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लांसेट के एडिट पर बिफरे कई केंद्रीय मंत्री, भारतीय विशेषज्ञ की दलील को बताया दमदार
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने लांसेट के संपादकीय को असंतुलित बताया है।
नई दिल्ली: कोरोना संकटकाल में मोदी सरकार की नीतियों की आलोचना करने पर मशहूर मेडिकल जर्नल द लांसेट (The lancet) पर केंद्रीय मंत्रियों का गुस्सा फूट पड़ा है। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन (Dr. Harsh Vardhan) समेत कई केंद्रीय मंत्रियों ने लांसेट के संपादकीय को पक्षपाती और एकतरफा बताते हुए एक भारतीय स्वास्थ्य विशेषज्ञ का निजी ब्लॉग साझा किया है।
टाटा मेमोरियल सेंटर, मुंबई के कैंसर डिपार्टमेंट के डिप्टी डायरेक्टर प्रोफेसर पंकज चतुर्वेदी ने लांसेट की रिपोर्ट को वैज्ञानिक कम और राजनीति से ज्यादा प्रेरित बताया है। अपने लेख में प्रोफेसर चतुर्वेदी ने यह भी कहा है कि लांसेट का संपादकीय केवल मीडिया में अटेंशन पाने और ट्विटर पर ट्रेंड होने के लिए लिखा गया है। इस संपादकीय का मकसद पूरी दुनिया में भारत को बदनाम करने के सिवा कुछ नहीं है।
प्रोफेसर के लेख को बताया सही जवाब
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने लांसेट के संपादकीय को असंतुलित बताया है। उन्होंने कहा कि प्रोफेसर चतुर्वेदी का लेख लांसेट में भारत का कोविड-19 आपातकाल शीर्षक से छपे असंतुलित संपादकीय का सही जवाब है। उन्होंने कहा कि हाल के दिनों में भारत में कोविड-19 के संकट में कई गुना बढ़ोतरी हुई और ऐसे नाजुक मौके पर एक सम्मानित जर्नल को राजनीतिक रूप से निष्पक्ष रहना चाहिए था।
भारत को बदनाम करने की साजिश
केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी प्रोफ़ेसर चतुर्वेदी के लेख को शेयर किया है। उन्होंने कहा कि लांसेट का संपादकीय भारत को दुनिया भर में बदनाम करने के लिए प्रकाशित किया गया। इसका उद्देश्य मीडिया अटेंशन पाना और ट्विटर पर ट्रेंड करने का था। केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर ने भी प्रोफेसर चतुर्वेदी के ब्लॉग को शेयर करते हुए ट्वीट किया है कि इसे पढ़कर खुद इस बाबत फैसला कीजिए।
केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने भी इस लेख को साझा करते हुए इसे लांसेट को करारा जवाब बताया है। भाजपा आईटी सेल के मुखिया अमित मालवीय ने भी प्रोफेसर चतुर्वेदी के लेख को शेयर करते हुए कहा कि यह लेख द लांसेट को चुभने वाला है।
प्रोफेसर चतुर्वेदी ने दीं ये दलीलें
प्रोफेसर चतुर्वेदी ने अपने लेख में लिखा है कि भारत की आबादी करीब 130 करोड़ है और यहां महज 2,62,000 लोगों की जान गई है। उन्होंने कहा कि अभी भी हमारा कोविड-19 पर पूरा नियंत्रण है। उन्होंने कहा कि यदि अमेरिका, ब्राजील और ब्रिटेन की आबादी को देखा जाए तो वहां मरने वालों का प्रतिशत भारत से काफी ज्यादा है।
प्रोफ़ेसर चतुर्वेदी के मुताबिक भारत में मृत्यु दर महज 1.1 प्रतिशत है जो कि अमेरिका, ब्रिटेन, ब्राजील, इटली और जर्मनी से कम है। हमारे यहां कोविड-19 वाली रिकवरी भी सारी दुनिया से सबसे अधिक है। प्रोफ़ेसर चतुर्वेदी ने कहा कि लांसेट का संपादकीय ब्रिटिश औपनिवेशिक युग में समाचार रिपोर्टों की याद दिलाने वाला है। इसके जरिए देश की छवि को सपेरों और बंजारों वाली बनाने की कोशिश की गई है।
कई ट्विटर यूजर्स का फूटा गुस्सा
केंद्रीय मंत्रियों की ओर से प्रोफ़ेसर चतुर्वेदी का लेख साझा किए जाने के बाद कई टि्वटर यूजर्स का गुस्सा फूट पड़ा है। एक यूजर ने अपनी प्रतिक्रिया में लिखा है कि हमारे स्वास्थ्य मंत्री का यह मानना है कि किसी ब्लॉग पर छपा लेख दुनिया के सबसे पुराने मेडिकल जर्नल द लांसेट को जवाब दे सकता है।
एक दूसरे यूजर ने लिखा है कि एक निजी ब्लॉग के जरिए दुनिया भर में मशहूर मेडिकल जर्नल को जवाब देने की कोशिश की गई है। कई और यूजर्स ने लांसेट को प्रतिष्ठित जर्नल बताते हुए कहा कि एक निजी ब्लॉग उसका मुकाबला कैसे कर सकता है।
संपादकीय में कही गई थी यह बात
प्रतिष्ठित मेडिकल जर्नल लांसेट ने अपने संपादकीय में लिखा था कि भारत सरकार ने कोविड-19 की दूसरी लहर के संबंध में दी गई चेतावनी की अनदेखी की। संपादकीय में इसे मोदी सरकार की बड़ी चूक बताया गया है। देश में चुनाव और कुंभ के योजन किए गए जिसका भयावह नतीजा निकला।
इसके साथ ही संपादकीय में यह भी कहा गया था कि सरकार महामारी पर काबू पाने से ज्यादा ट्विटर से अपनी आलोचना को हटाने में उत्सुक दिखी। संपादकीय में राज्य सरकारों की कोशिशों का जिक्र करते हुए यह भी कहा गया है कि जनता को कोविड-19 जुड़ी हुई सावधानियों के बारे में बताने के लिए केंद्र सरकार को भी अहम भूमिका निभानी होगी।