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सीएम साहब! ऐसे कैसे पढ़ेंगे और बढ़ेंगे बच्चे?

सूबे में योगी सरकार के 100 दिन पूरे हो चुके हैं। योगी सरकार ने वादा किया था कि कार्यकाल के पहले 100 दिनों के लिए वह एक रोडमैप तैयार करके उसी के हिसाब से सारे विभाग काम करेंगे।

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Published on: 2 July 2017 3:43 PM IST
सीएम साहब! ऐसे कैसे पढ़ेंगे और बढ़ेंगे बच्चे?
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सुधांशु सक्सेना

लखनऊ: सूबे में योगी सरकार के 100 दिन पूरे हो चुके हैं। योगी सरकार ने वादा किया था कि कार्यकाल के पहले 100 दिनों के लिए वह एक रोडमैप तैयार करके उसी के हिसाब से सारे विभाग काम करेंगे। सरकार ने विश्वास दिलाया था कि इस तरह से काम करने पर पहले 100 दिनों में ही प्रदेश की तस्वीर बदली नजर आएगी।

इसी क्रम में योगी आदित्यनाथ ने काम संभालने के बाद अन्य विभागों के साथ-साथ बेसिक, माध्यमिक, उच्च, चिकित्सा शिक्षा और प्राविधिक शिक्षा के अधिकारियों की बैठक ली थी और उनके प्रेजेंटेशन देखे थे।

योगी सरकार के इस कदम से छात्रों और अभिभावकों को शिक्षा के क्षेत्र में बदलाव की उम्मीद बंधी थी। लोगों को उम्मीद थी कि योगी सरकार अपने लोक कल्याण संकल्प पत्र के वादे पूरे करने के साथ नए काम भी करेगी, लेकिन योगी सरकार पहले सौ दिनों में वादों के हिसाब से शिक्षा विभाग में ज्यादा काम नहीं कर पाई।

अपना भारत और newstrack.com की पड़ताल में सरकार स्कूलों की आधारभूत अवसंरचना से लेकर पाठ्य पुस्तकों, जूते-मोजों, बायोमेट्रिक उपस्थिति प्रणाली सहित कई अन्य मुद्दों पर पिछड़ती सी दिख रही है।

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माध्यमिक शिक्षा का बुरा हाल

माध्यमिक शिक्षा में योगी सरकार पिछड़ती नजर आ रही है। इसके तहत बालिकाओं की सुरक्षा से जुड़ी रानी लक्ष्मीबाई आत्मरक्षा कार्यक्रम की हवा निकलती नजर आ रही है। इस योजना को अमली जामा नहीं पहनाया जा सका है। इसके अलावा शिक्षकों की नियुक्तियों से लेकर माध्यमिक व्यवसायिक शिक्षा की स्थिति में सुधार लाने का दावा किया था मगर कोई काम नहीं हुआ है।

नियुक्तियां भी अभी तक शुरू नहीं हो सकी है। बोर्ड परीक्षाओं में सक्रिय नकल माफिया पर लगाम कसने की बात हुई थी, लेकिन इस बार कई केंद्रो पर नकल माफिया ने सारी हदें पार करवाकर नकल करवाई।

इतना ही नहीं बोर्ड परीक्षा के मेधावियों ने खुद कबूला कि उन्हें परीक्षा के दौरान जिन प्रश्नों का जवाब नहीं आता था, उसे वहंा मौजूद टीचर बता देते थे। कोचिंग चलाने वाले सरकारी शिक्षकों पर पर भी कोई कार्रवाई नहीं हो सकी है। विद्यालयों में संपूर्ण पाठ्यक्रम को 200 दिनों के भीतर पूरा कराने की बात कही गई थी, इस संबंध में कोई आदेश ही पारित नहीं हुआ।

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उच्च शिक्षा में पिछड़ी सरकार

योगी सरकार ने प्रदेश के सभी विश्वविद्यालयों में समान पाठ्यक्रम लागू करने की बात की थी और वहंा नियमित पढ़ाई के दावे भी किए थे। इनमें से अधिकंाश में नियमित पढ़ाई पर तो अमल कर लिया गया, लेकिन समान पाठ्यक्रम प्रणाली को लागू करने की दिशा में अभी तक कोई कामयाबी हासिल होती नहीं दिखती।

शिक्षक संघ का नजरअंदाज करने का आरोप

माध्यमिक शिक्षक संघ के प्रादेशिक संरक्षक डॉ.आरपी मिश्र ने कहा कि सरकार शिक्षकों की नियुक्ति के लिए गंभीरता से विचार नहीं कर रही है। बेसिक सरकारी और सहायता प्राप्त स्कूलों में भी भॢतयां रुकी हुई हैं। इसके अलावा माध्यमिक शिक्षा में भी भॢतयां नहीं हो रहीं। माध्यमिक शिक्षा में अनुदेशकों की भर्ती को लेकर भी सरकार को गंभीरता से विचार करना चाहिए। इसके अलावा कई कामों को लेकर बैकफुट पर खड़ी सरकार को आगे आकर उन्हें तत्काल पूरा करना चाहिए।

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मंत्री का विश्वास कायम रखने का दावा

प्राविधिक शिक्षा मंत्री आशुतोष टंडन का कहना है कि हम प्रदेश के इंजीनियरिंग कॉलेजों के प्रति 12वीं पास छात्रों को आकॢषत करने की पुरजोर कोशिश कर रहे हैं। हमें उम्मीद है कि हम इस दिशा में जल्द ही सफल होंगे। इसके अलावा प्रदेश सरकार सूबे की शिक्षा व्यवस्था में कई व्यापक बदलाव लाकर इसकी गुणवत्ता को बढ़ाने की दिशा में काम कर रही है। 100 दिन में हम जनता के बीच अपने विश्वास को कायम रखने में सफल हुए हैं। अभी तो कई अच्छे काम देखने को मिलेंगे।

इंजीनियरिंग शिक्षा के क्षेत्र में सिर्फ साइन हुए एमओयू

योगी सरकार ने प्राविधिक शिक्षा विभाग के प्रेजेंटेशन के दौरान अधिकारियों से कहा था कि ऐसे निजी इंजीनियरिंग कॉलेजों को चिन्हित करें जो बंदी की कगार पर हों और उन कालेजों के संसाधनों का उपयोग करके वहां डिप्लोमा, फार्मा, नॄसग जैसे रोजगारपरक कोर्स चलाने की व्यवस्था की जाए। इन कालेजों में आज की मांग के मुताबिक एडवांस कोर्स शामिल किए जाएं, लेकिन अधिकारियों ने अभी तक इस दिशा में कोई काम नहीं किया है।

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इसके अलावा प्राविधिक शिक्षा विभाग के महत्वपूर्ण संस्थान डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम प्राविधिक विश्वविद्यालय द्वारा केवल अलग-अलग एमओयू साइन किए गए। इसमें से एक भी एमओयू वर्तमान में छात्रों के लिए उपयोगी साबित नहीं हो पा रहा है। इसके अलावा संस्थानों को फ्री वाई फाई देने का दावा किया गया था, लेकिन कई संस्थानों में यह काम शुरू तक नहीं हो पाया है। इसके अलावा जिन संस्थानों में वाई फाई के इंस्ट्रूमेंट लगने की बात की जा रही है, वहां काम अधर में लटका हुआ है।

बेसिक शिक्षा में इन मुद्दों पर बैकफुट पर रही सरकार

योगी सरकार ने प्राथमिकता के साथ निजी स्कूलों की मनमाने तरीके से फीस वृद्धि पर रोक लगाने की बात कही थी। लेकिन निजी स्कूलों पर कोई लगाम नहीं लग सकी है। इसके अलावा सरकारी स्कूलों में पाठ्य पुस्तकों के वितरण से जुड़े 400 करोड़ के टेंडर में देरी हुई, जिसके चलते किसी भी हाल में जुलाई में शुरू हो रहे नए शैक्षिक सत्र में गरीब बच्चों को नि:शुल्क किताबों का वितरण संभव नहीं हो पाएगा। हालांकि सरकार कह रही है कि वह वादे के अनुरूप किताबों का वितरण करेगी, लेकिन फिलहाल यह वादा पूरा होता नहीं दिखता।

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इसी के साथ योगी सरकार के सरकारी स्कूल के बच्चों को जूते मोजे उपलब्ध कराने के दावे की भी हवा निकल गई। जूते मोजे बांटने वाले 289 करोड़ के टेंडर को निविदा पत्र आमंत्रण के कुछ दिनों के बाद ही निरस्त कर दिया गया। ऐसे में इस बार भी बेसिक स्कूल के बच्चे नंगे पैर स्कूल जाने को मजबूर होंगे। योगी सरकार के एक से 10 जुलाई के बीच पोशाक, पुस्तकों और बैग के वितरण करने के दावों की हवा निकलती नजर आ रही है। जर्जर सरकारी स्कूलों की मरम्मत से लेकर पेयजल, शौचालयों और बाउंड्रीवाल की मरम्मत का कार्य भी अधूरा ही पड़ा है। शिक्षा के अधिकार अधिनियम के अंतर्गत प्रतिष्ठित निजी स्कूलों में गरीब कोटे के अंतर्गत होने वाले एडमिशन को लेकर अभिभवकों को निजी स्कूलों ने फिर से दौड़ाना शुरू कर दिया है। अभिभावकों का आरोप है कि अधिकारी उन्हें गुमराह करने पर उतारू हैं।

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इसके अलावा बेसिक शिक्षा विभाग को छात्रों की उपस्थिति शत-प्रतिशत अनिवार्य करवाने की दिशा में काम करना था। स्कूलों में न आने वाले बच्चों के लिए डोर टू डोर सर्वे करना था। 1760 उच्च प्राथमिक विद्यालयों में विज्ञान और गणित लैब का निर्माण होना था। कंप्यूटर सहायतित शिक्षा कार्यक्रम के तहत 8628 स्कूलों में सुविधाएं देनी थीं। शिक्षकों के चयन के लिए बेसिक शिक्षा चयन बोर्ड के गठन पर भी काम होना था। इसके अलावा 100 दिनों के अंदर प्रदेश के 45 हजार 809 सरकारी प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों का विद्युतीकरण होना था मगर ये काम भी अधर में ही हैं। एमडीएम में पंजीकृत छात्रों का आधार बनना था, लेकिन यह काम भी पूरा नहीं हुआ। इन मोर्चों पर योगी सरकार बैकफुट पर खड़ी नजर आ रही है।

सौ दिनों के रिपोर्ट कार्ड में नहीं दिखा कोई व्यवस्था परिवर्तन

योगी सरकार ने जनता के सामने हाल ही में 27 जून को 100 दिन विश्वास के नामक एक रिपोर्ट कार्ड पेश किया। इसमें शिक्षा विभाग की बात करें तो योगी सरकार ने कोई ऐसा काम नहीं किया जिससे विभाग में कोई व्यवस्थागत बदलाव दिखे। इतना ही नहीं कुछ ऐसे कामों का उल्लेख रिपोर्ट कार्ड में किया गया है, जिसमें योगी सरकार फेल भी रही है। ऐसे में शिक्षा विभाग में जिन कामों का योगी सरकार बढ़-चढक़र बखान कर रही है, उसमें से कई तो वास्तिविक धरातल से कोसों दूर हैं।

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अपना भारत और newstrack.com की नजर से ‘100 दिन विश्वास के’ का आंकलन

योगी सरकार ने अपने रिपोर्ट कार्ड ‘100 दिन विश्वास के’ में शिक्षा विभाग की उपलब्धियां गिनाते हुए कुल 10 कामों का उल्लेख किया है। अपना भारत ने जब इन कामों का विश्लेषण किया तो कई उपलब्धियां तो सिर्फ नाममात्र की ही निकलीं।

-योगी सरकार ने रिपोर्ट कार्ड में 10वीं और 12वीं बोर्ड की परीक्षाओं को नकलविहीन कराने को अपनी उपलब्धि के तौर पर दिखाया है।

वास्तविकता- माध्यमिक शिक्षक संघ के प्रादेशिक संरक्षक डॉ.आर.पी.मिश्र ने बताया कि 10वीं और 12वीं की बोर्ड परीक्षाओं के दौरान जमकर नकल हुई। कई केंद्रों पर परीक्षा निरस्त हुई तो कई पर सचल दस्तों ने नकलचियों को पकडक़र एफआईआर दर्ज कराई। इतना ही नहीं खुद बोर्ड के टॉपर्स ने बताया कि उनके परीक्षा केंद्र पर तैनात अध्यापक प्रश्नपत्र हल करने में उनकी मदद करते थे। इसलिए इस मुद्दे को उपलब्धि के तौर पर गिनाना हास्यास्पद है।

-147 मेधावी छात्र-छात्राओं को रानी लक्ष्मीबाई सम्मान दिया गया।

वास्तविकता- यूपी बोर्ड के मेधावियों को लखनऊ में आयोजित समारोह में सम्मानित किया गया। इसे सरकार का सराहनीय कदम बताया जा रहा है।

-सर्व शिक्षा अभियान के अंतर्गत शिक्षामित्रों का मानदेय 10 हजार प्रतिमाह किया गया।

वास्तविकता- शिक्षामित्रों का मानेदय बढ़ाया गया, लेकिन उनकी तरह भटक रहे अनुदेशकों के बारे में कोई ठोस विचार नहीं किया गया।

-कौशल विकास को बढ़ावा देने के लिए अब तक 39 असेवित तहसीलों में प्रशिक्षण प्रदाताओं के माध्यम से एक-एक कौशल विकास प्रशिक्षण केंद्र की स्थापना।

वास्तविकता- इन कौशल विकास केंद्रों में से कई में अभी तक प्रशिक्षण शुरू नहीं हुआ है।

-राजकीय महाविद्यालयों में ‘परमवीर चक्र’ विजेताओं के चित्र और उनका जीवन परिचय विद्यालयों की गैलरियों में लगाने के निर्देश जिससे छात्र-छात्राएं उनकी शौर्य गाथाओं से परिचित हो सकें।

वास्तविकता- कई राजकीय महाविद्यालयों की स्थिति दयनीय। संसाधनों के अभाव में इस निर्देश का पालन होना असंभव।

-छात्रों को अगले सत्र में एनसीईआरटी पैटर्न पर शिक्षा मुहैया कराने का दावा किया गया।

वास्तिविकता- वर्तमान पैटर्न की किताबों को समय से वितरित करने में विभाग नाकाम। फटी या पुरानी किताबों से पढ़ाई कर रहे हैं बच्चे।

-प्राथमिक, माध्यमिक व उच्च शिक्षा के क्षेत्र में बेहतर सुविधाएं और पाठयक्रम उपलब्ध कराने के लिए गंभीर प्रयास का दावा किया गया।

वास्तविकता- तमाम प्राथमिक स्कूलों की हालत खस्ता है। कई जगहों पर जर्जर या भवनविहीन स्कूल संचालित हैं। इन स्कूलों में पेयजल, बाउंड्रीवाल, शौचालय तक नहीं है। बच्चों के बैठने के लिए फर्नीचर भी नहीं हैं। छात्राओं की सुरक्षा के लिए रानी लक्ष्मीबाई आत्मरक्षा कार्यक्रम भी शुरू होना था, लेकिन इस पर कोई ठोस निर्णय नहीं हो पाया। इसके अलावा उच्च शिक्षा में भी समान पाठ्यक्रम प्रणाली लागू करने पर कोई जमीनी निर्णय नहीं हो पाया।

-मिड डे मील की गुणवत्ता की जांच के लिए छह सदस्यीय ‘मां’ नामक समितियों के गठन का निर्णय।

वास्तविकता- इससे पूर्व भी मिडडे मील की निगरानी के लिए अभिभावक संघ गठित हुआ था। लेकिन इन समितियों की सिफारिशों पर अधिकारी ध्यान नहीं देते हैं। इसके अलावा मिड डे मील के कई जानलेवा हादसों के बावजूद जिम्मेदार एक निजी संस्था पर कोई कार्रवाई न करना या उसका विकल्प न ढूढऩा भी मिड डे मील योजना में बदलाव न होना ही दर्शाता है।

-बच्चों के लिए नया ड्रेस कोड और कक्षा 1 से 8 तक के लिए सभी बच्चों के आधार कार्ड पंजीयन का दावा।

वास्तविकता- योगी सरकार ने बच्चों के लिए नया ड्रेस कोड लागू कर दिया है, लेकिन अभी ड्रेस वितरण का बजट स्कूलों तक सुलभ नहीं है। इसके अलावा सरकार ने यह स्पष्ट नहीं किया है कि ड्रेस वितरण में होने वाले घपले को रोकने के लिए उसकी क्या तैयारी है। ऐसे में बच्चों को समय से ड्रेस मिल पाने में एक बड़ी बाधा नजर आ रही है। जहंा तक आधार कार्ड नामांकन की बात है तो जिस संस्था को आधार कार्ड पंजीयन का जिम्मा मिला था, उसने सॉफ्टवेयर की गड़बड़ी का हवाला देकर काम को बीच में ही रोक दिया है। अधिकारी भी इस मामले पर मुंह छिपाते नजर आ रहे हैं।

-अध्यापकों को स्कूलों में ‘लेसन प्लान’ के आधार पर ही कक्षाएं संचालित कराने के निर्देश जारी किए गए है।

वास्तविकता- सरकार अध्यापकों को समय से स्कूल आने के लिए बाध्य करने वाली बायोमेट्रिक व्यवस्था को लागू करने में विफल रही है। ऐसे में जब अध्यापक स्कूल ही नहीं आएंगे तो लेसन प्लान बनाना या उसके हिसाब से पढ़ाने की बात दूर की कौड़ी ही नजर आ रही है।



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Excellent communication and writing skills on various topics. Presently working as Sub-editor at newstrack.com. Ability to work in team and as well as individual.

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