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काम की खबर, अब आपको ऑनलाइन ठगी से बचाएगा ये नंबर, जानें क्या करना होगा
अगर आप या आपका कोई परिचित ऑनलाइन ठगी का शिकात होता है तो केंद्र सरकार द्वारा शुरू किया गया ये नबंर अब आपके पैसे को बचा सकता है।
देश में साइबर अपराध तेजी से बढ़ा है, साइबर ठग भोले-भाले लोगों से ठगी कर अपनी जेब भर लेते हैं और उनको चूना लगा देते हैं। इससे बचने का सबसे आसान तरीका जागरुकता है, अगर आप इसके प्रति जागरूक हैं तो आप साइबर ठगी का शिकार होने से बच सकते हैं। भारतीय गृह मंत्रालय ने साइबर ठगी पर रोक लगाने के लिए एक ऐसा नंबर जारी किया है, जिससे अगर आपके साथ ठगी हो भी गई तो तुरंत उसकी सूचना देने पर आपके पैसे के ट्रांजेक्शन को रोका जा सकता है। इसके लिए आपको हेल्पलाइन नंबर 155260 पर फोन करके शिकायत दर्ज करानी होगी। देश भर के सात राज्यों में अभी तक इसकी शुरुआत की जा चुकी है।
गृह मंत्रालय ने 155260 हेल्पलाइन शुरू की
साइबर ठगी रोकने के लिए गृह मंत्रालय ने CFCFRMS (Citizen Financial Cyber Fraud Reporting and Management System) शुरू किया है। जिस पर धोखाधड़ी की सूचना तुरंत 155260 नम्बर पर देनी होगी। जिसके बाद ई-सुरक्षा चक्र कन्ट्रोल रुम द्वारा तत्काल इस सूचना को गृह मंत्रालय के NCRP पोर्टल पर दर्ज कर दिया जाता है। सूचना मिलने के बाद गृह मंत्रालय से पीड़ित को एक लिंक SMS के माध्यम से भेजा जायेगा। पीड़ित व्यक्ति को इस लिंक पर क्लिक कर अपनी शिकायत 24 घण्टे के अन्दर NCRP पोर्टल पर पंजीकृत करना आवश्यक है। जिससे की साइबर अपराधियों द्वारा धोखाधड़ी से निकासी की गयी धनराशि को रोका जा सके व उन्हें वापस कराया जा सके। शिकायत दर्ज होने पर बैंक के लेनदेन को होल्ड कर दिया जाता है। इस पोर्टल पर देश के सभी बैंक जुड़े हुए हैं, ऐसे में सूचना मिलते ही संबंधित बैंक ट्रांजेक्शन को होल्ड कर देते हैं।
सात राज्यों में हो रहा इसका उपयोग
कानून प्रवर्तन एजेंसियों और बैंकों एवं वित्तीय मध्यस्थों को एकीकृत करने के उद्देश्य से आई4सी द्वारा आतंरिक रूप से नागरिक वित्तीय साइबर धोखाधड़ी रिपोर्टिंग और प्रबंधन प्रणाली विकसित की गई है। वर्तमान में हेल्पलाइन नंबर 155260 के साथ इसका उपयोग सात राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों (छत्तीसगढ़, दिल्ली, मध्य प्रदेश, राजस्थान, तेलंगाना, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश) द्वारा किया जा रहा है, जो देश की 35 प्रतिशत से भी अधिक आबादी को कवर करते हैं।
जालसाजों द्वारा ठगे गए धन के प्रवाह को रोकने के लिए अन्य राज्यों में भी इसकी शुरुआत की जा रही है, ताकि पूरे देश में इसकी कवरेज हो सके। अपनी लॉन्चिंग के बाद केवल दो माह की छोटी सी अवधि में ही हेल्पलाइन नंबर 155260 कुल 1.85 करोड़ रुपये से भी अधिक की धोखाधड़ी की गई रकम को जालसाजों के हाथों में जाने से रोकने में सफल रहा है। दिल्ली एवं राजस्थान ने क्रमशः 58 लाख रुपये और 53 लाख रुपये की बचत की है।
ये हेल्पलाइन कुछ इस तरह काम करते हैं
1. साइबर ठगी के शिकार लोग हेल्पलाइन नंबर 155260 पर कॉल करते हैं, जिसका संचालन संबंधित राज्य की पुलिस द्वारा किया जाता है।
2. कॉल का जवाब देने वाला पुलिस ऑपरेटर धोखाधड़ी वाले लेनदेन का ब्यौरा और कॉल करने वाले पीड़ित की बुनियादी व्यक्तिगत जानकारी लिखता है, और इस जानकारी को नागरिक वित्तीय साइबर धोखाधड़ी रिपोर्टिंग और प्रबंधन प्रणाली पर एक टिकट के रूप में दर्ज करता है।
3. फिर ये टिकट संबंधित बैंक, वॉलेट्स, मर्चेंट्स आदि तक तेजी से पहुंचाया जाता है, और ये इस बात पर निर्भर करता है कि वे इस पीड़ित के बैंक हैं या फिर वो बैंक/वॉलेट हैं जिनमें धोखाधड़ी का पैसा गया है।
4. फिर पीड़ित को एक एसएमएस भेजा जाता है जिसमें उसकी शिकायत की पावती संख्या होती है और साथ ही निर्देश होते हैं कि इस पावती संख्या का इस्तेमाल करके 24 घंटे के भीतर धोखाधड़ी का पूरा विवरण राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल (https://cybercrime.gov.in/) पर जमा करें।
5. अब संबंधित बैंक, जो अपने रिपोर्टिंग पोर्टल के डैशबोर्ड पर इस टिकट को देख सकता है, वो अपने आंतरिक सिस्टम में इस विवरण की जांच करता है।
6. अगर धोखाधड़ी का पैसा अभी भी मौजूद है, तो बैंक उसे रोक देता है, यानी जालसाज उस पैसे को निकलवा नहीं सकता है। अगर वो धोखाधड़ी का पैसा दूसरे बैंक में चला गया है, तो वो टिकट उस अगले बैंक को पहुंचाया जाता है, जहां पैसा चला गया है। इस प्रक्रिया को तब तक दोहराया जाता है जब तक कि पैसा जालसाजों के हाथों में पहुंचने से बचा नहीं लिया जाता।
मौजूदा समय में ये हेल्पलाइन और इसके रिपोर्टिंग प्लेटफॉर्म में सारे प्रमुख सरकारी और निजी क्षेत्र के बैंक शामिल हैं. इनमें उल्लेखनीय हैं - भारतीय स्टेट बैंक, पंजाब नेशनल बैंक, बैंक ऑफ बड़ौदा, बैंक ऑफ इंडिया, यूनियन बैंक, इंडसइंड, एचडीएफसी बैंक, आईसीआईसीआई बैंक, एक्सिस, यस और कोटक महिंद्रा बैंक. इससे सभी प्रमुख वॉलेट और मर्चेंट भी जुड़े हुए हैं, जैसे - पेटीएम, फोनपे, मोबीक्विक, फ्लिपकार्ट और एमेजॉन
इस हेल्पलाइन और रिपोर्टिंग प्लेटफॉर्म की सफलता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कई मौकों पर ठगी के पैसे का नामोनिशान मिटाने के लिए ठगों द्वारा उसे पांच अलग-अलग बैंकों में डालने के बाद भी उसे ठगों तक पहुंचने से रोका गया है।