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पूजा के नाम पर बरगद का संहार, ये कैसी पुण्य की कमाई

Vat Savitri Vrat 2021: महिलाओं ने वट वृक्ष की पूजा के महत्व को समझे बगैर बरगद की डालियों की पूजा की इस प्रक्रिया में तमाम बरगद के पेड़ उजाड़ दिये गए। जिससे प्रकृति का बहुत अधिक नुकसान हुआ।

Ramkrishna Vajpei
Written By Ramkrishna VajpeiPublished By Shreya
Published on: 11 Jun 2021 12:02 PM GMT (Updated on: 11 Jun 2021 1:16 PM GMT)
पूजा के नाम पर बरगद का संहार, ये कैसी पुण्य की कमाई
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बरगद का पेड़ (कॉन्सेप्ट फोटो बाय- आशुतोष त्रिपाठी, न्यूजट्रैक)

Vat Savitri Vrat 2021: बरगद का वानस्पतिक नाम फिकस बेंघालेंसिस (Ficus benghalensis) है। इस के मूल में ब्रह्मा, मध्य में विष्णु व अग्रभाग में शिव का वास माना जाता है। यह पेड़ लंबे समय तक अक्षय रहता है, इसलिए इसे 'अक्षयवट' भी कहते हैं।

अखंड सौभाग्य और आरोग्य के लिए भी वटवृक्ष की पूजा की जाती है। वैसे पीपल के वृक्ष में सभी देवताओं का तो आंवला और तुलसी में विष्णु का, बेल और बरगद में भगवान शिव का जबकि कमल में महालक्ष्मी का वास होने की मान्यता है। ऐसा मानते हैं इसके पूजन से और इसकी जड़ में जल देने से पुण्य प्राप्ति होती है।

(कॉन्सेप्ट फोटो बाय- आशुतोष त्रिपाठी, न्यूजट्रैक)

बरगद वृक्ष त्रिमूर्ति का प्रतीक है, इसकी छाल में विष्णु ,जड़ में ब्रह्मा और शाखाओं में शिव का वास कहा जाता है। जिस प्रकार पीपल को विष्णु जी का प्रतीक माना जाता है, उसी प्रकार बरगद को शिव जी का प्रतीक माना जाता है. यह प्रकृति के सृजन का प्रतीक है, इसलिए संतान के इच्छित लोग इसकी विशेष पूजा करते हैं।

ये भी मान्यता है कि वट वृक्ष की जड़ कर्जमुक्ति करवाने का प्रमुख मार्ग है। इसे पहनने से कर्ज मुक्ति जल्द हो जाती है। इसकी जड़ धारण करने से ना केवल मानसिक शांति और विचारों की शुद्धता प्राप्त होती है बल्कि दिमाग फोकस्ड भी होता है।

थिम्माम्मा मर्रिमाणु (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

बरगद के विशाल पेड़ का घर

शायद आपको पता न हो कि आंध्र प्रदेश बरगद के विशाल पेड़ का घर है। इसका नाम थिम्माम्मा मर्रिमाणु है। यह आंध्रप्रदेश में कादिरी से करीब 25 किलोमीटर की दूरी पर गोटीबाइलू में स्थित है। इस पेड़ को सत्यनारायण अय्यर ने पहचान दिलाई। 1989 में इस विशाल पेड़ को गिनीज बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स (Guinness World Records) में शामिल किया गया। गिनीज बुक (Guinness Book) में दावा है कि 550 साल पुराने इस पेड़ की परिधि सबसे ज़्यादा है।

यह 5 एकड़ में फैला है और इसके क्षेत्र का चौहद्दी 854 मीटर है। हालांकि स्थानीय वन विभाग का दावा है कि यह पेड़ 660 साल पुराना है और पिछले 2 साल के संरक्षण प्रयासों से 8 एकड़ क्षेत्र में फैला है।

(कॉन्सेप्ट फोटो बाय- आशुतोष त्रिपाठी, न्यूजट्रैक)

भारत का राष्ट्रीय पेड़ है बरगद

बरगद को भारत का राष्ट्रीय पेड़ भी माना जाता है। वैसे इससे पहले दुनिया सबसे बड़ा बरगद का पेड़ भारत में कोलकाता के आचार्य जगदीश चंद्र बोस बॉटनिकल गार्डेन में होने का दावा भी किया जाता रहा है। इस पेड़ को 1787 में स्थापित किया गया था। इस पेड़ की जड़ें और शाखाएं इतनी ज्यादा हैं, कि इससे पूरा एक जंगल बस गया है। ये पेड़ 14,500 वर्ग मीटर में फैला हुआ है, जो करीब 24 मीटर ऊंचा है। इस पेड़ की तीन हजार से भी ज्यादा जटाएं हैं, जो अब जड़ों में तब्दील हो चुकी हैं। इस पेड़ को दुनिया का सबसे चौड़ा पेड़ या 'वॉकिंग ट्री' भी कहते हैं। इस पेड़ पर 80 से ज्यादा प्रजातियों के पक्षी रहते हैं।

(कॉन्सेप्ट फोटो बाय- आशुतोष त्रिपाठी, न्यूजट्रैक)

वट वृक्ष की पूजा में उजाड़ दिए गए कई पेड़

पर्यावरणविदों का कहना है कि हिन्दू धर्म में आस्था से जुड़े इस पेड़ के महत्व को आधुनिक पीढ़ी नहीं समझ सकी है जिसके लिए आस्था से जुड़ी परंपराएं एक इवेंट बन गया है। पिछले दिनों महिलाओं ने अपने सुहाग की रक्षा की कामना से वृत किया जिसमें कान्वेंट एजुकेटेड महिलाओं ने वट वृक्ष की पूजा के महत्व को समझे बगैर बरगद की डालियों की पूजा की इस प्रक्रिया में तमाम बरगद के पेड़ उजाड़ दिये गए। जिससे प्रकृति का बहुत अधिक नुकसान हुआ।

उन्होंने कहा कि आजकल के लोग बरगद लगाना पसंद नहीं करते क्योंकि बरगद का पेड़ फैलता चला जाता है और सीमेंट गारे के बने मकानों को क्षति पहुंचा देता है। लेकिन बरगद का पौधा गमले में लगाकर उसकी सेवा करनी चाहिए और कुछ बड़ा हो जाने पर उसे किसी खुले स्थान पर या नदी किनारे स्थापित कर देना चाहिए क्योंकि यदि पर्यावरण सुरक्षित रहेगा तभी हम भी सुरक्षित रहेंगे।

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