों को अपना पुस्तैनी घरबार छोड़कर अन्य जगहों पर जाने के लिए विवश होना पड़ा। इससे पहले उन्होंने वहां काफी अत्याचार सहे और मौत का नंगा नाच देखा। तब से लेकर आज तक तीन दशक बीत चुके हैं, लेकिन उनकी वापसी मुमकिन नहीं हो सकी है। जिससे ये लोग बेहद नाराज और निराश हैं। तीन दशक बीत गए मगर आज भी उनके जेहन में उस खौफनाक रात की यादें ताजा है, जिसे वे चाह कर भी नहीं भूल पा रहे।
पुस्तैनी घरों में वापस लौटने की बाट जोह रहे कश्मीरी पंडित
कश्मीरी पंडितों की संस्था 'रूट्स इन कश्मीर' (Roots in Kashmir) ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करते हुए कहा कि तब 33 सालों बाद सिख दंगों की जांच हो सकती है तो फिर कश्मीरी पंडितों के नरसंहार की जांच भी कराई जा सकती है। दरअसल घाटी में फैले आतंक के सबसे पहला और आसान शिकार कश्मीरी पंडित ही बने थे।
1990 के दशक में उन्हें कश्मीर में भारतीय पहचान के तौर पर देखते हुए पाक समर्थित आतंकियों ने उन्हें अपना टारगेट बनाया। कश्मीरी पंडितों के रक्तरंजित इतिहास पर देश में अबतक केवल राजनीति ही हुई है। वो अब भी अपने पुस्तैनी घरों में वापस लौटने की बाट जोह रहे हैं।