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Unemployment: कोरोना महामारी में 3% पुरुषों की तुलना में 4.2 %महिला अधिक बेरोजगार
Unemployment :वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के एक अध्ययन के अनुसार, कोरोना महामारी के दौरान महिलायें विश्व भर में पुरुषों की तुलना में अधिक बेरोजगार हुई है।
Unemployment: वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम (World Economic Forum) के एक अध्ययन के अनुसार, कोरोना महामारी (Corona Pandemic) के दौरान महिलायें विश्व भर में पुरुषों की तुलना में अधिक बेरोजगार हुई है। 2019 के मुकाबले पुरुषों में बेरोजगारी दर स्तर पर आते हुए देखी जा रही है तो वही 2019 की तुलना में 13 मिलियन महिलाएं और बेरोजगार हुई है।
संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी ने कहा कि संक्रमण विरोधी आर्थिक और सामाजिक प्रतिबंधों की अवधि के दौरान महिलाओं को छंटनी या काम के घंटे कम होने का अधिक खतरा होता है, विशेष रूप से आवास, खाद्य सेवाओं और विनिर्माण जैसे क्षेत्रों में।
कई महिलाओं को न केवल आय का गंभीर नुकसान हुआ है, बल्कि अवैतनिक देखभाल कार्य का खामियाजा भी भुगतना पड़ रहा है।वैश्विक स्तर पर, 2019 और 2020 के बीच, महामारी के परिणामस्वरूप महिलाओं के रोजगार का 4.2% समाप्त हो गया, जो पुरुषों के रोजगार के 3% या 60 मिलियन नौकरियों की तुलना में 54 मिलियन नौकरियों की गिरावट का प्रतिनिधित्व करता है।2021 में नियोजित महिलाओं की संख्या 2019 की तुलना में 13 मिलियन कम होने का अनुमान है, जबकि रोजगार में पुरुषों की संख्या 2019 की तरह ही होने का अनुमान है।महामारी के कारण अमेरिका में महिलाओं के रोजगार में सबसे बड़ी क्षेत्रीय गिरावट 9.4% थी, और इस क्षेत्र में महिलाओं के लिए संभावनाएं धूमिल हैं।
भारत के संदर्भ में-
भारत की केंद्र सरकार ने मंत्रिमंडल में हुए बदलाव के बाद केंद्र सरकार में महिला मंत्रियों की संख्या बढ़कर 11 हो गई. स्थानीय मीडिया में इसकी काफी चर्चा हुई और सोशल मीडिया पर भी सभी महिला मंत्रियों की एक-साथ ली गई तस्वीर शेयर की जाती रही। इस तस्वीर के जरिए भारत में महिलाओं की स्थिति मजबूत होने का दावा किया जा रहा है लेकिन सच्चाई यह है कि कोरोना काल में भारत में महिलाओं की स्थिति बहुत खराब हुई है। कंपनियों, एनजीओ और सरकारों को नीतियां बनाने के लिए आंकड़े उपलब्ध कराने वाली कंपनी डलबर्ग ने एक रिपोर्ट में बताया है कि महामारी के दौरान भारत में महिलाओं को बेरोजगारी का सामना करना पड़ा. बिना पैसा दिए उनसे काम कराया गया। यहां तक कि वे भरपेट खाना भी नहीं खा सकीं।
यह रिपोर्ट पिछले साल मार्च से अक्टूबर के बीच 15 हजार महिलाओं से बात कर तैयार की गई है। इसमें कहा गया है कि कम कमाई वाले घरों में महिलाओं के लिए संसाधनों और सुविधाओं तक पहुंच में कमी आई है। रिपोर्ट के मुताबिक हर 10 में से 1 महिला को इस दौरान भूखा रहना पड़ा है. जबकि 16 फीसदी के लिए सैनिटरी नैपकिन और जरूरी स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच मुश्किल हो गई। हालात खराब होने का अंदाजा इससे लगा सकते हैं कि 2019 में ही राष्ट्रीय सैंपल सर्वे के आंकड़ों में बताया जा चुका था कि भारत में महिलाएं पुरुषों के मुकाबले 10 गुना ज्यादा ऐसा घरेलू काम करती हैं, जिसके लिए उन्हें कोई पैसा नहीं मिलता है.
हिंसा, शोषण और मैरिटल रेप की घटनाएं बढ़ीं
इस दौरान महिलाओं पर हिंसा और शोषण में भी बढ़ोतरी हुई है और मैरिटल रेप की शिकायतें बढ़ी हैं.महिलाएं छोटी नौकरियां या ब्यूटी पार्लर जैसे छोटे बिजनेस करके घर का खर्च चलाने में मदद करती थीं लेकिन कोरोना काल में वे बेरोजगार हो गईं। ऐसे हालात में अगर पति की भी नौकरी छूटी तो बच्चों की फीस का इंतजाम मुश्किल हो गया। दरअसल, गरीब परिवारों को मुफ्त राशन, सीधी आर्थिक मदद और कुछ अन्य तरीकों से सहायता दी गई है लेकिन मध्यमवर्गीय परिवारों के लिए ऐसी कोई कोशिश नहीं हुई है। मध्यम वर्गीय लोगों का आत्मसम्मान बहुत जल्दी आहत होता है और अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए किसी के सामने हाथ नहीं फैलाना चाहते हैं। ऐसी हालत में कई परिवार कर्ज के बोझ तले भी दबते गए हैं, जिससे हिंसा और शोषण के मामले और बढ़े हैं।
महिलाओं पर महामारी के प्रभाव की जानकारी देने वाली डेलॉयट की 'विमेन एट वर्क' रिपोर्ट से यह बात साबित होती है। इसमें भारत की 78 प्रतिशत महिलाओं ने नौकरी छोड़ने की वजह घर में बढ़े काम को बताया है, जबकि 61 प्रतिशत महिलाओं ने अपने करियर को लेकर उत्साह खत्म होने और 42 प्रतिशत ने मानसिक स्वास्थ्य को काम छोड़ने की वजह बताया है।
कोरोना के दौरान महिलाओं ने खोई सालों की प्रगति
वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की सालाना 'जेंडर गैप इंडेक्स 2021' रिपोर्ट में भारत 28 पायदान लुढ़क गया है. अब यह 156 देशों के बीच 140वें स्थान पर है। इस रिपोर्ट के मुताबिक भारत में महिलाओं के अर्थव्यवस्था में योगदान और उनके लिए मौजूद अवसरों में पिछले साल के मुकाबले 3 प्रतिशत की कमी आई है और कुल लेबर फोर्स में उनका योगदान सिर्फ 22 फीसदी रह गया है।
सेंटर फॉर मॉनीटरिंग इंडियन इकॉनमी (CMIE) के आंकड़ों के मुताबिक भारत में महिलाओं की बेरोजगारी दर पुरुषों के मुकाबले दोगुनी (17 प्रतिशत) है. यानी पुरुषों के मुकाबले ज्यादा महिलाओं ने कोरोना काल में नौकरियां खोई हैं। आंकड़ों के मुताबिक पहले जहां महिलाएं प्रति सप्ताह 770 रुपये कमा रही थीं, वहीं अब उनकी कमाई घटकर 180 रूपये प्रति सप्ताह रह गई है। इससे भी ज्यादा परेशान करने वाली बात यह है कि जिन महिलाओं की नौकरियां गई हैं, उनमें से ज्यादातर ने नौकरियों की तलाश ही छोड़ दी है।
जानकारों के मुताबिक कोरोना काल में पिछले कई सालों में महिलाओं को लेकर हुई प्रगति एक झटके में खत्म हो गई है। वे महिलाओं से जुड़ी समस्याओं को चक्रीय और एक पुरुषवादी समाज का नतीजा मानते हैं और इसके समाधान के तौर पर शिक्षा की बात कहते हैं। लेकिन कोरोना काल के आंकड़े जानकारों को और डरा रहे हैं। पिछले साल के अंत में एक स्टडी में 37 प्रतिशत स्कूली बच्चियों ने कहा था कि वे निश्चित तौर पर नहीं कह सकती कि वे स्कूल लौट पाएंगीं। ऐसे में जानकारों को लड़कियों के बाल विवाह के मामले बढ़ने का भी डर है। जबकि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे (NFHS) के अब तक आए आंकड़े पहले ही दिखा रहे हैं कि 2015 के बाद से भारत में बाल विवाह के मामलों में बढ़ोतरी हुई है।