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Veer Savarkar Death Anniversary: वीर सावरकर की देन है हिन्दू राष्ट्रवाद

Veer Savarkar Death Anniversary: वीर सावरकर ने हिंदुओं में व्याप्त कुरीतियों के खात्मे और हिंदुओं के उत्थान के लिए लोगों से अपने धर्म की सात बेड़ियों को तोड़ने की अपील की थी।

Neel Mani Lal
Written By Neel Mani LalPublished By Monika
Published on: 26 Feb 2022 11:40 AM IST
Veer Savarkar Death Anniversary
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वीर सावरकर (photo : social media ) 

Veer Savarkar Death Anniversary: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में वीर सावरकर (Veer Savarkar Death Anniversary) सबसे विवादित क्रांतिकारियों में से एक रहे हैं। सावरकर एक क्रांतिकारी, स्वतंत्रता सेनानी, समाजसुधारक, इतिहासकार, हिन्दू राष्ट्रवादी ( Hindu Nationalist) नेता और विचारक के रूप में जाने जाते हैं और उनको स्वातंत्र्यवीर (freedom fighter), वीर सावरकर (Veer Savarkar) के नाम से भी सम्बोधित किया जाता है। आज जिस हिन्दू राष्ट्रवाद की राजनीतिक विचारधारा यानी 'हिन्दुत्व' की बात की जाती है,उस विचारधारा को आगे बढ़ाने का बहुत बड़ा श्रेय सावरकर को जाता है। उन्होंने कन्वर्टेड हिन्दुओं को हिन्दू धर्म में वापस लौटाने के लिए बहुत प्रयास किये और इसके लिए आन्दोलन चलाये। उन्होंने भारत की एक सामूहिक "हिन्दू" पहचान बनाने के लिए हिंदुत्व का शब्द गढ़ा था।

विनायक दामोदर सावरकर को 20वीं शताब्दी का सबसे बड़ा हिन्दूवादी कहा जाता है। वह कहते थे कि उन्हें स्वातन्त्रय वीर की जगह हिन्दू संगठक कहा जाए। उन्होंने जीवन भर 'हिन्दू हिन्दी हिन्दुस्तान' के लिए कार्य किया। वह अखिल भारत हिन्दू महासभा के 6 बार राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने गए।

कुछ खास बातें

ब्रिटिश शासन के दौरान, सावरकर 1909 में मॉर्ले मिंटो सुधार के खिलाफ सशस्त्र विरोध की साजिश रचने के आरोप में गिरफ्तार हुए थे। 1911 में उन्हें दो बार कालापानी यानी आजीवन कारावास (50 साल) की सजा सुनाई थी। सावरकर को इस वजह से गद्दार भी कहा जाता है कि उन्होंने अंग्रेजी सरकार से रिहाई के लिए माफी मांगी थी, लेकिन उनके समर्थकों का कहना है कि यह माफी उन्होंने अपने साथी राजनैतिक कैदियों के लिए मांगी थी। 1924 में उन्हें अंडमान जेल से इस शर्त के साथ रिहा किया गया था कि वे राजनीति में 5 साल तक सक्रिय नहीं होंगे।

सावरकर एक लेखक भी थे। उनके द्वारा लिखी बहुत सी किताबों पर अंग्रेजों ने पाबंदियां लगा दी थीं। इसमें वार ऑफ द इंडिपेंडेंस ऑफ 1857 भी शामिल थी। लेकिन तमाम कोशिशों के बाद भी अंग्रेज इसे नीदरलैंड से (1909 में) प्रकाशित होने से नहीं रोक सके थे। उन्होंने कुल 38 किताबें लिखी थीं जो प्रमुख रूप से मराठी और अंग्रेजी में थीं। उनकी एक पुस्तिका हिंदुत्व: हू इज हिंदू बहुत चर्चित रही है।

हिंदुत्व के लिए काम

सावरकर ने हिंदुओं में व्याप्त कुरीतियों के खात्मे और हिंदुओं के उत्थान के लिए लोगों से अपने धर्म की सात बेड़ियों को तोडने की अपील की थी। इन सात बेड़ियों में वेदोत्कबंदी (वेदों से आंख मूंद कर चिपके रहना), व्यवसायबंदी (जन्म के आधार पर व्यवसाय अपनाना), स्पर्शबंदी (छुआछूत की धारणा मानना) समुद्रबंदी (समुद्र पारीय यात्रा कर विदेश जाने की पाबंदी) शुद्धिबंधी (हिंदू धर्म में वापस ना आने पर पाबंदी), रोटी बंदी (अंतरजातीय लोगों के साथ भोजन करने पर पाबंदी) और बेटी बंदी (अंतरजातीय विवाह पर पाबंदी) शामिल थे। उन्होंने महाराष्ट्र के रत्नागिरी में अस्पृश्यता को खत्म करने लिए काम किया और सभी जातियों के हिंदुओं के साथ खाना खाने की परंपरा भी शुरू की थी।

ये भी जानिए

- सावरकर ने ही राष्ट्रध्वज तिरंगे के बीच में धर्म चक्र लगाने का सुझाव सर्वप्रथम दिया था जिसे राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने मान लिया।

- वे दुनिया के पहले राजनीतिक कैदी थे जिनका मामला हेग के अन्तरराष्ट्रीय न्यायालय में चला था।

- वे पहले भारतीय राजनीतिक कैदी थे जिसने एक अछूत को मन्दिर का पुजारी बनाया था।

- वे गाय को एक 'उपयोगी पशु' कहते थे।

- सावरकर, महात्मा गांधी के कटु आलोचक थे। उन्होने अंग्रेजों द्वारा द्वितीय विश्वयुद्ध के समय जर्मनी के विरुद्ध हिंसा को गांधीजी द्वारा समर्थन किए जाने को 'पाखण्ड' करार दिया।

- सावरकर ने अपने ग्रन्थ 'हिन्दुत्व' के पृष्ठ 81 पर लिखा है कि – कोई भी व्यक्ति बगैर वेद में विश्वास किए भी सच्चा हिन्दू हो सकता है। उनके अनुसार केवल जातीय सम्बन्ध या पहचान हिन्दुत्व को परिभाषित नहीं कर सकता है बल्कि किसी भी राष्ट्र की पहचान के तीन आधार होते हैं – भौगोलिक एकता, जातीय गुण और साझा संस्कृति। जब भीमराव आम्बेडकर ने बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया तब सावरकर ने कहा था, "अब जाकर वे सच्चे हिन्दू बने हैं"।

भारत का सच्चा सपूत

अपने जीवन के अंतिम समय में सावरकर ने समाधी लेने का ऐलान कर 1 फरवरी 1966 में खानपान छोड़ दिया। 26 फरवरी को उनका निधन हो गया। उनका कहना था कि उनके जीवन का उद्देश्य पूरा हो गया है। 1970 में भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उन्हें भारत का अद्भुत सपूत बताया और उनकी सरकार ने सावरकर के नाम का डाक टिकट भी जारी किया था।



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Monika

Monika

Content Writer

पत्रकारिता के क्षेत्र में मुझे 4 सालों का अनुभव हैं. जिसमें मैंने मनोरंजन, लाइफस्टाइल से लेकर नेशनल और इंटरनेशनल ख़बरें लिखी. साथ ही साथ वायस ओवर का भी काम किया. मैंने बीए जर्नलिज्म के बाद MJMC किया है

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