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अमेरिका में रोक से परेशान हुए दुनिया भर के छात्र, क्या भारत को मिलेगा फायदा
हाल ही में कोविड-19 के चलते दुनिया भर के अलग-अलग देशों ने अपने शिक्षण संस्थानों में जो दूसरे देशों से आने वाले छात्रों हैं उनके लिए नियमों में बदलाव किया है
डॉo सत्यवान सौरभ
हाल ही में कोविड-19 के चलते दुनिया भर के अलग-अलग देशों ने अपने शिक्षण संस्थानों में जो दूसरे देशों से आने वाले छात्रों हैं उनके लिए नियमों में बदलाव किया है, जिस से पूरे विश्व के छात्र तनाव में आ गए है जहाँ एक ओर अमेरिका जैसे देश में अब सिर्फ कुछ ही छात्रों को वीज़ा देने की बात कही जा रही है जिसके अंतर्गत वहां जो ऑनलाइन कोर्सेज मौजूद है, उनके लिए स्टूडेंट वीज़ा नहीं मिलेगा।
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वही दूसरी ओर ब्रिटन जैसे देशों ने ये साफ कर दिया है कि वहां पर स्नातक और पीजी कोर्सेज के लिए अगर आप पीएचडी कर रहे है तो वहां पर आपको केवल 2 वर्ष रहने का वीज़ा ही मिल सकता है। और ऐसे ही अलग-अलग देशों में हो रहा है चाहे यूरोप के दूसरे देश हो या फिर चीन, वहां पर कोविड के चलते छात्रों के पढ़ाई पर भी असर पड़ा है। नियमों का यह बदलाव भारतीय छात्रों पर क्या असर डालेगा, क्या कोविड के इस दौर में भी विदेशी शिक्षा का उत्साह बरकरार रहेगा, और क्या इस वक्त बेहतर विकल्प छात्रों के सामने हैं और इनकी आगाम शिक्षा का क्या होगा आदि फिलहाल संशय कि स्थिति पैदा कर रहें है
यूएस इमिग्रेशन एंड कस्टम्स इंफोर्समेंट के उच्च शिक्षा जारी रखने के एक नए निर्देश के अनुसार विश्वविद्यालय के कार्यक्रमों में भाग लेने वाले छात्र, जो पूरी तरह से ऑनलाइन पाठ्यक्रमों पर निर्भर करते हैं वो अब यू एस में इन नहीं रह सकते।ये आदेश सीधे एफ -1 और एम -1 वीजा पर उन छात्रों से संबंधित है। एफ -1 वीजा धारक तृतीयक शिक्षा संस्थानों में स्नातक, स्नातकोत्तर या डॉक्टरेट की पढ़ाई कर रहे हैं। ऍम -1 धारक वे हैं जो व्यावसायिक पाठ्यक्रमों में लगे हुए हैं।
अफ-1 और ऍम -1 छात्रों को पूरी तरह से ऑनलाइन संचालित करने वाले स्कूलों में भाग लेने के लिए एक पूर्ण ऑनलाइन पाठ्यक्रम लोड नहीं हो सकता है और संयुक्त राज्य अमेरिका में रहने के लिए कक्षा कर्यक्रम में भाग लेना होगा सकता। उन कॉलेज और विश्वविद्यालय के छात्र जो केवल ऑनलाइन मॉडल के लिए आगे बढ़ रहे थे, उन्हें देश छोड़ना होगा या ऐसी स्थिति में रहने का दूसरा रास्ता खोजना होगा। अमेरिकी सरकार के इस निर्णय पर काउंसिल ऑफ़ फ़ॉरेन रिलेशंस के अध्यक्ष रिचर्ड हास ने ट्वीट किया है, कि अमरीकी विश्वविद्यालयों में विदेशी छात्रों को आने देना, ग़ैर-अमरीकियों को अमरीका समर्थक बनाने का एक अच्छा तरीक़ा माना गया है। लेकिन अब हम उन्हें अपने से दूर कर रहे हैं और अपना विरोधी बना रहे हैं।
कथित तौर पर अंतर्राष्ट्रीय छात्र, अमेरिका की उच्च शिक्षा आबादी का 5.5 प्रतिशत हिस्सा हैं, जिसकी संख्या केवल 1.1 मिलियन से कम है। यह आदेश भारतीय छात्रों को भी प्रभावित करेगा? अमरीका में भारत और चीन के छात्रों की बड़ी संख्या है। डेटा के अनुसार, साल 2018-19 में लगभग 10 लाख अंतरराष्ट्रीय छात्र अमरीका पहुँचे थे जिनमें से क़रीब तीन लाख 72 हज़ार छात्र चीन और क़रीब दो लाख छात्र भारत से थे। 2017-2018 के आंकड़ों के अनुसार, भारतीय छात्र कोहर्ट अमेरिका में सभी विदेशी छात्रों में से 18 प्रतिशत का प्रतिनिधित्व करते हुए, चीनी के बाद दूसरे स्थान पर है।
यही नहीं अब यू.एस. राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने वर्ष के अंत में एच 1-बी अत्यधिक कुशल श्रमिक वीजा भी को निलंबित करने का आदेश दिया है। इनमें से अधिकांश वीजा प्रत्येक वर्ष भारतीय नागरिकों को जाते हैं। नए नियमों के तहत, अंतर्राष्ट्रीय छात्रों को अमेरिका छोड़ने के लिए मजबूर किया जाएगा। नए दिशानिर्देशों के तहत, यदि उनके स्कूल पूरी तरह से इस ऑनलाइन कक्षाओं की पेशकश करते हैं, तो उन्हें दूसरे कॉलेज में स्थानांतरण करें। आदेशनुसार अंतर्राष्ट्रीय छात्रों को व्यक्तिगत रूप से कम से कम कुछ कक्षाएं लेनी चाहिए।
अब आगे स्कूलों या कार्यक्रमों में छात्रों को नए वीजा जारी नहीं किए जाएंगे जो पूरी तरह से ऑनलाइन हैं। और यहां तक कि कॉलेजों में इन-पर्सन और ऑनलाइन पाठ्यक्रमों में अंतर्राष्ट्रीय छात्रों को अपनी सभी कक्षाएं ऑनलाइन लेने से रोक दिया जाएगा। यह हजारों अंतरराष्ट्रीय छात्रों के लिए एक जरूरी दुविधा पैदा करता है जो यू।एस। में फंसे हुए थे। लेकिन यू.एस. कॉलेज पहले से ही इस गिरावट से परेशान थे, और अब अंतरराष्ट्रीय छात्रों को खोना वहां के लिए विनाशकारी हो सकता है। कई कॉलेज और विश्विद्यालय वहां अंतरराष्ट्रीय छात्रों से ट्यूशन राजस्व पर निर्भर करते हैं, जो आमतौर पर उच्च ट्यूशन दरों का भुगतान करते हैं।
पिछले साल, विश्वविद्यालयों में यू।एस। विदेश से लगभग 1.1 मिलियन छात्रों को आकर्षित किया था जो अब नहीं हो पायेगा यह नीति अंतरराष्ट्रीय छात्रों के लिए क्रूर और अमेरिका के वैज्ञानिक नेतृत्व के लिए हानिकारक है। ज्यादतर देशों और अमरीका में समय का अंतर है। बहुत से देशों में इंटरनेट की दिक्कत है। बिजली जाने की समस्या भी बड़ी है। साथ ही महामारी से हर जगह तनाव है। ऐसे में घर लौट जाने से विदेशी छात्रों को बहुत नुकसान होगा अपने दोस्तों, परिवार और देश को छोड़कर यहाँ पढ़ने आना ताकि अपने सपनों को पूरा कर सके, पहले ही कम मुश्किल नहीं था। आईसीई के इस निर्णय ने विदेशी छात्रों को तोड़ दिया है। इतनी मुश्किलों से यहाँ तक पहुँचने की उनकी सारी मेहनत इससे बर्बाद हो सकती है।
अमरीका में बहुत से लोगों का यह भी मानना है कि ट्रंप प्रशासन इस नए निर्णय के ज़रिए महामारी का फ़ायदा उठाते हुए, अमरीका में विदेशी लोगों की एंट्री को सीमित करने के अपने लक्ष्य की ओर बढ़ना चाहता है। अमरीका में कोरोना वायरस संक्रमण से अब तक एक लाख तीस हज़ार से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है और अमरीका के कई राज्यों में संक्रमण के मामले एक बार फिर तेज़ी से बढ़ रहे हैं।ट्रंप प्रशासन के इस निर्णय से जो बड़ा संदेश निकलकर आ रहा है, वो ये है कि अमरीका में मिलने वाले अवसरों पर किसी अन्य देश के नागरिकों से ज़्यादा हक़ अमरीकी नागरिकों का है।
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इस बात से ये तो कि भारत को अब कम से कम विदेशी शिक्षा के आकर्षण को थामने के नए अवसर प्राप्त होंगे। यह मौका है, जब भारत को नॉलेज पावर बनने का हर नुस्खा अपना सकता है और यह साबित कर सकता है कि उच्च शिक्षा में भी उसका दखल दुनिया के नामी शिक्षण संस्थानों को चुनौती दे सकता है।
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