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Today History: ऐसा क्या था New Dress Code में, भारतीय सैनिकों ने अंग्रेजों के खिलाफ छेड़ी थी पहली जंग

भारत में 1857 में हुए अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ विद्रोह के बारे में तो सभी जानते हैं, लेकिन इससे 50 साल पहले भी देश में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह भड़का था। जानिए क्या हुआ था...

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Newstrack NetworkPublished By Satyabha
Published on: 10 July 2021 5:53 PM IST (Updated on: 10 July 2021 5:58 PM IST)
Today History: ऐसा क्या था New Dress Code में, भारतीय सैनिकों ने अंग्रेजों के खिलाफ छेड़ी थी पहली जंग
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फोटो (सोशल मीडिया)

Today History: वैसे तो आपने 1857 में भारत में हुए अंग्रेजी हुकुमतों के खिलाफ विद्रोह के बारे में सुना या पढ़ा होगा। मगर आज हम आपको 1857 से लगभग 50 वर्ष पहले अंग्रेजों के खिलाफ देश में हुए विद्रोह की याद दिलाएंगे। इसे वेल्‍लोर विद्रोह (Vellore mutiny) के नाम से जाना जाता जाता है। 10 जुलाई 1806 यानी आज ही के दिन मद्रास राज्य (अब तमिलनाडु) राज्य के शहर वेल्लोर में हुआ था। भारतीय सैनिकों ने अंग्रेजों के खिलाफ ये विद्रोह किया था।

ईस्‍ट इंडिया कंपनी (East India Company) और ब्रिटिश शासन के खिलाफ सिपाहियों की यह पहली बगावत थी। नए ड्रेस कोड (News Dress Code) के विरोध में सिपाहियों ने बगावत की, जिसमें हिंदुओं को तिलक-टीका लगाने और मुस्लिमों को दाढ़ी रखने की इजाजत नहीं दी गई थी। विद्रोहियों ने वेल्‍लोर किले पर कब्‍जा करके 200 अंग्रेज सैनिकों को मारा और घायल कर दिया था। वेल्‍लोर में एक दिन चले इस बगावत को 1857 की क्रांति से 50 साल पहले अंजाम दिया गया था। विद्रोहियों ने टीपू सुल्‍तान के बेटों की ताकत को फिर से मजबूत करने की कोशिश भी की थी। कई अदालतों में चले मुकदमों के बाद करीब 100 विद्रोहियों को फांसी की सजा हुई।

विद्रोह की मुख्य वजह?

वेल्लोर विद्रोह की मुख्य वजह भारतीय सैनिकों की धार्मिक भावनाओं को चोट पहुंचाना था। अंग्रेज सरकार की तरफ से नवंबर 1805 में एक सिपाही ड्रेस कोड अनिवार्य कर दिया गया था, जिसके तहत हिंदू सिपाहियों के लिए तिलक बैन कर दिया गया था और मुस्लिम सिपाहियों को दाढ़ी-मूंछ हटाने के लिए कहा गया था। वेल्‍लोर विद्रोह में टीपू सुल्‍तान के वंशजों ने सिपाहियों का साथ दिया था। वह उस समय वेल्लोर के किले में कंपनी द्वारा नजरबन्द किए गए थे।

विद्रोह को अंग्रेज सरकार ने दिया दमनकार करार

वेल्लोर के विद्रोह को अंग्रेज सरकार ने पूरी तरह से दमनकार करार दे दिया था। मद्रास सेना के कमांडर-इन-चीफ जनरल सर जॉन क्रैडॉक ने उस समय टोपी पहनने का आदेश दिया। ये टोपी उन भारतीयों को पहननी थी जिन्‍हें जबरन ईसाई धर्म स्‍वीकार कराया गया था। इस विद्रोह में 600 आम नागरिकों की मौत हो गई थी। इसके बाद अंग्रेज हुकुमत की तरफ से 100 विद्रोहियों को मौत की सजा सुनाई गई थी। कई विद्रोही सैनिकों का औपचारिक रूप से कोर्ट-मार्शल भी किया गया।



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