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BBAU के रिसर्च पेपर को मिली ग्लोबल पहचान, ऑक्सफोर्ड सहित अन्य जर्नल में प्रकाशित हुए शोध

BBAU News: कोविड-19 महामारी के बाद, बुनियादी ढांचे के साथ मानव संसाधन में निवेश करना और भी महत्वपूर्ण हो गया है, ताकि जनसंख्या के व्यापक डेटा का अध्ययन किया जा सके और ऐसी महामारी के डेटा का विश्लेषण किया जा सके। भविष्य में मानवता को बचाने के लिए यह आवश्यक है कि इन क्षेत्रों में काम करने वाले विशेषज्ञ जिन्हें पहले असंबंधित माना जाता था।

Durgesh Sharma
Written By Durgesh Sharma
Published on: 22 Aug 2022 8:39 AM GMT
bbau research paper got global recognition research published in other journals including oxford
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BBAU News (Social Media)

BBAU News: बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय, लखनऊ में जैव प्रौद्योगिकी , सांख्यिकी और सूचना विज्ञान के क्षेत्र में शोधकर्ताओं ने संक्रामक और गैर-संक्रामक रोग महामारी विज्ञान की समस्या का समाधान ढूंढने के लिए मिलकर काम किया। सांख्यिकी विशेषज्ञ डॉ. सुभाष यादव, डॉ. युसूफ अख्तर संक्रामक रोग विशेषज्ञ और डेटा वैज्ञानिक डिजिटल कोडिंग विशेषज्ञ डॉ. विनीत कुमार ने संक्रामक रोग प्रसार की भविष्यवाणी से संबंधित वैज्ञानिक समस्याओं को हल करने के लिए मिलकर काम कर रहे हैं। बिग डेटा के इस युग में आज की दुनिया में मानवता की समस्याओं के अध्ययन के लिए गणित, सांख्यिकी और कंप्यूटर विज्ञान अति आवश्यक हो गए हैं।


कोविड-19 महामारी के बाद, बुनियादी ढांचे के साथ मानव संसाधन में निवेश करना और भी महत्वपूर्ण हो गया है, ताकि जनसंख्या के व्यापक डेटा का अध्ययन किया जा सके और ऐसी महामारी के डेटा का विश्लेषण किया जा सके। भविष्य में मानवता को बचाने के लिए यह आवश्यक है कि इन क्षेत्रों में काम करने वाले विशेषज्ञ जिन्हें पहले असंबंधित माना जाता था। जैसे कि गणित और कंप्यूटर साइंस, विभिन्न मानव रोगों के लिए उपलब्ध बड़े डेटा सेट का विश्लेषण करने के लिए जैव चिकित्सा वैज्ञानिकों के साथ सहयोग करते हुए बहु विषयक शोध करें।



ताकि किसी भी आबादी के भीतर ऐसी बीमारियों का प्रसार और इसकी संभावना का अनुमान लगाया जा सके। इस संदर्भ में बीबीएयू के बहु-विषयक शोधकर्ताओं डॉ. यादव और डॉ अख्तर ने शोध कर संक्रामक बीमारियों के प्रजनन संख्या की गणना के लिए सटीक विधि विकसित की है, जो महामारी विज्ञान मॉडल के विकास में अति आवश्यक है। महामारी विज्ञान में, किसी बीमारी की मूल प्रजनन संख्या अतिसंवेदनशील आबादी में एक संक्रमित व्यक्ति द्वारा सीधे संक्रमित होने वाले व्यक्तियों की अनुमानित संख्या का अनुमान होता है। इसी प्रकार प्रभावी प्रजनन संख्या, जो प्रति संक्रमित से द्वितीयक संक्रमणों को इंगित करती है, एक अन्य आंकड़ा है। यह शोध किसी भी महामारी की प्रगति की सटीक भविष्यवाणी करने में सहायता कर सकता है। यह पेपर प्रतिष्ठित ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस के "जर्नल ऑफ ट्रैवल मेडिसिन" में प्रकाशित हुआ है, जिसका इम्पैक्ट फैक्टर 39.194 है।

रिसर्च से हो सकेगी अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की मदद- डॉ. अख्तर

इसी तरह के एक अन्य शोध में, डॉ यादव, डॉ कुमार और डॉ अख्तर ने आगे ये कैसे फैल सकती है उसकी भविष्यवाणी के लिए और शीर्ष में महामारी के व्यवहार को निर्धारित करने के लिए विभिन्न सांख्यिकीय दृष्टिकोणों का उपयोग करके ओमाइक्रोन संस्करण के उद्भव के बाद एकत्र किए गए वैश्विक कोविड-19 प्रसार डेटा का विश्लेषण किया है। उल्लेखनीय तथ्य यह है कि यह दुनिया के सभी देशों के लिए प्रासंगिक है। इस तरह के बड़े पैमाने पर डेटा का चयन, मूल्यांकन और विश्लेषण करने वाला एकमात्र प्रकाशित अध्ययन है। शोधकर्ताओं ने कंपार्टमेंटल एसआईआर (ससेप्टिबल-इन्फेक्शियस-रिकवर) मॉडल का उपयोग कर उस समय संक्रमण की घटनाओं वाले 12 देशों के लिए संक्रमण दर (β), रिकवरी रेट (γ) और मूल प्रजनन संख्या (आर-नॉट ) का अनुमान लगाया।


इस जानकारी का उपयोग टीकाकरण जैसे महामारी के खिलाफ दमनात्मक उपायों को शुरू करके रोग के संचरण चक्र को तोड़ने के लिए सबसे प्रभावी नीति स्थापित करने के लिए किया जा सकता है, जो बीमारी की बाद की लहरों या एक नई महामारी को रोकने में भी सहायता करेगा। यह अध्ययन प्रतिष्ठित स्प्रिंगर-नेचर जर्नल की पत्रिका, करेंट माइक्रोबायोलॉजी में प्रकाशित हुआ है। डॉ. अख्तर ने कहा कि इन दृष्टिकोणों को अन्य संक्रामक और गैर-संक्रामक रोगों तक बढ़ाया जा सकता है और यह राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति के संशोधन, विकास और कार्यान्वयन में एक जबरदस्त मदद होगी।

Durgesh Sharma

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