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शिक्षक दिवस, गुरु पूर्णिमा और भारतीय संस्कृति
लेखक:कमलेश कमल
आज शिक्षक दिवस है, गुरु दिवस क्यों नहीं ? वर्ष के 365 दिन में से एक दिन शिक्षक को समर्पित कर देना भारतीय संस्कृति नहीं है; यहाँ तो पूरा जीवन ही समर्पित करना पड़ता है, हर दिन समर्पित करना पड़ता है। हाँ, विश्व शिक्षक दिवस (जो कि 5 अक्टूबर को मनाया जाता है ) की तर्ज पर अपने यहाँ 5 सितंबर को राष्ट्रीय शिक्षक दिवस मनाया जाता है। डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन सच ही एक महान शिक्षक थे, जिनके जन्म दिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है।
गुरु पूर्णिमा की महिमा ज्यादा , प्रवृत्ति भिन्न
वैसे, गुरु पूर्णिमा की महिमा ज्यादा है, लेकिन उसकी प्रवृत्ति भिन्न है। गुरु पूर्णिमा ज्यादा प्रतीकात्मक है। आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा मनाने के पीछे कारण यह है कि आषाढ़ पूर्णिमा के दिन अमूमन आकाश में घने बादल छाए रहते हैं । प्रतीकात्मक रूप से इन अंधियारे बादलों को शिष्य और पूर्णिमा के चाँद को गुरु माना गया है । अगर सिर्फ चाँद को देखना होता तो, शरद पूर्णिमा को चुना जाता लेकिन गुरु की महिमा तो शिष्यों के कल्याण से ही है।उम्म्मीद की जाती है कि जैसे चाँद के प्रकाश से अंधियारे बादलों में भी रोशनी प्रकीर्तित , परावर्तित होती हैं, वैसे ही हमारे जीवन में भी गुरु की ज्ञान-रश्मियाँ फैले । यह अलग बात है कि इसी दिन वेद व्यास जी का भी जन्मदिन बताया जाता है।
गुरु और शिक्षक में अंतर
गुरु और शिक्षक में अंतर है। गुरु ज्ञान देता है, शिक्षक शिक्षण करता है। गुरु-शिष्य की एक परंपरा है, जिसमे गुरु के पीछे जुड़कर शून्य या नगण्य ( अ) भी विशिष्ट हो जाता है - गुरु +अ = गौरव। शिक्षक तो शिक्षा के निमित्त (अर्थ) आए हर शिक्षार्थी के लिए शिक्षण का कार्य करता है। 5 सितंबर राष्ट्र निर्माण में उन सभी शिक्षकों के महनीय योगदान को रेखांकित करने वाला दिन है।
छात्र होना तो एक अवस्था है
गुरु से यह अपेक्षा रहती है वह शिक्षा ग्रहण करने आए शिक्षार्थी (छात्र) को शिष्य बना दे । छात्र होना तो एक अवस्था है । छात्र तो वह है जो गुरु के सानिध्य में रहता है - छात्र का अर्थ ही है : वह जो गुरु पर छत्र (छाता) लगाकर उसके पीछे चलता है । गुरुकुल में गुरु के पीछे उनके छात्र छत्र उठा कर चलते थे । शिष्य होना एक गुण है जिसे शिष्यत्व कहते हैं । शिष्य का अर्थ है जो सीखने को राजी हुआ, जो झुकने को तैयार हो जिससे उसका जीवन उत्कर्ष की ओर जाए।
गुरु और शिष्य एक परंपरा
गुरु और शिष्य एक परंपरा बनाते हैं । उनमें सिर्फ शाब्दिक ज्ञान का ही आदान-प्रदान नहीं होता। गुरु तो शिष्य के संरक्षक के रूप में कार्य करता है। वह ज्ञान प्रदाता होता है ,अपना ज्ञान शिष्य को देता है जो कालांतर में पुनः यही ज्ञान अपने शिष्यों को देता है। यही गुरु-शिष्य-परंपरा है या परम्परा प्राप्त योग है।
शिक्षक और छात्र एक परंपरा नहीं बनाते ! शिक्षक तो अधिगम( learning) को सरल बनाता है, इसलिए इंग्लिश में उसे fecilitator of learning है ।विद्यालय जाकर विद्या की आकांक्षा रखने वाला विद्यार्थी (विद्या +अर्थी) छात्र भी हो जाता है, जबकि बिना गहन विनम्रता के शिष्य नहीं होता, शिष्यत्व घटित ही नहीं हो सकता ।
बहरहाल, आज शिक्षक दिवस पर अपने सभी शिक्षकों को प्रणाम करता हूँ !