TRENDING TAGS :
Mahashivratri 2022: क्या है महाशिवरात्रि व शिव विवाह की सच्चाई, जानें क्यों मनाते हैं महाशिवरात्रि
Maharashtra 2022 : कल यानी कि 1 मार्च 2022, मंगलवार को महाशिवरात्रि है। आइए जानते हैं क्यों मानते हैं महाशिवरात्री और इसके महत्त्व।
Mahashivratri 2022 : महाशिवरात्रि (Mahashivratri) पर सम्पूर्ण सनातनी शिव विवाह (Shiv Vivah) के रूप में उत्सव मनाते है , जबकि शिव पुराण के अनुसार महाशिवरात्रि (Mahashivratri mantra) को शिव विवाह हुआ ही नही था। महाशिवरात्रि मनाने का रहस्य और शिव विवाह का मुहूर्त रहस्य भिन्न-भिन्न है।
एक बार शिव विवाह और महाशिवरात्रि रहस्य पर चर्चा करते हैं। शिव महापुराण का अध्य्यन करने के पश्चात, शिव-सती विवाह पर रुद्रसंहिता के सती खण्ड के अष्टादशोध्याय के श्लोक संख्या 20 के अनुसार-
अथ चैत्रसिते पक्षे नक्षत्रे भगदैवते ।
त्रयोदश्यां दिने भानौ निर्गच्छत्स महेश्वर:।।
अर्थात चैत्र शुक्लपक्ष त्रयोदशी में रविवार को पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र में महेश्वर ने विबाह के लिए यात्रा की ।
एवं रुद्र संहिता के सतीखण्ड के ही विंशोध्याय के श्लोक संख्यां 38 एवं 39 के अनुसार -
चैत्रशुक्लत्रयोदश्यां नक्षत्रे भगदैवते ।
सूर्यवारे च यो भक्त्या वीक्षेत भुवि मानवः!!
तदैव तस्य पापानि पर्यान्तु हर संक्षयम् ।
वर्धते विपुलं पुण्यं रोगा नश्यन्तु सर्वश:।।
अर्थात जो मनुष्य चैत्र शुक्ल पक्ष के त्रयोदशी तिथि को रविवार के दिन पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र में आपका भक्ति पूर्वक दर्शन करेगा उसके सारे पाप नष्ट हो जाएंगे । विपुलं पुण्यों की वृद्धि होगी एवं सर्वथा रोगों का नाश हो जाएगा ।।
उक्त दोनों उद्धरण से यह कह सकते है कि शिव सती विवाह चैत्र मास के शुक्ल पक्ष के त्रयोदशी तिथि को रविवार के दिन पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र में हुआ था ।
आइये अब शिव पार्वती विवाह के मुहूर्त प्रकरण पर चर्चा करते है-
शिवपुराण के रुद्रसंहिता के पर्वतीखण्ड के 35वें अध्याय के श्लोक संख्या 58-60 के अनुसार -
सप्ताहे स्मतीते तु दुर्लभेतिशुभे क्षणे ।
लग्नाधिपे च लग्नस्थे चन्द्रे स्वतनयान्विते।।58।।
मुदिते रोहिणीयुक्ते विशुद्धे चन्दरतारके ।
मार्गमासे चन्द्रवारे सर्वदोषविवर्जिते ।।59।।
सर्वसद्ग्रहसंसृष्टे असद्ग्रहदृष्टिवर्जिते ।
सदपत्यप्रदे जीवे पतिसौभाग्यदायिनि।।।।
अर्थात एक सप्ताह पश्चात दुर्लभ उत्तम शिवयोग आ रहा है , उस लग्न मे स्वयं लग्नेश स्वगृही है एवं चन्द्रमा भी अपने पुत्रवधु के साथ स्थित रहेगा साथ ही साथ चन्द्रमा रोहिणीयुक्त होगा इसीलिये चन्द्र तथा तारागणों का योग भी उत्तम है; मार्गशीर्ष(अगहन) का महीना है, उसमें भी सर्वदोषविवर्जित चन्द्रवार(सोमवार) का दिन है । वह लग्न सभी उत्तम ग्रहों से युक्त तथा नीच ग्रहों के दृष्टि से रहित है उस शुभलग्न में वृहस्पति उत्तम संतान तथा पति का सौभाग्य प्रदान करने वाले हैं।
यह उद्धरण शिव विवाह के लिए मुहूर्त प्रकरण पर ऋषि वशिष्ठ , ब्रह्मर्षि नारद , ब्रह्मा जी एवं गिरिराज हिमालय के परिचर्चा में आया है । इस उद्धरण से यह कहा जा सकता है कि शिव पार्वती विवाह मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष के द्वितीया तिथि को सोमवार के दिन रोहिणी नक्षत्र में हुआ था ।
महाशिवरात्रि क्यो मनाते हैं?
महाशिवरात्रि को लेकर शिवमहापुराण के ईशान संहिता के अनुसार:-
फाल्गुनकृष्णचतुर्दश्यामादिदेवो महानिशि।
शिवलिंगतयोद्भूत: कोटिसूर्यसमप्रभ:।।
अर्थात :- फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि में आदिदेव भगवान शिव करोडों सूर्यों के समान प्रभाव वाले लिंग रूप में प्रकट हुए इसलिए इसे महाशिवरात्रि मानते हैं।
'' शिवस्य प्रिया रात्रीयस्मिन व्रते अंगत्वेन विहिता तदव्रतं शिवरात्रयाख्याम् ।।
अर्थात वह रात्रि जो शिव को प्रिय है और अनन्दप्रदायिनी है , इस रात्रि को उपवास और जागरण का महत्व है । इसे शिवरात्रि के रुप मे जाना जाता है ।
महाशिवरात्रि पर्व रात्रि प्रधान पर्व है, इस दिन अर्धरात्रि की पूजा का विशेष महत्व है। अर्ध रात्रि की पूजा के लिये स्कन्दपुराण में लिखा है कि –
निशिभ्रमन्ति भूतानि शक्तयः शूलभृद यतः ।
अतस्तस्यां चतुर्दश्यां सत्यां तत्पूजनं भवेत् ॥
भावार्थ कृष्ण पक्ष के चतुर्दशी तिथि को रात्रि के समय शिव जी के गण भूत, प्रेत, पिशाच, शक्तियाँ और स्वयं शिवजी भ्रमण करते हैं; अतः उस समय इनका पूजन करने से मनुष्य के सभी पाप नष्ट होते हैं ।
"ज्ञात्वा नरः कुर्वन्यथोक्तफलभाग्भवेत्" अर्थात रात के चार प्रहरों में से जो बीच के दो प्रहर हैं, उन्हें निशीथकाल कहा गया है। विशेषत: उसी काल में की हुई भगवान शिव की पूजा-प्रार्थना अभीष्ट फल को देनेवाली होती है। ऐसा जानकर कर्म करनेवाला मनुष्य यथोक्त फल का भागी होता है। चतुर्दशी तिथि के स्वामी शिव हैं, अत: ज्योतिष शास्त्र में इसे परम कल्याणकारी कहा गया है। वैसे तो शिवरात्रि हर महीने में आती है, परंतु फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को महाशिवरात्रि कहा गया है। शिव रहस्य में कहा गया है-
चतुर्दश्यां तु कृष्णायां फाल्गुने शिवपूजनम्।
तामुपोष्य प्रयत्नेन विषयान् परिवर्जयेत।।
शिवरात्रि व्रतं नाम सर्वपापप्रणाशनम्।
शिव के उस अपादान कारण को, जो अनादि और अनंत है, उसे लिंग कहते हैं। उसी गुणनात्मक मौलिक प्रकृति का नाम माया है। उसी से यह सम्पूर्ण जगत उत्पन्न हुआ है; होता रहेगा। जिसको जाना नहीं जा सकता, जो स्वंय ही कार्य के रूप में व्यक्त हुआ है, जिससे यह सम्पूर्ण विश्व उत्पन्न हुआ है और उसी में लीन हो जाना है, उसे ही लिंग कहते हैं। विश्व की उत्पत्ति और लय के हेतु (कारण) होने से ही उस परमपुरूष की लिंगता है। लिंग शिव का शरीर है, क्योंकि वह उसी रूप में अधिष्ठित हैं। लिंग के आधार रूप में जो तीन मेखला युक्त वेदिका है, वह भग रूप में कही जाने वाली जगतदात्री महाशक्ति हैं। इस प्रकार आधार सहित लिंग जगत का कारण है। यह उमा-महेश्वर स्वरूप है। भगवान शिव स्वयं ही ज्योतिर्लिंग स्वरूप तमस से परे हैं, लिंग और वेदी के समायोजन से ये अर्धनारीश्वर हैं।पूज्यो हरस्तु सर्वत्र लिंगे पूर्णोर्चनं भवेत।। (अग्निपुराण अध्याय ५४)
महाशिवरात्रि के दिन ही शिव विवाह हुआ था
निष्कर्ष रूप में यह कह सकते है कि शिव-सती विवाह चैत्र मास के शुक्ल पक्ष के त्रयोदशी को हुआ था एवं शिव-पार्वती विवाह अगहन मास के कृष्ण पक्ष की द्वितीया को हुआ था जबकि फाल्गुन मास के कृष्णपक्ष में महाशिवरात्रि की रात्रि में शिव करोड़ो सूर्यो के समान प्रभाव वाले लिंग रूप में प्रकट हुए। लोकाचार में महाशिवरात्रि के दिन ही शिवविवाह हुआ था, ऐसा मानकर महाशिवरात्रि को शिवविवाह का उत्सव मनाया जाने लगा ।
महाशिवरात्रि को ही शिवलिंग का प्रादुर्भाव हुआ एवं प्रथम विष्णु और ब्रह्मा ने महाशिवरात्रि को ही शिवलिंग का पूजन किया था इसलिए महाशिवरात्रि की महत्ता अद्भुत है। हम सभी सनातनियो को महाशिवरात्रि के दिन उपवास एव रात्रि जागरण करना चाहिए एवं बाबा भोले से जगत कल्याण हेतु प्रार्थना करनी चाहिए।