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Urbanization India: शहरीकरण के उजाले तले दबा स्लम का अंधेरा, आंकड़े दिखाते हैं मुश्किलों का पहाड़

रोजगार की तलाश में गांव की जिंदगी छोड़ शहर की तंग गलियों में रहने को मजबूर

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Report amanPublished By Raghvendra Prasad Mishra
Published on: 5 Oct 2021 5:04 PM GMT
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स्लम एरिया की फाइल तस्वीर (फोटो साभार-सोशल मीडिया)

Urbanization India: देश के विभिन्न हिस्से से प्रतिदिन हजारों लोग शहरों या महानगरों का रुख करते हैं। बेहतर जीवन और रोजगार (Bharat me Rojgar) के लिए गांवों को पीछे छोड़ बड़ी आबादी शहर आती हैं। वो शहर आ तो जाते हैं। लेकिन फिर उनका सामना होता है तंग गलियों वाले इलाके से। इन इलाकों में घुसते ही जहां-तहां कचरा फैला मिलता है तो पानी से भरी बजबजाती बदबूदार नालियां स्वागत के लिए तैयार मिलती हैं। इन इलाकों में जिस एक चीज की सबसे ज्यादा किल्लत होती है वो है पानी। अगर कोई व्यक्ति दिल्ली जैसे शहर जाता है तो यकीन मानिए पानी के लिए उसका सहारा सिर्फ और सिर्फ पानी का टैंकर ही होगा। वहीं, किसी दूसरे शहर में भी हो सकता है। जलस्तर नीचे होने की वहज से हैंडपंप की सुविधा आदि न हो तो सोचिए जीवन कितना दुश्कर हो जाता होगा। ऐसे इलाकों को ही 'स्लम' कहते हैं।

90 के दशक में जब खुले व्यापार की नीति की वजह से शहरों का तेज गति से औद्योगिकीरण (Audyogikaran) होने लगा, तब भारत के गांवों और छोटे शहरों की बड़ी आबादी उधर का रुख करने लगी। शुरुआत तो अच्छी रही औद्योगिक विकास देखने को मिला। लेकिन बाद में यही चुनौती बनकर खडी हो गई। क्योंकि तेज गति से होता शहरीकरण आज एक अपरिहार्य चुनौती बन गया है। साथ ही सेवा क्षेत्र के विकास के साथ शहरों पर जनसंख्या का दबाव लगातार बढ़ता ही जा रहा है। क्या आपको पता है, देश की राजधानी दिल्ली दुनिया का छठा सबसे बड़ा महानगर है।

बावजूद इसके यहां एक-तिहाई आवास स्लम क्षेत्र का हिस्सा हैं। इन इलाकों में रहने वालों के पास कोई बुनियादी सुविधा मौजूद नहीं है। भारत में एक तरफ तेजी से शहरीकरण देखने को मिल रहा है । वहीं, यहां रहने वाला हर छठा शहरी व्यक्ति स्लम बस्तियों में रहने को मजबूर है। स्लम की स्थिति ऐसी नारकीय है, जो इंसानों के रहने के लायक तो बिलकुल भी नहीं। आंकड़े बताते हैं, कि आंध्र प्रदेश में जहां हर तीसरा शहरी परिवार इन स्लम या मलिन बस्तियों में रहता है, वहीं ओडिशा में हर 10 घरों में से नौ में या तो जल निकासी की सुविधा नहीं है, या वहां खुली और बदबूदार नालियां हैं।

देश के हर बड़े शहर में स्लम (City Slums)

भारत के 65 प्रतिशत शहरों में मलिन बस्तियां देखी जा सकती हैं। शहरों की चकाचौंध भरी दुनिया के बीच स्लम इलाकों का अंधेरा कायम है। आंकड़ों के मुताबिक, देश में हर 10 में से छह झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले लोग इन नालियों के करीब रहने को मजबूर हैं। वहीं, हर 10 में से 4 व्यक्ति को आजादी के इतने साल बाद भी साफ पानी नसीब नहीं है। ये आंकड़े समझने के लिए काफी हैं कि इन मलिन बस्तियां में रहने वाले लोग किस तरह अपनी जिंदगी जी रहे हैं।

दिल्ली-मुंबई की हालत खस्ता (Delhi -Mumbai Ka Hal)

देश की व्यापारिक राजधानी मुंबई की कुल आबादी साल 2011 की जनगणना के अनुसार, 1.25 करोड़ है, जिसका 65 प्रतिशत हिस्सा झुग्गी बस्तियों में बसता है। मुंबई की धारावी एशिया की सबसे बड़ी झुग्गी बस्ती है। वहीं, 2011 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार 1.63 करोड़ जनसंख्या के साथ दिल्ली दूसरे स्थान पर है। दिल्ली की कुल आबादी की एक तिहाई से भी अधिक इन्हीं झुग्गियों में रहती है।

स्लम इलाकों में आंध्र प्रदेश सबसे ऊपर (Slums in Andhra Pradesh)

मलिन बस्तियों या स्लम इलाके की बात करें तो इस सूची में आंध्र प्रदेश का नंबर सबसे ऊपर है। यहां शहरी आबादी का 36.1 प्रतिशत हिस्सा इन्हीं मलिन बस्तियों में रहता है। वहीं, अन्य राज्यों जैसे- मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, सिक्किम, हरियाणा और जम्मू कश्मीर की शहरी आबादी का बड़ा हिस्सा इन्हीं मलिन बस्तियों में निवास करने को मजबूर है। 'डाउन टू अर्थ' की रिपोर्ट जो 2019 में प्रकाशित हुई थी, उसके अनुसार ओडिशा की मलिन बस्तियों में रहने वाले 64.1 फीसदी घरों में अब तक पीने का साफ पानी नहीं पहुंच पाया है। वहीं, दूसरी ओर इन बस्तियों के 90.6 फीसदी घरों से जल निकासी का कोई इंतजाम नहीं है। इन सब मूलभूत सुविधाएं जहां मिल नहीं पा रही वहां खुली बदबूदार नालियों की चर्चा क्या करना।

60 फीसदी आबादी इन पांच राज्यों से

देश के स्लम में रहने वाले 137,49,424 में से 11,92,428 परिवारों को आज भी पीने का साफ पानी नहीं मिल पा रहा है। इनमें से करीब 60 फीसदी घर सिर्फ पांच राज्यों तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और मध्य प्रदेश में हैं। वहीं, दक्षिणी भारत के तीन राज्यों में भारत की झुग्गी बस्तियों के 39 प्रतिशत घरों की आबादी आज भी साफ पानी से महरूम है। इनमें अधिकतर घर तमिलनाडु के हैं।

10 में से 6 घरों में जल निकासी का प्रबंध नहीं

भारतीय स्लम इलाकों में बसे 63 प्रतिशत घरों से निकलने वाली गंदगी और जल निकासी की कोई उचित व्यवस्था नहीं है। जबकि 44 प्रतिशत घरों में जल निकासी के लिए खुले और बदबूदार नाले हैं। वहीं 19 प्रतिशत घरों का इन निकासी नालों से कोई कनेक्शन ही नहीं है।

गरीबी बना 'पर्यटन'

हम सभी जानते हैं कि मुंबई का धारावी झुग्गियों के लिए दुनिया भर में प्रचलित है। धारावी एशिया का सबसे बड़ा झुग्गी तो है ही यह दुनिया के सबसे बड़े स्लम बस्तियों में से भी एक है। यहां हर 2.1 वर्ग किलोमीटर के दायरे में 10 लाख से भी ज्यादा लोग रहते हैं। गौरतलब है, कि जून, 2019 में धारावी ने ताजमहल को पछाड़ते हुए एशिया के शीर्ष 10 सबसे पसंदीदा पर्यटक स्थलों में अपनी जगह बनायी थी। मतलब अब तक भारत की जिस गरीबी का मजाक उदय जाता था या फिल्मो में दिखाया जाता था, अब वह पर्यटन का केंद्र बन गया है।

अब सवाल उठता है कि कहां तो देश में एक तरफ स्मार्ट सिटी की बात होती है, तो दूसरी तरफ इन मलिन बस्तियों का आंकड़ा चिंता पैदा करता है। हालांकि, जून 2015 में, 'प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी)' राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों को केंद्रीय सहायता प्रदान करने के उद्देश्य से शुरू की गई थी। जिसके तहत शहरों में रहने वाले गरीब तबके और कमजोर आय वर्ग के लोगों को आवासीय सुविधा देने का लक्ष्य तय किया गया था। केंद्रीय आवास एवं शहरी मामलों के मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने सभी राज्यों को 2022 तक सभी स्वीकृत हो चुके मकानों को शीघ्रता से पूरा करने के लिए कहा है। देखते हैं कि सरकार के यह कदम स्लम में रहने वालों की किस्मत बदलने में कितना सार्थक होता है।

Raghvendra Prasad Mishra

Raghvendra Prasad Mishra

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