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इस प्रधानाध्यापिका की नेक सोच और ठोस प्रयासों ने बदल दी सरकारी स्कूल की तस्वीर
बदायूं: वर्तमान समय में नकारात्मकता भरे इस समाचार जगत में कभी कभी ऐसे साकारात्मक खबर भी पढ़ने देखने व सुनने को मिल जाती है। जिससे एक नई प्रेरणा मिलती है। ऐसी ही एक खबर है यूपी के बदायूं से आई है जहां सरकारी स्कूल के एक प्रधानाध्यापक ने अपने प्रयत्नशील कदम से बदलाव की एक ऐसी कहानी लिखी है। जिसे पढ़कर लोगों को प्रेरणा लेनी चाहिए।
दरअसल यहां एक सरकारी स्कूल की प्रधानाध्यापिका संगीता शर्मा की नेक सोच और ठोस प्रयासों ने जर्जर भवन। टूटे-फूटे और गंदे शौचालय, चहुंओर गंदगी, बुनियादी सुविधाओं का अभाव.. से जूझते उच्च प्राथमिक विद्यालय की तस्वीर ही बदल दी है। जगत ब्लॉक के आमगांव का यह विद्यालय अब किसी सुविधा संपन्न निजी स्कूल को भी मात देते दिखाई पड़ता है। स्कूल की सूरत और सेहत पूरी तरह सुधर गई है।
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स्वच्छता के लिए आधुनिक सुविधाओं से लैश सरकारी स्कूल
दातागंज के सलेमपुर गाव की निवासी संगीता 2010 में आमगांव के इस विद्यालय में बतौर शिक्षिका नियुक्त हुई। तब शैक्षिक गुणवत्ता से लेकर स्कूल परिसर की स्थिति बहुत ही बदतर थी। 2015 में संगीता प्रधानाध्यापिका पद पर प्रोन्नत हुईं। उसके बाद उन्होंने स्कूल को सुधारने का संकल्प ले लिया। अपने खर्च पर शौचालय का निर्माण शुरू कराया। काम शुरू हो गया तो ग्राम पंचायत को भी सोचने पर मजबूर होना पड़ा। शौचालय के निर्माण पर चार लाख रुपये खर्च हुए, जिसमें से ढाई लाख संगीता ने वहन किए थे। उन्होंने छात्रों के लिए अलग और छात्राओं के लिए अलग, साथ ही दिव्यागों के लिए भी अलग टॉयलेट बनवाया। जिसको आधुनिक सुविधाओं हैंडवॉश, साबुन, तौलिया स्टैंड, वॉशबेसिन आदि से लैश करवाया।
एक अनूठी मिशाल पेश करते हुए संगीता ने शैक्षिक गुणवत्ता में सुधार के लिए राष्ट्रपति पुरस्कार से नवाजे गये पुरस्कार स्वरूप मिली राशि को भी उन्होंने विद्यालय में परिवर्तन के लिए खर्च कर दिए।
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स्वच्छता के लिए दी ये सुविधाएं
स्कूल में एक सोप बैंक भी बनवाई गई है। कोई भी व्यक्ति इसमें दानस्वरूप साबुन आदि जमा करा सकता है। छात्राओं के लिए अलग से एक इनसिनेरेटर (विद्युत अंगीठी) भी लगवाई गई है, ताकि यूज्ड सेनेटरी पैड का उचित प्रबंधन किया जा सके। सेनेटरी पैड के इस्तेमाल के लिए भी उन्होंने स्कूली छात्राओं को जागरूक किया।
कचरा और जल प्रबंधन की भी व्यवस्था दी स्कूल में
स्कूल में न तो कचरा बेकार जाता है, न पानी। कचरे, पत्तियों, बचे फल-सब्जी आदि को एकत्र करने के लिए गीले-सूखे कचरे के अलग-अलग कूड़ादान रखे गए हैं। गीले कचरे से खाद तैयार की जाती है, जो स्कूल में ही लगे पौधों में इस्तेमाल होती है। जल संचय के लिए रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगवाया।
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विद्यालय करता है गांव वालों को जागरूक
यह स्कूल गांव में जागरूकता बढ़ाने का काम भी कर रहा है। बच्चों को साथ ले शिक्षक गांव के एक-एक घर में जागरूकता का संदेश पहुंचाते हैं। घरों में शौचालय बनाने के लिए भी लोगों को जागरूक किया गया। विद्यालय के प्रोजेक्टर से लघु फिल्म दिखाकर और बच्चों के नुक्कड़ नाटकों से गांव वालों को सफाई के लिए भी प्रेरित करने की मुहिम शुरू की।
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ऐसे ही यदि हर प्रधानाध्यापक और हर ग्राम पंचायत इसी तरह प्रयत्नशील हो उठे तो बेहतर बुनियादी शिक्षा के अभाव में पिछड़ता ग्रामीण भारत नवयुग की नई इबारत लिख सकता है। जैसा यूपी के बदायूं के आमगांव में बदलाव की ऐसी ही कहानी लिखी गई।