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पुण्यतिथि विशेष: ऐसे थे आधुनिक हिन्दी कहानी के 'पितामह'
लखनऊ: ‘मुंशी प्रेमचंद’,जी का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है ये नाम हिंदी जानने, समझने, पढ़ने या लिखने वाले किसी भी शख्स के लिए अनजाना नहीं है। आज ही के दिन 8 अक्टूबर साल 1936 में अपनी कहानियों के माध्यम से जीवन के यथार्थ को दिखाने वाले महान कहानीकार मुंशी प्रेमचंद दुनिया को छोड़ महायात्रा पर चले गए थे।
ये है मुंशी जी का जीवन संघर्ष
प्रेमचंद का नाम असली नाम धनपत राय था। उनका जन्म 31 जुलाई, 1880 को बनारस शहर से चार मील दूर लमही नामक गांव में हुआ था। अपने मित्र मुंशी दयानारायण निगम के सुझाव पर उन्होंने धनपत राय की बजाय प्रेमचंद उपनाम रख लिया। उनके पिता का नाम मुंशी अजायब लाल था, जो डाकघर में मुंशी का पद संभालते थे। वे शुरुआती दिनों में चुनार में शिक्षक थे। तब उन्हें 18 रुपये तनख्वाह मिलती था। वे हिन्दी के साथ-साथ उर्दू, फारसी और अंग्रेजी पर भी बराबर की पकड़ रखते थे।
प्रेमचंद जब 6 वर्ष के थे, तब उन्हें लालगंज गांव में रहने वाले एक मौलवी के घर फारसी और उर्दू पढ़ने के लिए भेजा गया। वह जब बहुत ही छोटे थे, बीमारी के कारण इनकी मां का देहांत हो गया। उन्हें प्यार अपनी बड़ी बहन से मिला। बहन के विवाह के बाद वह अकेले हो गए। फिर वह सूने घर में कहानियां पढ़ने में व्यस्त हो गए। आगे चलकर वह स्वयं कहानियां लिखने लगे और महान कथाकार बने।
इन्होंने लिखा था प्रेमचंद की जीवनी
धनपत राय का विवाह 15-16 बरस में ही कर दिया गया, लेकिन ये विवाह उनको फला नहीं और कुछ समय बाद ही उनकी पत्नी का देहांत हो गया। कुछ समय बाद उन्होंने बनारस के बाद चुनार के स्कूल में शिक्षक की नौकरी की, साथ ही बीए की पढ़ाई भी। बाद में उन्होंने एक बाल विधवा शिवरानी देवी से विवाह किया, जिन्होंने प्रेमचंद की जीवनी लिखी थी।
आधुनिक हिेन्दी कहानी के पितामह माने जाने वाले प्रेमचंद की पहली हिन्दी कहानी सरस्वती पत्रिका के दिसम्बर अंक में 1915 में 'सौत' नाम से प्रकाशित हुई। उन्होंने अपने जीवनकाल में 1 दर्जन से ज्यादा नॉवेल और 250 लघु कहानियां लिखी। प्रेमचंद्र ने लगभग 300 कहानियां और चौदह बड़े उपन्यास लिखे। सन् 1935 में मुंशी जी बहुत बीमार पड़ गए और 8 अक्टूबर 1936 को 56 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया।
मुख्य रचना
गबन, निर्मला, बूढी काकी, पूस की रात, बड़े घर की बेटी, बड़े भाईसाहब, आत्माराम, शतरंज के खिलाड़ी जैसी कहानियों से प्रेमचंद ने हिंदी साहित्य की जो सेवा की है, वो अद्भुत और अद्वितीय है।