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कैसे हटेगा नन्हें कंधों से बोझ, HRD मिनिस्ट्री के आदेश के बाद भी स्कूलों को नहीं है जानकारी 

Shivakant Shukla
Published on: 14 Dec 2018 4:38 PM GMT
कैसे हटेगा नन्हें कंधों से बोझ, HRD मिनिस्ट्री के आदेश के बाद भी स्कूलों को नहीं है जानकारी 
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स्वाति प्रकाश

लखनऊ: पिछले कई समय से बच्चों के स्कूल बैग का वज़न बहस का विषय रहा है। पहली बार बच्चों के पाठ्यक्रम का बोझ कम करने की पहल की गयी है। करीब 2 हफ्ते पहले मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने स्कूलों को निर्देश दिया है कि पहली और दूसरी के बच्चों को होमवर्क न दिया जाए साथ ही स्कूली बच्चों के बैग का वज़न भी तय किया गया है। हमने शहर के कुछ नामचीन स्कूलों की पड़ताल की तो पता चला कि इन स्कूलों को अभी तक इस मामले की कोई जानकारी नहीं है। स्कूल प्रशासन तो क्या, अधिकांश अभिभावकों को भी इस फैसले के बारे में कुछ नहीं पता।

शहर के बड़े स्कूलों का यह है हाल

लखनऊ में छोटे-बड़े मिलाकर कुल 524 स्कूल हैं इनमें सरकारी और गैर-सरकारी दोनों स्कूल शामिल हैं। इनमें से किसी भी स्कूल में अबतक मंत्रालय का आदेश नहीं पहुंचा है। शहर के स्कूलों में बच्चे अभी भी भारी बैग टांगने को मजबूर हैं। इन स्कूलों के प्रिंसिपल का कहना है कि उन्हें सरकार के इस फैसले की कोई जानकारी नहीं है। साउथ सिटी स्थित एलपीएस स्कूल की प्रिंसिपल रश्मि पाठक से जब पूछा गया कि उनके स्कूल में इस फैसले को कब लागू किया जाएगा तो उन्होंने कहा कि उन्हें इसके बारे में कुछ पता नहीं है।

खबर फैलाना तो मीडिया का काम है , आप लोग इस बारे में लोगों को जागरूक करें । हमारे यहां अभी तक सीबीएसई की तरफ से कोई नोटिस नहीं आया । उन्होंने यह भी कहा कि अगर मंत्रालय ने ऐसा फैसला दिया है तो उसे स्कूलों के पाठ्यक्रम को कम करने की भी व्यवस्था करनी चाहिए। डीपीएस स्कूल की प्रिंसिपल दीप्ति द्विवेदी ने भी मामले की जानकारी न होने का हवाला दिया। सेंट फ्रांसिस स्कूल के प्रिंसिपल फादर एल्विन ने कहा कि उनके पास बोर्ड की तरफ से ऐसा कोई नोटिस नहीं आया है और न ही उन्हें इस फैसले के बारे में पता है। ऐसे ही कैथेड्रल के प्रिंसिपल फादर पॉल रोड्रिग्स को भी स्कूल बोर्ड की तरफ से कोई नोटिस नहीं मिला। सेंट पॉल्स और लोरेटो कान्वेंट स्कूल में भी सरकार की तरफ से कोई नोटिस नहीं पहुंचा है। ऐसे में स्कूल प्रशासन नियमों में कोई बदलाव नहीं कर पाए हैं।

अभिभावक तक फैसले से हैं अंजान

सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि जिस फैसले से देश के करीब 24 करोड़ बच्चों का भविष्य सुधर सकता है, उस फैसले से बच्चों के माता पिता ही अनभिज्ञ हैं। अलग-अलग स्कूलों में जब बच्चों के माता पिता से पूछा गया कि उनके बच्चों के बैग का वजन कम किया गया या नहीं , तो उन्होंने उल्टा सवाल दाग दिया कि यह आदेश कब आया । नर्सरी क्लास के एक बच्चे के पिता ने कहा कि उन्हें अभी तक इस आदेश की कोई जानकारी नहीं है, अब वह स्कूल प्रशासन से ज़रूर इस विषय में पूछताछ करेंगे। बारी-बारी से जब माँ-बाप से इस बारे में पूछा गया तो केवल कुछ ने ही इस मामले की जानकारी होने की बात कही। अधिकतर माता-पिता अभी तक इस फैसले से पूरी तरह अंजान हैं। सवाल यह है कि जब बच्चों के अभिभावक ही इस बात से अंजान हैं तो स्कूल प्रशासन की जवाबदेही कैसे होगी।

क्या है एचआरडी मिनिस्ट्री का आदेश

तेलंगाना ने बच्चों के स्कूल बैग का वज़न निर्धारित करने के लिए एक मानक तय किया है। एचआरडी मिनिस्ट्री ने सभी राज्यों को यह मॉडल फॉलो करने के निर्देश दिए हैं। इसके मुताबिक स्कूली बच्चों के बैग का वज़न कुछ इस तरह होना चाहिए।-

क्लास वज़न

1 -2 1.5 kg

3 -5 2-3 kg

6 -8 4 kg

8 - 9 4.5 kg

9 -12 5 kg

इसके साथ ही चिल्ड्रन स्कूल बैग एक्ट 2006 के मुताबिक बच्चों के बैग का वज़न उनके शरीर के कुल वज़न से 10 प्रतिशत से ज़्यादा नहीं होना चाहिए।

क्या है स्कूल बैग का मौजूदा वज़न

अलग-अलग स्कूलों के बच्चों के स्कूल बैग का वज़न नापा गया, तो यह तय मानक से कहीं ज़्यादा निकला । नर्सरी के बच्चे के बैग का वज़न 3 से 4 किलो है । यह वज़न इतना ज़्यादा है कि माँ बाप को बच्चों का बैग लादकर स्कूल के अंदर तक जाना पड़ता है, हालाँकि कई स्कूलों में अभिभावकों को अंदर जाने की इजाज़त नहीं है. ऐसे में छोटे बच्चे अपने भार जितना बैग टांगकर क्लास तक पहुँचते हैं।

लोरेटो कान्वेंट में तीसरी क्लास में पढ़ने वाली अंशिका के बैग का वजन करीब 8 किलो है। अंशिका की माँ ने बताया कि उसकी क्लास तीसरी मंज़िल पर है। इतना भारी बैग टांगकर उसे तीसरी मंज़िल तक चढ़ना पड़ता है जिससे उसकी पीठ में दर्द रहने लगा है। उनका कहना है कि भारी बैग उठाने से उनकी बेटी की लम्बाई भी नहीं बढ़ रही है। 9 वीं में पढ़ने वाले एलपीएस के ऋतुराज का बैग भी करीब 9 से 10 किलो का है। रोज़ साईकिल से स्कूल आने वाले ऋतुराज ने बताया कि बैग में बहुत ज़्यादा किताबें होने की वजह से बैग को कैरियर में भी नहीं बांधा जा सकता ।

ऐसे में उन्हें इतने भारी बैग को रास्ते भर अपनी पीठ पर लादना पड़ता है। उनकी क्लास दूसरी मंज़िल पर है , रोज़ उन्हें अपने भारी से बैग को लेकर दूसरी मंज़िल तक चढ़ना पड़ता है. ऋतुराज ने बताया कि वह इतना थक जाते हैं कि शाम को घर के पास होने वाली फुटबॉल प्रैक्टिस में भी नहीं जा पाते।

हिंदी मीडियम और सरकारी स्कूलों में स्थिति थोड़ी बेहतर

वैसे तो राजधानी में अधिकतर बच्चों के बैग का वज़न तय मानक से कहीं ज़्यादा है, लेकिन हिंदी मीडियम और सरकारी स्कूलों का हाल प्राइवेट स्कूलों से थोड़ा बेहतर है। शहर के कई सरकारी और हिंदी मीडियम स्कूलों का जायज़ा लिया गया तो पता चला कि यहां के छात्रों का बैग बाकी स्कूलों से थोड़ा हल्का है। कैंट स्थित सँस्कृत पाठशाला जूनियर हाईस्कूल के नर्सरी के बच्चे का स्कूली बैग करीब 1.5 से 2 किलो का था। वहीं 8वीं के बच्चे का बैग 5 से 5.50 किलो था।

यहां की प्रिंसिपल उषा कुमार ने बताया कि उन्हें शासन की तरफ से कोई नोटिस नहीं मिला है। लेकिन उन्हें समाचार पत्रों से इसकी सूचना मिली थी। तबसे वह बच्चों के बैग के वज़न को लेकर थोड़ी सख़्त हैं। हालांकि उन्होंने बताया कि छोटा स्कूल होने के कारण यहां कोई भी अतिरिक्त किताबें नहीं मंगवाई जातीं। बच्चों के बैग ट्यूशन की किताबों की वजह से भारी हो जाते हैं। अब उन्होंने क्लास टीचरों को हिदायत दी है कि बच्चों के बैग पर नज़र रखें ताकि वह स्कूल के अलावा कोई अन्य किताबें न लाएं। सदर के प्राथमिक पाठशाला में भी बच्चों के बैग का वज़न बाकी जगहों से काफी कम है।

यहां आने वाले बच्चों ने बताया कि वह आसानी से घर से बैग टांगकर आते हैं। उन्हें 4 से 5 किताबें ही लानी पड़ती हैं। यहां की प्रिंसिपल संध्या भटनागर ने बताया कि उनके यहां काफी गरीब बच्चे पढ़ते हैं। उनकी आर्थिक स्थिति देखते हुए किसी भी बच्चे से कोई अन्य किताब नहीं मंगवाई जाती। ऐसे में उनके बैग का वज़न ज़्यादा नहीं होता। आनंद बाल विद्या मंदिर और आदर्श भारतीय विद्यालय में भी बच्चों के बैग तय मानक से ज़्यादा भारी नहीं हैं। हालांकि गोमतीनगर के केंद्रीय विद्यालय में नज़ारा कुछ अलग था। यहां के प्रिंसिपल सी.बी.पी. वर्मा ने कहा कि उन्हें एचआरडी मिनिस्ट्री के आदेश की कोई जानकारी नहीं है, न ही उन्हें कोई लिखित आर्डर मिला है। उन्होंने कहा कि उनके स्कूल में केवल एनसीआरटी की प्रस्तावित किताबें चलती हैं।

हर विषय की केवल एक किताब है , प्राइवेट स्कूलों की तरह उनके यहां बाज़ार से कोई किताब नहीं मंगवाई जाती। इसलिए बच्चों के बैग ज़्यादा भारी नहीं हैं। हालांकि बच्चों के बैग का वज़न कुछ और ही कहता है । यहां पर नर्सरी के बच्चे का बैग करीब 5 से 6 किलो है, वहीं 8वीं के बच्चे का बैग 8 से 9 किलो है, इंटर की लड़कियों के बैग का वजन 12 से 13 किलो है। हकीकत प्रिंसिपल साहब के बयान से काफी अलग है।

ज़िम्मेदारों का क्या है कहना

इस विषय में जब शिक्षा विभाग के आला अफसरों से पूछा गया तो उन्होंने कुछ इस तरह कि प्रतिक्रिया दी|

' हमारा विभाग केंद्र नहीं, राज्य स्थापित है । अभी तक राज्य सरकार कि तरफ से कोई नोटिस जारी नहीं हुआ है। जबतक हमारे पास कोई लिखित नोटिस नहीं आता , तबतक हम स्कूलों को कोई नोटिस नहीं भेज सकते'- डॉ मुकेश कुमार सिंह, डीआईओएस

' यह निर्णय केंद्रीय मंत्रालय का है ,हमें अभी तक राज्य सरकार से ऐसी कोई सूचना नहीं मिली है.जैसे ही हमें सूचना मिलेगी हम स्कूलों को नोटिस भेज देंगे'- अमरकांत सिंह , बीएसए

माध्यमिक शिक्षा निदेशालय को अभी तक ऐसी कोई सूचना नहीं मिली है, हमें इस आदेश कि कोई जानकारी नहीं है। जब शिक्षा मंत्रालय से हमारे पास नोटिस आएगा तो हम माध्यमिक स्कूलों में यह नोटिस भेजेंगे'- विनय कुमार पांडे, निदेशक माध्यमिक शिक्षा

क्या है विशेषज्ञों की राय

बच्चों के भारी बैग से होने वाले दुष्परिणामों को ध्यान में रखते हुए उनके कंधे से इस बोझ को हटाना बहुत ज़रूरी है वरना वह मानसिक और शारीरिक तनाव के शिकार हो सकते हैं। बैग का बोझ और पढाई की टेंशन में बच्चे खेलना भी भूल गए हैं । यह कहना है पीजीआई की बाल रोग विशेषज्ञ डॉक्टर पियाली भट्टाचार्य का। वहीं डफरिन के बाल रोग विशेषज्ञ डॉ सलमान बताते हैं कि ज़्यादा भारी बैग टांगने से बच्चों की रीढ़ की हड्डी कमज़ोर होती है। इससे उनके घुटने और पीठ पर भी बुरा असर पड़ता है। कम उम्र में ज़्यादा वज़न उठाने से उनकी ग्रोथ और लम्बाई पर भी असर पड़ता है। उनका कहना है कि बच्चों को मानसिक तनाव से दूर रखने के पाठ्यक्रम को भी कम करने की ज़रूरत है।

कब क्या कदम उठाए गए

बच्चों के कंधों से स्कूल बैग का बोझ कम करने की बात सिर्फ आज नहीं उठी है कई बार इस दिशा में प्रयास किए गए। 1993 में यशपाल कमिटी ने यह प्रस्ताव रखा कि पाठ्य पुस्तकों को स्कूल की सम्पत्ति समझकर इन्हें स्कूल में ही जमा कर लिया जाए। सभी बच्चों को लॉकर अलॉट किए जाएं ताकि उन्हें रोज़ भारी बैग न लादना पड़े। साल 2005 में एक सर्क्युलर जारी किया गया जिसमें बच्चों के मानसिक और शारीरिक तनाव को कम करने के सुझाव दिए गए।

साल 2006 में चिल्ड्रेन्स स्कूल बैग एक्ट पास हुआ जिसके तहत यह फैसला किया गया कि स्कूली बच्चों के बैग का वज़न उनके शरीर के कुल वज़न से 10 प्रतिशत से ज़्यादा नहीं होना चाहिए। मई 2018 में मद्रास हाई कोर्ट ने एक अंतरिम आदेश में केंद्र से यह कहा कि वह बच्चों के स्कूल बैग का वज़न घटाए . साथ ही पहली और दूसरी तक के बच्चों को होमवर्क न दिया जाए। नवंबर 2018 में मानव संसाधन मंत्रालय ने यह आदेश पारित कर दिया और सभी राज्य सरकारों को इसका अनुसरण करने का निर्देश दिया।

Shivakant Shukla

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