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Higher Education: भारत में उच्च शिक्षा में कैसे सुधार हो, नई शिक्षा नीति नहीं रही कारगर
नीति आयोग ने अपनी रिपोर्ट में भारतीय महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों की शिक्षा में गुणवत्ता की आवश्यकता पर बल दिया है। सभी शिक्षाविदों ने एकमत से इस तथ्य का चिंतन करते हुए इसको स्वीकार किया।
Higher Education News (Photo Social Media)
Higher Education: किसी भी देश की शिक्षा व्यवस्था में उच्च शिक्षा एक महत्वपूर्ण स्तम्भ होती है। उस स्तम्भ का आधार, उस देश की संस्कृति, मूल्य एवं संस्कार ही होते हैं, जिनके अनुरूप छात्रों को उच्च शिक्षा प्रदान की जानी चाहिए। भारतीय शिक्षा नीति 2020 इसी आशा के साथ लाई गई थी कि इस नीति के क्रियान्वन के पश्चात भारतीय शिक्षा में आमूलचूल परिवर्तन आयेगा और भारत पुनः विश्वगुरू बन जाएगा, परन्तु ऐसा सम्भव नहीं हो पाया। नीति आयोग ने अपनी रिपोर्ट में भारतीय महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों की शिक्षा में गुणवत्ता की आवश्यकता पर बल दिया है। सभी शिक्षाविदों ने एकमत से इस तथ्य का चिंतन करते हुए इसको स्वीकार किया।
किसी भी समस्या का समाधान करने से पूर्व उसके कारणों को जानना नितान्त आवश्यक है। उच्च शिक्षा का निम्न स्तर होने के कारणों को यदि जानने का प्रयास किया जाए तो उसमें सबसे प्रमुख कारण भ्रष्टाचार ही है, इसलिए उसपर नियन्त्रण करना अतिआवश्यक है अन्यथा उच्च शिक्षा के स्तर में सुधार कर पाना एक दुःस्वप्न सदृश ही रहेगा। किसी भी क्षेत्र में भ्रष्टाचार का प्रारम्भ शीर्ष पद से निम्न पद की ओर प्रवाहित होता है। सर्वप्रथम विश्वविद्यालयों के कुलपति की नियुक्ति हेतु शिक्षाविदों एवं वैज्ञानिकों का एक वृहद आयोग का गठन करके देशव्यापी मापदंड निश्चित किया जाना चाहिए, जिसमें राजनैतिक हस्तक्षेप ना हो।
वर्तमान समय में भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली, में निरीक्षण कर्ताओं के द्वारा किसी भी नए संस्थान का शुभारंभ कतते समय तथा समय-समय पर उसके मानकों पर खरा उतरने की प्रदर्शन मूल्यांकन रिपोर्ट ली जाती है। शासन द्वारा गठित नियामक आयोग और उसका निरीक्षण दल, शिक्षण संस्थानों का केवल उत्पीड़न करते हैं तथा अनैतिक माँग करते हैं।
पहले AICTE (अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद) के द्वारा शिक्षण संस्थानों का प्रतिवर्ष निरीक्षण किया जाता था। परन्तु प्रो0 अनिल सहस्रबुद्धे ने अध्यक्ष पद पर नियुक्त होने के पश्चात, प्रतिवर्ष निरीक्षण कार्य की समाप्ति की घोषणां की। उनके इस निर्णय से आज AICTE भ्रष्टाचार से मुक्त हो चुकी है। इसका श्रेय प्रोफेसर सहस्रबुद्धे को ही जाता है।
NAAC (राष्ट्रीय मूल्याकंन एवं प्रत्यायन परिषद) के निरीक्षण मंडलो के द्वारा भी विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालयों के निरीक्षण कार्य के अन्तराल में किए गए भ्रष्टाचार भी समय-समय पर प्रकट होते रहे हैं। उस स्तर पर भी भविष्य में निरीक्षण की आवश्यकता को समाप्त करने का श्रेय प्रोफेसर सहस्रबुद्धे को ही जाता है।
अभी भी राज्य सरकारें, विश्वविद्यालय तथा नियामक आयोग, यथा - NCISM, PCI, National Medical Commission, Nursing Council आदि अपनी कार्यप्रणाली में परिवर्तन लाने की इच्छुक नहीं है, जिस कारण से इनके द्वारा भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिल रहा है। इन मंडलों की निरीक्षण प्रणाली को शीघ्रातिशीघ्र समाप्त करना होगा, तभी उच्च शिक्षा में सुधार सम्भव हो पायेगा।
केन्द्रीय एवं राज्य सरकारों का सम्पूर्ण ध्यान सरकारी विश्वविद्यालयों पर ही केन्द्रित रहता है। आज भारत में निजी विश्वविद्यालयों का योगदान, सरकारी विश्वविद्यालयों से किसी भी क्षेत्र में कम नहीं है। वे समस्त मानकों को पूर्ण करते हुए शिक्षा का उच्च स्तर बनाये रखने में संलग्न हैं। इसके अन्तर्गत शिक्षा, खेल, शोध एवं नवाचार तथा नौकरी नियोजन आदि सभी क्षेत्रों में निजी विश्वविद्यालय, सरकारी विश्वविद्यालयों के समकक्ष कंधे से कंधा मिलाकर न केवल कार्य कर रहें हैं अपितु उनसे भी उत्कृष्ट प्रदर्शन भी कर रहे हैं। सरकारी विश्वविद्यालयों को, सरकार के द्वारा करोड़ों रूपयों का अनुदान प्राप्त होता है और समस्त सुविधाएं भी उन्हें प्रदान की जाती हैं, जबकि निजी विश्वविद्यालयों के लिए सरकार का सहयोग नगण्य है। जिस दिन से सरकार, दोनों प्रकार के विश्वविद्यालयों को समान सहयोग देना प्रारम्भ कर देगी, उसी दिन से भारत में शिक्षा प्रणाली में सुधार होना प्रारम्भ हो जाएगा। नेताओं और अधिकारियों को यह तथ्य निर्विवाद रूप से स्वीकार करना होगा कि अतीत में भी नालन्दा, तक्षशिला तथा विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालयों को उस समय के राजा पूर्ण आर्थिक सहयोग प्रदान करते थे, भारत को विश्वगुरू बनाने में जिनका प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से सहयोग रहा है। वर्तमान में एक निजी विश्वविद्यालय ने खेलों के लिए राष्ट्रपति पुरुस्कार प्राप्त किया, इस तथ्य की ओर नेताओं और सरकारी अधिकारियों का ध्यान केन्द्रित होना चाहिए और उनकी कर्मठता की सराहना की जानी चाहिए। यदि ऐसा होना प्रारम्भ हो जाए तो, निश्चितः भारत, पुनः शिक्षा के क्षेत्र में विश्वगुरू बन जाएगा।