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वृद्धावस्था मानसिक विभाग के HOD डॉ. श्रीकांत को फेलोशिप, ये है वजह

sudhanshu
Published on: 5 Oct 2018 4:09 PM IST
वृद्धावस्था मानसिक विभाग के HOD डॉ. श्रीकांत को फेलोशिप, ये है वजह
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लखनऊ: किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के वृद्धावस्था मानसिक विभाग के विभागाध्यक्ष की जिम्मेदारी संभालने वाले डॉ. श्रीकांत श्रीवास्तव ने बड़ी उपलब्धि हासिल की है। डॉ. श्रीकांत श्रीवास्तव को रायॅल कॉलेज ऑफ साइकेट्रिस्ट के मुख्य उददे्श्य में महत्वपूर्ण योगदान के लिए ‘FRCPsych’ की तरफ से फेलोशिप मिली है। डॉ श्रीकांत श्रीवास्तव को यह फेलोशिप देने का निर्णय 20 सितंबर 2018 को हुई नामांकन समिति की बैठक में लिया गया है।

काम के आकलन के आधार पर हुआ चयन

डॉ श्रीवास्तव ने वर्ष 2003 में रायॅल कॉलेज ऑफ साइकेट्रिस्ट में मेंम्बरशिप ली थी। इसके बाद उनके काम के आधार पर उन्हें यह फेलोशिप दी गई है। डॉ श्रीवास्तव मानसिक विभाग एवं वृद्धावस्था मानसिक विभाग के पहले ऐसे डॉक्टर हैं, जिन्हें इस फेलोशिप के लिए चुना गया है। इस बात की जानकारी ‘FRCPsych’ के अध्यक्ष प्रोफेसर वेंडी बर्न ने दी है। इससे पहले किसी भी इस विभाग के डॉक्टर को अभी तक यह उपलब्धि नहीं मिली है।

मरीजों के बीच हैं लोकप्रिय

डॉ श्रीकांत श्रीवास्तव बहुत ही मिलनसार व्यक्ति हैं। उनसे मुलाकात करने के बाद यह पता नहीं चलता है कि इतने सीनियर और अनुभवी डॉक्टर से बात कर रहे हैं। वह मरीजों को बहुत ही सरल स्वभाव से देखते हैं और मुलाकात करते हैं.।उन्होंने मरीजों के परिजनों के लिए एक योजना तैयार की थी, जिससे फंड नहीं मिलने की वजह से आगे नहीं बढ़ाया जा सका। उन्होंने बताया कि अब विभागाध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाली फंड जैसे ही मिलता है उसे आगे बढ़ाने का काम कर दिया जाएगा। इस योजना के अंतर्गत परिजनों की भी देखरेख की जाएगी। बहुत से परिजन ऐसे हैं, जो लगातार मरीजों के साथ आते हैं, उससे उनके अंदर भी तनाव के लक्षण दिखने लगते हैं। डॉ श्रीकांत ने मानसिक तनाव जैसी बीमारियों को लेकर बहुत से रिसर्च किए हैं और लगे भी हुए हैं। मरीजों के बीच वह खासे लोक‍प्रिय हैं।

मरीज पर नहीं डालते दवाओं का बोझ

डॉ. श्रीकातं ने बताया कि मानसिक रोग से ग्रस्‍त मरीजों के इलाज करने का तरीका बहुत ही अलग है। वह पहले मरीजों की बीमारियों को पूरी तरह से पहचान करते हैं। उस बीमारी के अनुरूप एक या दो दवाओं से मरीजों का इलाज शुरू करते हैं। जिससे मरीजों पर दवाओं की खरीद का अधिक भार नहीं पड़ता है।



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